Bilaspur

बारिश में डूबा ‘विकास’: अव्यवस्थित शहरीकरण बना क्रूर चेहरा —टाटा महाराज का तीखा प्रहार.. बारिश ने उजागर की शहरी की बदइंतज़ामी

बिलासपुर….तेज बारिश ने एक बार फिर बिलासपुर नगर निगम की पोल खोल दी है। शहर के प्रमुख इलाकों जैसे विद्यानगर, विनोबा नगर, पुराना बस स्टैंड, गुरु बिहार, व्यापार विहार, तेलीपारा और कश्यप कॉलोनी में पानी का भराव लोगों के लिए आफत बनकर आया है।

“अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था,
अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था।”
ये पंक्तियाँ कांग्रेस नेता महेश दूबे उर्फ ‘टाटा महाराज’ ने उस दर्द को बयां करने के लिए लिखी हैं जो इस मानसून में बिलासपुर की जनता को झेलना पड़ा। वे कहते हैं कि यह सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि अव्यवस्थित शहरी विकास की सजा है।

महेश दूबे ने साफ कहा कि तीन दशक पहले जहां खेत-खलिहान हुआ करते थे, आज वहां अवैज्ञानिक ढंग से कॉलोनियां और मकान उगा दिए गए हैं। प्रकृति के बहाव को नजरअंदाज कर दी गई यह विकास योजना अब शहर के लिए अभिशाप बन चुकी है।

प्राकृतिक जल निकासी की अनदेखी
बारिशों का पानी सदियों से खेतों और नालों के ज़रिए निकलता आया है, लेकिन नगर निगम ने बिना पूर्व योजना के नालियों की कटाई और जल निकासी की समुचित व्यवस्था के बगैर वहां मकान व दुकानें खड़ी कर दीं। कंक्रीट के जंगलों ने मिट्टी के रास्तों को बंद कर दिया।

“प्राकृतिक प्रवाह का अपमान, बर्बादी का कारण”,

महेश दूबे आगे कहते हैं, “प्रशासन और नगर निगम ने आज भी कोई सबक नहीं लिया है। आज भी बन रही कॉलोनियों में मकान ऊंचे बना लिए जाते हैं और पानी बाजू की खाली जमीन पर छोड़ दिया जाता है। यही हाल रहे तो आने वाले सालों में शहर के और इलाके जलभराव की चपेट में आ जाएंगे।”

कांग्रेस नेता की चेतावनी और सुझाव
महेश दूबे ने नगर निगम और जिला प्रशासन को चेताया है कि वे तत्काल प्रभाव से खाली पड़ी ज़मीनों पर बन रही कॉलोनियों की जांच करें और बारिश के पानी की निकासी के लिए ठोस योजना बनाएं। वरना यह समस्या विकराल रूप लेकर पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लेगी।

उन्होंने यह भी मांग की कि:

सभी नई कॉलोनियों की स्वीकृति से पहले जल निकासी का नक्शा अनिवार्य किया जाएl  पुराने जल-मार्गों की पुनर्स्थापना की जाएlबिलासपुर को मास्टर प्लान के तहत योजनाबद्ध विकास में ढाला जाए l

“बस्ती के घरों को क्या देखे, बुनियाद की हुरमत क्या जाने,सैलाब का शिकवा कौन करे, सैलाब तो अंधा पानी है।” इस भावुक मगर कटु सत्य के साथ महेश दूबे ने शहरवासियों के दर्द को स्वर दिया है, और नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गहरा सवाल उठाया है l

अंत में टाटा महाराज कहते हैं कि यह सैलाब प्राकृतिक नहीं प्रशासनिक है। इसे जिसने बिगाड़ा है  उसको ही  संवारना होगा।

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