श्रमिकों के मसीहा बाबा साहब अंबेडकर – दीपक पाण्डेय

“जो जीवन के धूल मे बड़ा हुआ
तूफानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ
जो जीवन की
आग मे जलाकर बना
फौलादी
और.पंजे फैलाए नाग बना
जिसने दलित, श्रमिक शोषण को तोड़ा है
उनके लिए लड़ा है
जिसने शासन का रूख मोडा है
वह युग का सूरज है *——
परम पूज्यनीय भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर को
शत शत नमन प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल की यह पंक्ति बाबा साहब को समर्पित—–
बाबा साहब को पूरा देश संविधान निर्माता के रूप में जानता है पूरा देश उनका ऋणी है ।पर पूजनीय बाबा साहब को मजदूर श्रमिक वर्ग अपने मसीह के रूप में याद करता है ।
श्रमिकों के हित में बने असंख्य कल्याणकारी योजनाओं ,श्रमिक कानून सुधार में उनका योगदान अमूल्य है । असाधारण विद्वान से लेकर वायसराय की कार्यकारी परिषद में 1942 से 1946 में भारत के पहले श्रम मंत्री बनने तक बाबा साहब ने जहां दलित शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई ,वहीं पर श्रमिकों के शोषण के विरुद्ध भी उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए संघर्ष किया । उन्हीं का विजन और मिशन था, जो भारत में श्रमिक सुधार श्रमिकों की दशा और उनकी स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आया ।बाबा साहब जब लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया विश्वविद्यालय से पढ़कर भारत लौटे और मुंबई में गवर्नमेंट कॉलेज के प्रिंसिपल बने तो उन्हें उनकी जाति के कारण उपयुक्त जगह ना मिलकर उन्हें चाल में रहना पड़ा ।उनके आसपास रहने वाले समस्त निवासी दैनिक वेतन भोगी स्तर के श्रमिक और अधिकांश मिल मजदूर थे । तब उन्होंने उनके जीवन के संघर्ष को बहुत करीब से देखा । मजदूरों को अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए कितनी कठिनाइयों और कितना संघर्ष का सामना करना पड़ता है । तब बाबा साहब जल्दी भारत के इस बड़े मजदूर तबके के जीवन में आशा की किरण बन गए ।
15 अगस्त 1936 को बाबा साहब ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ILP का गठन किया । इन संगठन के द्वारा भारत में जाति और पूंजीवादी संरचनाओं को चुनौती दिया और उसके बाद 1938 में कोकण क्षेत्र से मुंबई तक 20000 काश्तकारों का एक मार्च आयोजित किया गया । जो तत्कालीन समय का सबसे बड़ा ऐतिहासिक मार्च था । उस मार्च ने श्रमिक वर्ग और जाति व्यवस्था का विरोध करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई ।औद्योगिक विवाद विधेयक 1938 में जब कांग्रेस की सरकार के द्वारा लाया गया ।उन्होंने इसकी आलोचना की ।विधेयक में कई श्रमिक विरोधी प्रावधान जैसे हड़ताल और विरोध को अवैध ठहरना ,छंटनी का अधिकार, मालिक को बिना शर्त अधिकार देना, डॉक्टर अंबेडकर ने विधेयक को खराब श्रमिकों के लिए काला कानून होने का आरोप लगाया । तब डॉक्टर अंबेडकर ने अपने अटूट साहस से विरोध किया ।सरकार को उक्त विधेयक पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया ।
तब जाकर उक्त विधेयक रद्द कर श्रमिक अनुकूल बनाने के लिए संशोधित किया गया । डॉ अंबेडकर ने 1942 में श्रम विभाग और पहले श्रम मंत्री बने और भारतीय मजदूर के अधिकारों को सुरक्षित किया ।बाबा साहब के पहल से ही मातृत्व लाभ अधिनियम ,महिला श्रम कल्याण को महिला और बाल श्रम संरक्षण अधिनियम, कोयला खदानों में भूमिगत कार्य पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध की बहाली
कर्मचारी, राज्य बीमा ESI भी बाबा साहब की देन है । सबसे महत्वपूर्ण डॉ अंबेडकर ने श्रमिकों द्वारा हड़ताल के अधिकार को मान्यता दी और ट्रेड यूनियन को अनिवार्य मान्यता के लिए कानून लाया । बाबा साहब के ही विजन से न्यूनतम वेतन अधिनियम का निर्माण किया गया । जिसमें महंगाई भत्ते ,छुट्टियां ,अवकाश ,वेतनमान में संशोधन कंपनी द्वारा किया जाना अनिवार्य बनाया।बाबा साहब के प्रयास से ही कार्य के घंटे में 14 घंटे से काम कर मजदूरों के लिए 8 घंटे कार्य करने की अनिवार्यता की गई । प्रारंभ में मजदूरों को 14 घंटा कार्य करना पड़ता था । जो अभी आमनीवय लग रहा है ।उसे समय वह सहज लगता था और मजदूरों को श्रमिकों को कभी भी मनुष्य ना समझ कर मशीन के रूप में उद्योगपतियों के द्वारा कार्य कराया जाता था ।
स्वतंत्र भारत में भारतीय संविधान के अंतर्गत श्रमिकों के अधिकार कैसे सुरक्षित किए जाएं ,इसके लिए उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया । श्रम कानून को समवर्ती सूची में भारतीय संविधान में लाया गया ।जिससे केंद्र और राज्य सरकार दोनों श्रमिक के हित में कानून बना सकते हैं । यह व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई ।जो डॉक्टर अंबेडकर के प्रयास से ही हो पाया ।आज आप स्वतंत्र भारत में जब स्वास्थ्य बीमा और आंदोलन का अधिकार *न्यूनतम वेतन अवकाश लाभ ,समय-समय पर वेतन में संशोधन ,इन सब का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, यह सभी डॉक्टर अंबेडकर की देन है । इसका श्रेय डॉक्टर अंबेडकर के दूरदर्शिता को दिया जा सकता है ।उन्होंने स्वयं गरीबी और भेदभाव को इतने करीब से देखा और उन्हें इतने कटु अनुभव हुए ।उन्होंने श्रमिकों के जीवन में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए अपने विजन को मिशन बनाया ।
बाबा साहब का सफर संघर्षों से भरा हुआ है ।उन्होंने स्वयं गरीबी और उसी से प्रेरणा लेकर उसे समाप्त करने का बीड़ा उठाया ।आज लोग उन्हें श्रमिकों के मसीहा के रूप में याद करते हैं ।उन्हें शत-शत नमन ।उनके द्वारा किए गए कार्य जब तक सूरज चांद रहेगा भारत के हर आमजन को प्रेरणा देता रहेगा!!!!
खामोश मिजाजी तुम्हें जीने नहीं देगी
अगर जिंदा हो तो जिंदा होने का एहसास करना होगा —–‐——
दीपक पाण्डेय ,भूतपूर्व श्रम अधिकारी – छ ग शासन बिलासपुर