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हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: मृतक के आश्रितों की देखभाल करना कर्त्तव्य..अब देना ही होगा

बिलासपुर,…छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने वाले व्यक्ति का यह नैतिक और विधिक कर्तव्य है कि वह मृतक कर्मचारी के आश्रितों को भरण-पोषण प्रदान करे, जब तक वे आत्मनिर्भर न हो जाएं।

यह आदेश हाई कोर्ट ने उस मामले में पारित किया, जिसमें एक युवक ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति तो प्राप्त कर ली, लेकिन बाद में सौतेली माँ और नाबालिग भाई-बहन की देखभाल करने से इनकार कर दिया।

क्या है पूरा मामला?

जशपुर निवासी सुरेंद्र खाखा, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी में कार्यरत थे। उनकी मृत्यु दिसंबर 2010 में सेवाकाल के दौरान हो गई। उनकी पहली पत्नी का निधन पहले ही हो चुका था, जिनसे दो पुत्र — सत्यम और जितेंद्र — थे। बाद में सुरेंद्र ने दूसरी शादी की, जिससे उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री हुए।

पिता की मृत्यु के बाद, दूसरी पत्नी ने बड़ी सहमति के साथ पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति दिलाई, इस शर्त पर कि वह मृतक की पत्नी (सौतेली माँ) और बच्चों का भरण-पोषण करेगा।

विवाद कैसे शुरू हुआ?

कुछ समय तक तो वह पुत्र परिवार के साथ रहा और देखभाल करता रहा, लेकिन विवाह के बाद वह अलग हो गया और भरण-पोषण देना बंद कर दिया। इसके बाद सौतेली माँ ने परिवार न्यायालय की शरण ली और भरण-पोषण की मांग की।

पारिवारिक न्यायालय का आदेश

परिवार न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद आदेश दिया कि अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त युवक:

  • सौतेली माँ को ₹1000 प्रतिमाह (जीवनभर या पुनर्विवाह तक),
  • और नाबालिग भाई-बहन को ₹3000-3000 प्रतिमाह (बालिग होने तक)
    देगा।

जनवरी 2023 में बच्चे बालिग हो गए, लेकिन तब तक उसे 7000 प्रतिमाह भरण-पोषण देना पड़ा।

हाई कोर्ट से याचिका की खारिज

इस आदेश को चुनौती देते हुए युवक ने हाई कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की। लेकिन न्यायमूर्ति ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि—

“अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य ही मृतक के आश्रितों की देखभाल सुनिश्चित करना है। यह न केवल कानूनी बल्कि नैतिक कर्तव्य भी है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालय का आदेश मूल्य सूचकांक, आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप है और इसमें कोई कानूनी त्रुटि नहीं है

कोर्ट की टिप्पणी

हाई कोर्ट ने इस बात को रिकॉर्ड में लिया कि अनुकंपा नियुक्त युवक वर्तमान में अलग रह रहा है और आश्रितों को कोई सहायता नहीं दे रहा। इसके आधार पर पारिवारिक न्यायालय का आदेश बरकरार रखा गया।

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