पुस्तक समीक्षाः छत्तीसगढ़ भाषा साहित्य के पुरोधा डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की अनमोल कृति है, ‘‘मॉं महामाया दिव्य ज्योति धाम”
आस्था, ज्ञान और भाषा संपदा की त्रिवेणी : ‘‘मॉं महामाया दिव्य ज्योतिधाम रतनपुर’’

( डॉ. बेला महंत )
छत्तीसगढ़ भाषा साहित्य के पुरोधा डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा की अनमोल कृति है, ‘‘मॉं महामाया दिव्य ज्योति धाम, रतनपुर’’।
इस कृति में उन्नीस शीर्षकों में डॉ. शर्मा ने ‘‘शक्ति’’ के विभिन्न स्वरूपों, उपासना, पद्धति का विस्तृत वर्णन किया है। डॉ. शर्मा ने छत्तीसगढ़ की मॉं महामाया रतनपुर के स्वरूप आद्य महाशक्ति, दुर्गा, महाकाली, महागौरी के रूपों की सूक्ष्म व्यावहारिक व्याख्या की है। ‘‘छत्तीसगढ़ के रतनपुर की महामाया’’ के स्वरूपों की डॉ. पालेश्वर शर्मा ने निम्न रूप में व्याख्या की है :-
भारतीय संस्कृति निगमागम मूलक है। छत्तीसगढ़ में वेद बाह्य तांत्रिक साधना के विकसित रूप में शक्ति की उपासना की जाती है। छत्तीसगढ़ में तंत्र में आस्था है, अनुष्ठान है, लोकहित है, लोक मंगल की भावना है। उन्होंने महामाया को शिव की शक्ति का स्वरूप बताया है। शिव की दो शक्तियां है – समवायिनी और परिग्रह रूपा। परिग्रह रूपा परिणाम दायिनी है, जो बिन्दु नाम से विख्यात है। बिन्दु का अशुद्ध रूप माया है और शुद्ध रूप महामाया। रतनपुर में स्थित प्रतिमा महामाया है। जागृत देवी जगज्जननी, कल्याणी, मंगलमयी।
डॉ. शर्मा मानते हैं देश में इक्यावन शक्तिपीठ हैं। प्रत्येक प्रदेश की शक्ति पीठ और लोक देवियां सभी के प्रति श्रद्धा और भक्ति समान है।
‘‘जय दुर्गा माता’’ शीर्षक से डॉ. शर्मा ने देवी के विभिन्न रूपों की विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंने छत्तीसगढ़ की ‘‘धूंकी दाई’’ को धूमावती स्वरूप बताया। वे शक्ति की उपासना का आधार अद्वैत को मानते हैं, जिस प्रकार एक चने में दो दल रहते हैं, उसी प्रकार शिव-शक्ति एक नवदुर्गा के रूप में आराधना, पराशक्ति की साधना है।
डॉ. शर्मा कहते हैं देवी अबला नहीं है, साक्षात शक्ति है, सबला है, प्रबला है। उन्होंने पंत के शब्दों का उल्लेख करते हुए कहा है कि देवी सहचरी प्राण है, जो कन्या है, सुमंगली है, रामा है, मित्रा है, शतरूपा है, ज्ञान के क्षेत्र में सरस्वती है, समृद्धि के लिए साक्षात लक्ष्मी है, क्रोध में काली है। वे कहते हैं कि प्रभु की प्रेम साधना में मीरा है, ऑंगन में तुलसी है, गृह परिसर के आकाश का आकाशदीप है तो अन्याय के विरूद्ध वह कालरात्रि साक्षात् मृत्यु है।
वे व्यवहार जगत में कन्या को ब्राम्हण के समकक्ष रखते हैं और कहते हैं कि नारी को पुष्प से भी प्रताड़ित नहीं करना चाहिए।
डॉ. पालेश्वर शर्मा ने एक ओर देवी के स्वरूपों की सूक्ष्म व्याख्या की है तो दूसरी ओर आम जन जीवन से जुड़ी व्यवहारिक व्याख्या की है। उनकी शक्ति में गहरी आस्था है, उनके आराधना का स्वरूप व्यवहारिक है जो केवल व्यक्तिगत उत्थान के लिए ही नहीं है, समाज कल्याण के लिए भी है।
