CG NEWS:नए शिक्षा मंत्री क्या खींचेंगे अनुशासन की नई लकीर … ? सिस्टम पर लगाम – कठिन परीक्षा…!

CG NEWS:सूरजपुर (मनीष जायसवाल) ।छत्तीसगढ़ का स्कूल शिक्षा विभाग चौदह महीने तक मुख्यमंत्री के पास रहा। उनके सरल स्वभाव का अफसरों ने जमकर फायदा उठाया। नतीजा यह हुआ कि कक्षाएं छूट गई, किताबें पीछे रह गईं और बच्चों का भविष्य दांव पर लग गया। अब इस विभाग की बागडोर नए स्कूल शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव को मिली है। सवाल यह है कि क्या वे सिस्टम पर नियंत्रण पा सकेंगे या फिर अफसरशाही की चालों के शिकार बन जाएंगे।
गजेंद्र यादव राजनीति में नए हैं। पहली बार विधायक बने और सीधे मंत्री पद पर पहुंचे। उनकी खासियत यह है कि वे संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे लोगों को उम्मीद है कि विभाग में अनुशासन की नई लकीर खिंचेगी। लेकिन दूसरा बड़ा सवाल यह है कि यह अनुशासन केवल शिक्षकों तक सीमित रहेगा या उन अफसरों तक भी पहुंचेगा जो सालों से विभाग को अपने हिसाब से चला रहे हैं।
शिक्षकों की शिकायतें गंभीर हैं। रोजाना रिपोर्टिंग और ऑनलाइन अपडेट की मजबूरी ने उन्हें बच्चों की पढ़ाई से ज्यादा कागजी काम में उलझा दिया है। आदेशों की भरमार है और उनकी व्याख्या हर जिले में अलग-अलग हो रही है। किताबें समय पर नहीं पहुंच रही हैं और एनजीओ के प्रयोगों से बच्चों का भविष्य पटरी से उतरता दिख रहा है। युक्तिकरण की गुत्थी ने हालात और बिगाड़ दिए। यही वजह रही कि शिक्षकों का गुस्सा आंदोलन से होते हुए अदालत तक पहुंच गया।
इसका ताजा उदाहरण सुरजपुर में देखने को मिला, जहां डीईओ भारती वर्मा के हटने पर शिक्षकों ने पटाखे फोड़कर जश्न मनाया। किसी अफसर की विदाई पर इस तरह का जश्न यह बताने के लिए काफी है कि सिस्टम न्याय से नहीं, बल्कि प्रभारवाद के जुगाड़ से चलता रहा है।
अब गजेंद्र यादव के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति दूर करना, शिक्षक भर्ती और पदोन्नति नियम 2019 में सुधार करना, एलबी संवर्ग के शिक्षकों की सेवा गणना और क्रमोन्नत वेतनमान जैसे मुद्दे लंबे समय से अटके पड़े हैं। अगर इनका हल अदालत से निकला तो लाभ तो शिक्षकों को मिलेगा, लेकिन राजनीतिक नुकसान सरकार को झेलना पड़ेगा।
सबसे बड़ा विवादास्पद मुद्दा ट्रांसफर पॉलिसी है। ट्रांसफर हुए तो रायपुर बिलासपुर दुर्ग जिले ट्रेंड पर रहे है..। वही
आम शिक्षक बीस साल से एक ही जगह अटके हुए हैं, जबकि कुछ लोग सिफारिश और जुगाड़ से अपने शहर और गांव तक पहुंच गए। बहुतों के लिए नियम ताक पर रख दिए गए…। अब शिक्षक ट्रांसफर नीति से नहीं, बल्कि सिफारिशों और फाइल की मोटाई से तय होने लगे है…। अगर नए मंत्री ने इस व्यवस्था में सुधार कर लिया तो यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी।
असल परीक्षा अफसरशाही पर लगाम कसने की होगी। विभाग में सालों से वही चेहरे फैसले लेते आए हैं। सरकारें बदलीं, लेकिन वे नीति-निर्माता और सलाहकार बने रहे। नए अफसर भी आकर उन्हीं के इशारों पर काम करने लगते हैं। अगर गजेंद्र यादव इस जाल को काट पाए तो इसे विभागीय सुधार नहीं, बल्कि क्रांति की शुरुआत माना जाएगा।
कोई याद रखें न रखें शिक्षक इतिहास याद रखता है। शिक्षा विभाग आसान मंत्रालय नहीं है…। यहां हर महीने टेस्ट होता है, छमाही और वार्षिक परीक्षाएं भी, और ढाई-तीन साल बाद सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा यानी विधानसभा चुनाव होंगे..। गजेंद्र यादव अब केवल मंत्री नहीं, बल्कि हर महीने परीक्षा देने वाले विद्यार्थी भी हैं। फर्क बस इतना है कि उनका रिजल्ट कापी में नहीं, बल्कि जनता के वोटों में लिखा जाएगा..।
शिक्षकों की सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि वे कक्षा में लौटें और बच्चों को पढ़ा सकें, न कि कागजों और कंप्यूटर में उलझे रहें। लेकिन यह तभी संभव है जब मंत्री अफसरों को उनके असली काम पर लगाएं और विभाग की लगाम अपने हाथ में रखें। अब तय करना गजेंद्र यादव के हाथ में है कि वे शिकारी बनकर राह साफ करेंगे या शिकार बनकर इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे…।