Chhattisgarh

अपनों को बचाने अपनों का खेला..ढूंढ निकाला संजीवनी आदेश..बाल बाल बचा भ्रष्ट पटवारी और तहसीलदार..खुलेआम कर रहे सरकारी जमीन पर प्लाटिंग

अपनों को बचाने अधिकारियों ने पैदा किया नया आदेश

बिलासपुर—फर्जीवाड़ा कर प्रतिबंधित जमीन की रजिस्ट्री और नामांतरण करने वाले घुरू पटवारी और तत्कालीन तहसीलदार को अन्ततः विभागीय अधिकारियों ने बचा लिया है। मामले में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने जांच का आदेश दिया था। लेकिन एसडीएम और सकरी तहसीलदार की कृपा से दोनों भ्रष्ट कर्मचारिचों को बचाने वाला पुराना मिलने से दोनों भ्रष्टाचार से बेदाग हो गये हैं। बताया जा रहा है कि पटवारी मन मोहन सिदार और कोटवारी जमीन बेचने वाला तत्कालीन तहसीलदार राकेश सिंह को स्थगन आदेश के खिलाफ बैक डोर से तैयार आदेश से राहत मिली है।

 जानकारी देते चलें कि 13 अगस्त 2021 को तत्कालीन तखतपुर एसडीएम ने तत्कालीन कलेक्टर के आदेश पर घूरू स्थित कुछ खसरा के खिलाफ स्थगन आदेश जारी किया। आदेश में बताया गया कि खसरा नम्बर 91/3 की खरीदी बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाता है। तत्कालीन एसडीएम ने लिखित में बताया कि पंचायत अधिनियम के तहत सभी बांटाकन का विक्रय और नामांतरण गैर कानूनी है।

  इसके बाद बताए खसरे की जमीन का नामांतरण और नामांतरण पर पूरी तरह से रोक लग गया। यह प्रतिबंध तत्कालीन सकरी तहसीलदार  अश्वनी कंवर के हटने के बाद 10 घंटे तक ही रहा। अश्वनी कंवर के हटते ही विवादास्पद तहसीलदार राकेश सिंह ने रातों रात प्रतिबंधित खसरे की जमीन से ना केवल चार लोगों का नामांतरण किया। बल्कि बिक्री का भी अलिखित फरमान जारी कर दिया। परफेक्ट सौदा नहीं होने के कारण आज भी उसी खसरे का पांचवा व्यक्ति नामांतरण के लिए दर दर भटक रहा है। अधिकारियों की तरफ से बताया जा रहा है खसरे पर  एसडीएम का स्थगन है।

 बिल्डरों से हुआ सौदा

         नाम नही छापने की सूरत में विभागीय कर्मचारी ने बताया कि घुरू पटवारी मन मोहन सिदार का जमीन माफियों से गहरे ताल्लुक है। घुरू स्थित खसरा 91 पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद उन्होने कई बार तत्कालीन तहसीलदार अश्वनी कंवर से नामांतरण और बिक्री का प्रयास किया। लेकिन हर बार स्थगन का हवाला देकर अश्वनी कंवर ने ना तो नामांतरण और ना ही बिक्री का आदेश ही दिया। यह सिलसिला करीब एक साल तक चला।

बदलते ही बदल गए नियम

इसी बीच अश्वनी का ट्रांसफर हो गया। देर शाम बदनाम तहसीलदार राकेश सिंह को सकरी तहसीलदारी की जिम्मेदारी मिली। दूसरे दिन ही उन्होने स्थगन आदेश को दरकिनार कर धड़ाधड़ चार जमीनों का नामांतरण कर दिया। विभागीय कर्मचारी के अनुसार माफियों की जी हुजुूरी करने वाला मन मोहन और कोटवारी जमीन की रजिस्ट्री करने वाला  तत्कालीन तहसीलदार राकेश सिंह ने मिली भगत कर बिल्डरों से प्रतिबंधित जमीन पर नामांतरण का सौदा किया है।

दर दर भटक रहा पीड़ित

मामला सामने आने के बाद राजस्व मंत्री ने जांच का आदेश दिया। जैसा की होता है कि वर्तमान एसडीएम और सकरी तहसीलदार ने दोनों को बचाने के लिए तत्कालीन एसडीएम के स्थगन के खिलाफ बैक डोर से नया आदेश पैदा कर लिया है। बावजूद इसके प्रताड़ित केशव चन्द्र अब भी उसी खसरे के नामांतरम को लेकर दर भर भटक रहा है।

एसडीएम और तहसीलदार की भूमिका संदिग्ध

जानकारी के अनुसार पूरे प्रकरण में धूरू पटवारी और उसका सहायक अभिषेक समेत तत्कालीन दोषी तहसीलदार को बचाने के लिए वर्तमान एसडीएम और सकरी तहसीलदार की भूमिका संदिग्ध है। सूत्र ने यह भी बताया कि  घूरू पटवारी और तत्कालीन दोषी तहसीलदार के साथ जमकर लेन देन हुआ है।  बरहहाल दोनो वर्तमान अधिकारी यानी एसडीएम तखतपुर और तहसीलदार अपने ही जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। देखने वाली बात होगी कि क्या कलेक्टर पैदा किए गए तत्कालीन एसडीएम और तहसीलदार के आदेश के षड़यंत्र की जांच करते हैं या नहीं। फिलहाल पूरे मामले में मंत्री टंकराम को एसडीएम और सकरी तहसीलदार अंधेरे में रखने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं। 

 सरकारी जमीन को बेच खाया

बताते चलें कि घुरू स्थित खसरा नम्बर 301 मे दो एकड़ सरकारी जमीन है। तत्कालीन एसडीएम ने आरआई प्रतिवेदन को दरकिनार कर सरकारी जमीन को माफियों के हवाले कर दिया। इस समय जमीन के 45 टुकड़े हो चुके हैं। मामले की जानकारी होने के बाद भी वर्तमान एसडीएम शिव कंवर मौन है। जो किसी बड़े सौदेबाजी की तरफ इशारा करता है।

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