इस कृति का एक महत्वपूर्ण और अनोखा हिस्सा है ‘‘ तिथि रामायण’’ जिसमें भगवान राम के जीवन के प्रसंगों से जुड़ी विभिन्न घटनाओं को भारतीय तिथि के आधार पर दर्शाया गया है, यथा – ‘‘श्री राम डेढ़ महिना पाछू बैसाख अंधियारी पंचमी के अत्री मुनि ले भेंट करके पंचवटी म कुंदरा बनाइस’’। ‘‘माघ सुकुल पाख दूज के रक्सा बेंदरा जुद्ध सुरू होईस’’।
छत्तीसगढ़ी में लिखे इस लेख में उन्होंने भगवान राम सीता की उम्र, युद्ध के समय काल आदि की गणना भी की है –
‘‘लड़ाई अठासी दिन म पन्द्रह दिन छोड़ के तिहत्तर दिन भारी घमासान होईस’’
‘‘अशोक वाटिका म चौदह महीना दस दिन सीता जी रहिस’’
‘‘रामराज तीस बछर पचास दिन रहिस’’। इस लेख में लेखक की बौद्धिकता, गणन क्षमता और छत्तीसगढ़ी भाषा के ज्ञान का समन्वय दिखाई देता है। इस कृति की विषय वस्तु एक देशकाल पर आधारित नहीं है, इसमें छत्तीसगढ़ का संदर्भ स्वाभाविक रूप से नजर आता है। छत्तीसगढ़ के पुरातत्व वेत्ता और लेखक लोचन प्रसाद पाण्डे की ‘‘महामाया की वंदना’’ हिन्दी के अग्रगण्य पिंगलाचार्य जगन्नाथ भानु की ‘‘छत्तीसगढ़ी माता वंदना, स्तुति’’ छत्तीसगढ़ की ‘‘धूंकी दाई’’ उच्च भट्टी की ‘‘सती’’ के प्रसंग सहज रूप में समाहित है।
डॉ. शर्मा ने इस कृति में ‘‘सूत्र कथन’’ के रूप में व्यवहारिक बातें कही हैं। मॉं दुर्गा की आठ भुजाओं को उन्होंने स्वास्थ्य, विद्या, धन, व्यवस्था, संगठन, यश, शौर्य और सत्य का प्रतीक बताया है –
स्वास्थ्य – इसके बिना उन्नति संभव नहीं अच्छे मस्तिष्क से ही कल्याणकारी योजनाओं का जन्म होता है।
शिक्षा – शिक्षा सांसारिक ज्ञान देती है।
विद्या – विद्या आत्मिक उत्थान का संबल है।
धन – परिश्रम और ईमानदारी से धन कमाना ही समाज में व्यवस्था बनाए रखने का आदर्श है।
व्यवस्था – सीमित साधनों से बड़े कार्य संभव हो जाते हैं। उन्होंने अच्छे व्यवस्थापक के गुण भी बताए हैं।
संगठन – समस्त शक्तियों का मूल आधार है।
यश – उपासक को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे अपयश मिले।
शौर्य – साहस के बिना सफलता असंभव हैं
सत्य – सत्य से ही शक्ति प्राप्त होती है।
लेखक की इस छोटी सी व्याख्या में वर्तमान में प्रचलित Personality Development, Business Management, Life skill, Stress Management ‘‘अध्यात्म दर्शन’’ सभी कुछ समाहित हैं। जितनी विशेष इस कृति की विषयवस्तु है, उतनी ही समृद्ध है – लेखक की भाषा शैली। लेखक की शब्द संपदा में जहां सरल व्यवहारिक शब्द है, सरल सहज अभिव्यक्ति है, यथा – ‘‘सती का रौद्र रूप देखकर भीषण अट्टहास सुनकर महाप्रभु (महादेव) खिसक चले।’’ महाकाली से गौरी बनने के प्रसंग ‘‘अजी, काली जी जरा सुनिये’’ (व्यंग्यपूर्ण) शर्मा जी शिव शक्ति की अभिन्नता को भी व्यवहारिक सरल उदाहरण से समझाते हैं – जिस प्रकार चने के एक दाने में द्विदल रहते हैं, उसी प्रकार शिव शक्ति एक ही है, शिव धनात्मक आवेश हैं तो शक्ति ऋणात्मक।
