छात्रावास अधीक्षिका की संदिग्ध आत्महत्या: प्रशासनिक संवेदनहीनता की पोल खुली..,पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवाल

रामानुजगंज /बलरामपुर( पृथ्वी लाल केशरी).. नगर पालिका क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 3 स्थित एकलव्य कन्या आवासीय विद्यालय की छात्रावास अधीक्षिका नेहा वर्मा (25 वर्ष) ने अपने सरकारी क्वार्टर में दुपट्टे से फंदा लगाकर कथित रूप से आत्महत्या कर ली। यह घटना न केवल एक युवा कर्मचारी। दुखद मृत्यु है।, बल्कि पुलिस और प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता को भी उजागर करती है।
बिहार के पटना जिले की रहने वाली नेहा वर्मा ने 27 जून 2024 को कन्या छात्रावास अधीक्षिका के रूप में पदभार ग्रहण किया था। घटना की जानकारी सहकर्मियों को तब मिली, जब कार्यस्थल पर अनुपस्थित पायी गयी। जानकारी के बाद कमरे का दरवाजा तोड़ा गया। इस दौरान कमरे में नेहा का शव फंदे पर लटका मिला।
पुलिस की ‘क्लासिक देरी’: न तत्परता, न जवाब
सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर तो पहुंची, लेकिन प्रारंभिक जांच में गंभीर लापरवाही सामने आ रही है। न तो कमरे से कोई सुसाइड नोट बरामद किया गया और न ही परिजनों को उचित समय पर सूचित किया गया। घटनास्थल से जुड़े सबूतों को सुरक्षित रखने में भी चूक हुई है।
पुलिस सूत्र इस घटना को ‘आत्महत्या’ मानकर फाइल बंद करने की जल्दबाजी में हैं, जबकि यह सवाल अब भी बरकरार है कि —एक युवा, कर्मठ अधीक्षिका जिसने हाल ही में पदभार संभाला था, वह इस तरह का कदम क्यों उठाएगी? क्या उसे मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ रहा था?
क्या विद्यालय या प्रशासनिक व्यवस्था में कोई दबाव या शोषण का वातावरण था?
मौत पर ‘सरकारी चुप्पी’: शर्मनाक!
जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने अब तक ना कोई आधिकारिक बयान जारी किया है ।और न ही विद्यालय प्रशासन की कोई जिम्मेदारी तय की गई है। स्तब्ध कर देने वाली बात है कि एक महिला कर्मचारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने के बावजूद स्थानीय प्रशासन संवेदनहीन और निष्क्रिय बना हुआ है।
जनता और परिजनों की मांग: हो न्यायिक जांच
नेहा वर्मा के परिजनों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब तक इस घटना की स्वतंत्र न्यायिक जांच नहीं की जाती, तब तक इसे आत्महत्या मान लेना जल्दबाज़ी होगी। परिजनों ने पुलिस पर जानबूझकर लीपापोती करने और संस्थान की ‘इमेज बचाने’ की कोशिश का आरोप लगाया है।
संवेदनहीनता और व्यवस्था की नाकामी
आदिवासी क्षेत्र में कार्यरत महिला कर्मचारी की आत्महत्या महज़ एक व्यक्तिगत हादसा नहीं, बल्कि संस्थागत संवेदनहीनता और व्यवस्था की नाकामी का आईना है। ऐसे मामलों में यदि पुलिस निष्पक्ष और प्रभावी भूमिका नहीं निभाती, तो यह न केवल मृतक के परिवार के लिए अन्याय है, बल्कि समाज की महिलाओं के लिए एक भयावह संकेत भी है।