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विश्वविद्यालय कैंपस से निकलकर आया नया सबक…! क्या यही सीखने के लिए हमने संघर्ष किया था… ?

( गिरिजेय ) छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद शायद यह सबसे बड़ी खबर सामने आई है कि कैंपस से पुलिस ने एक प्रोफेसर को गिरफ्तार किया। “ मनखे – मनखे एक समान ” का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ के महान संत बाबा गुरु घासीदास के नाम पर बने इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पर एनएसएस कैंप में छात्रों को जबरिया नमाज पढ़ाने का आरोप है । इस तरह के आरोप में और भी कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। यह खबर सामने आने के बाद सवाल उठ रहा है कि इस इलाके के सबसे बड़े शैक्षणिक संस्थान से किस तरह का सबक निकल कर आ रहा है। बिलासपुर में आपसी प्रेम- भाईचारा और सौहार्द्र की जमीन पर एक शिक्षण संस्था से निकलकर आ रहा सबक इस विश्वविद्यालय कैंपस को भी सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। इस मौके पर उन तमाम लोगों की भावनाओं पर भी बात होनी चाहिए, जिन्होंने बिलासपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ी। ऐसे कैंपस से अगर प्रोफेसर की गिरफ्तारी होती है तो क्या वहां मौजूद कुलपति सहित व्यवस्था के तमाम जिम्मेदार लोग भी सवालों के घेरे में नहीं आएंगे…? जिसके चलते बिलासपुर की तासीर के विपरीत यह संस्थान खींचतान का अखाड़ा बनता जा रहा है।

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना ( एनएसएस ) कैंप में हुई घटना पिछले कुछ दिनों से चर्चित है। इस मामले में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एनएसएस के प्रभारी प्रोफ़ेसर दीपक झा की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस मामले में कुछ और लोगों के खिलाफ मामला दर्ज है । उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे जांच पड़ताल में यह बात सामने आएगी कि एनएसएस कैंप में ईद के दिन नमाज पढ़ने की घटना कैसे हुई…? आज के समय में जब हर हाथ में मोबाइल है.. क्या उस समय की तस्वीर भी लोगों के पास हैं …? क्या कैंप के दौरान रामनवमी पर्व पर भी कोई अनुष्ठान का कार्यक्रम रखा गया था…? यूनिवर्सिटी कैंपस की पूरी घटना जांच पड़ताल – पूछताछ में सामने आएगी । लेकिन इस घटना के बाद कई सवाल है, जिनके जवाब की भी उम्मीद की जा रही है । इस घटना ही नहीं बिलासपुर के केंद्रीय विश्वविद्यालय को सामने रखकर उन तमाम लोगों के बारे में भी सोचा जाना चाहिए, जिन्होंने 80 के दशक में अविभाजित मध्य प्रदेश के समय पहले बिलासपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने की लड़ाई लड़ी।… और फिर बिलासपुर के विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने के लिए संघर्ष किया। बिलासपुर के नेहरू चौक में कई दिनों तक धरना दिया गया और प्रतिनिधिमंडल दिल्ली तक पहुंच गया । अर्जुन सिंह ने अविभाजित मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते हुए बिलासपुर में महान संत गुरु घासीदास के नाम पर राज्य का विश्वविद्यालय शुरू किया था। यह भी इत्तेफाक है कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रहते हुए अर्जुन सिंह ने ही गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। इसके बाद एक बार वे विश्वविद्यालय के समारोह में भी आए थे।

उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए लड़ाई लड़ने वालों की कल्पना थी कि यह विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ ही नहीं भारत के नक्शे में अपनी अलग पहचान बनाएगा और बिलासपुर शहर को भी इससे नई दिशा मिलेगी…। लेकिन विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से चारों तरफ बनी चहारदीवारियों ने इस संस्थान को शहर से अलग कर दिया…। उस द्वीप की तरह… जहां कोई पहुंच नहीं पाता..। शहर के लोग कभी यह नहीं जान सके कि इन चहारदीवारियों के भीतर क्या चल रहा है..? इस दौरान बड़ी-बड़ी इमारतें बनी… निर्माण कार्य हुए और उच्च शिक्षा के नाम पर भी इस विश्वविद्यालय ने बहुत कुछ हासिल किया। लेकिन शहर से इस संस्थान का नाता कभी नहीं जुड़ सका। हमारे लोकल लोग वर्दी पहन कर सुरक्षाकर्मी की भूमिका निभाते हैं और उनकी ड्यूटी ही इसलिए लगाई जाती है कि लोकल लोग कैंपस के भीतर झांक भी ना सके। ऐसे में यदि कैंपस से यह खबर आती है कि किसी प्रोफेसर को एनएसएस कैंप में जबरिया नमाज पढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है तो कभी केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग करने वाले बिलासपुरिया लोगों तक पहुंचने वाली चोट का अंदाजा लगाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के जिस महान संत गुरु घासीदास ने सभी इंसानों को एक बराबर समझने का पाठ पढ़ाया था, उनके नाम पर बने कैंपस में अगर इस तरह का मामला सामने आए तो चोट पहुंचेगी ही। सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि इस मामले में केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति और पदों पर बैठे दूसरे लोग भी क्या जिम्मेदार नहीं है….? जब जिले की किसी बड़ी घटना पर वहां पदस्थ कलेक्टर और एसपी पर सवाल उठाए जाते हैं….। रेल हादसे के बाद रेल मंत्री पर सवाल उठाए जाते हैं तो फिर यहां कुलपति को इतने बड़े मामले के बाद भी सवालों के भीतर क्यों नहीं रखा जा सकता…?  खासकर ऐसा मामला सामने आने के बाद जो बिलासपुर जैसे शान्ति और अमन पसंद शहर की पहचान के उलट दिखाई दे रहा हो।

इस मामले में जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष  विजय केशरवानी ने मांग की है की विश्वविद्यालय के कुलपति के खिलाफ भी जांच होनी चाहिए। विश्वविद्यालय के मुखिया होने के नाते पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर भी बनती है। इधर कोटा के कांग्रेस विधायक अटल श्रीवास्तव के साथ कांग्रेस के लोगों ने आईजी से मिलकर इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने भी विश्वविद्यालय कुलपति सहित बाकी लोगों की भूमिका को भी जांच के दायरे में लाने के लिए कहा है । साथ ही मौजूदा कुलपति के कार्यकाल की भी जांच की मांग की है। अटल श्रीवास्तव का कहना है की एनएसएस का कैंप उनके ही विधानसभा क्षेत्र शिवतराई में लगा था। इस बारे में लोगों से उनकी बात हुई है। लोगों ने बताया है कि एनएसएस कैंप के दौरान रामनवमी का पर्व भी सभी लोगों ने मिलकर मनाया। इसी दौरान ईद के त्यौहार के दिन जब योग की कक्षा चल रही थी, तब ईद की बधाई देते हुए शिविर में शामिल मुस्लिम समाज के छात्रों ने नमाज की प्रक्रिया के बारे में बताया । जिसे वहां मौजूद अन्य छात्रों ने भी अपने ढंग से फॉलो किया। अटल श्रीवास्तव आगे जोड़ते हैं कि एनएसएस जैसी संस्था में, जहां सर्व धर्म समभाव की बात अक्सर की जाती है, यह भी एक सामान्य बात थी। जाहिर सी बात है कि इसे लेकर कोई चर्चा नहीं हुई । लेकिन कुछ दिन बाद गमछाधारी लोगों को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने हल्ला मचाया और पुलिस तक बात पहुंच गई। प्रोफेसर दीपक झा की गिरफ्तारी की गई। यह भी सामने आना चाहिए कि क्या वाइस चांसलर ने ऐसे लोगों के खिलाफ माहौल बनाया जो उनके गुट के नहीं थे। जो भी हो लेकिन इस घटना ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी की व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए हैं। जिनका जवाब आना चाहिए।

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