इस रचना में कुछ नए शब्दों में परिचय हुआ यथा युगनद्ध – युगल नर नारी देवी के नाम हेतु अनाक्षी, जक्षुधा, गणेशमाता।
डॉ. पालेश्वर शर्मा ने भाषा की कल्पना शक्ति को उद्धृत करते हुए बताया कि एक ही अर्थ वाले पर्यायवाची शब्द कैसे स्त्रीलिंग या पुल्लिंग बन जाते है, यथा अग्नि स्त्रीलिंग, तेजस पुल्लिंग, वाटिका स्त्रीलिंग, उपवन- पुल्लिंग। हिंदी में चन्द्रमा नर है (मामा), अंग्रेजी भाषा में Moon नारी है।
शब्द चित्र को रूपांकित करना डॉ. पालेश्वर शर्मा की अभिव्यक्ति क्षमता का एक आयाम है। माता मीनाक्षी के वर्णन में डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा लिखे हैं :-
‘‘कुंदरू के समान अरूण ओष्ठ में मंद मंद मुस्कान मोहित कर रही है, उनका पीत रेशमी परिधान फहरा रहा है।’’ वहीं क्रुद्ध सती का चित्रण नेत्र लाल, रंग काला, शरीर उग्र, केश मुक्त, चारों भुजाओं में शस्त्र, गले में मुण्ड माला, जीभ बाहर, शीश पर बालचंद, विशाल विकराल बदन, चंड प्रचंड रूप।
डॉ. पालेश्वर शर्मा की अभिव्यक्ति क्षमता का दूसरा आयाम है – ध्वनिबिम्ब। मां मीनाक्षी का वर्णन है :-
‘‘कंकण किंकिणी करधनी में क्वणन है, तो नुपुर पायजेब में रणण है, झनन है। नयन मूंद कर मॉं को निहारने पर कण स्वतः झनझनाने लगते हैं।
अद्भुत बात यह है कि जहां सन्नाटा है वहां भी ध्वन्यात्मकता है। उच्च भट्टी सती के संदर्भ में लेखक ने जंगल का उल्लेख किया है –
‘‘खोहनिया का खार, जवान जंगल, जहां नीम, महानीम, सरई, साजा, महुआ, मकोइया, खैर, खम्हार, कलमी, कोसम, गंधर्व, गारूड़ी के छोटे बड़े वृक्ष झूमते रहते हैं और मयूर टिहला, टिटहरी चहकते रहते। चुरूल चुरूल सन्नाटे के आलम में वन सोया था, हां कभी कभी दूर कौओं की कांव-कांव सन्नाटे को तोड़ती, झींगुर की झीं झीं से एकरस चुप्पी सनसनाती रहती।
डॉ. शर्मा के लिए श्री महेश श्रीवास ने ‘‘स्मृति ग्रंथ – डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा’’ में लिखा है ‘जिनका अंदाज कबीराना था’। ‘‘कबीराना’’ होना आसान नहीं है। डॉ. पालेश्वर शर्मा ने कबीर को गहराई से जाना है। उनकी अभिव्यक्ति में कबीर सहज समाहित हैं। यथा –
तंत्र में पराशक्ति जैसे महाकुण्डल का युवती रूप में वर्णन है, तो कबीर ने उसे पनिहारिन कहा है।
‘‘आकाशे मुखि औंधा कुंआ पाताले पनिहारी
ताका पानी हंसा पीवै, यह तत कथहु विचारि’’
शिव शक्ति के मिलन के संदर्भ में —
लिखा लिखी बात नहीं, आंखो देखी बात
दुलहा दुलही मिलि गये, फीकी परी बरात।
वस्तुतः ज्ञान, आस्था और भाषा संपदा की त्रिवेणी संगम है, डॉ. पालेश्वर शर्मा की अनमोल कृति -‘‘मां महामाया – दिव्य ज्योति धाम रतनपुर’’
डॉ. बेला महंत
सहायक प्राध्यापक हिन्दी
शा. माता शबरी नवीन कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बिलासपुर छ.ग.