editorial

बाल श्रमिक मजबूरी या  नियोजक के लिए जरूरी..?

12 जून अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रमिक निषेध दिवस पर विशेष

घर से मस्जिद है बहुत दूर,
चलो यू कर ले किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये….
                                          निदा फाजली
12 जून अंतरराष्ट्रीय बाल श्रमिक निषेध दिवस  के रूप मे पूरा दुनिया में मनाया जाता है।भारत मे बाल श्रमिक 2011 की जनगणना मे  मे लगभग तत्कालीन समय मे 1.01 करोड. बाल श्रमिक सर्वे मे पाये गये थे  ।शासकीय आंकडे है हकीकत बहुत अधिक है ।अब 2026 फरवरी मे जनगणना प्रारंभ होने  वाली है ।पता नहीं जनगणना के फॉर्म में बाल श्रमिक संबंधी कालम है या नहीं । सिर्फ 12 जून बाल श्रम के लिए जागरूकता बढाना जरूरी नही  । ये.काम 7/24 होना चाहिए  ।बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकार संगठन प्रत्येक व्यक्ति  मिलकर ईमानदार प्रयास करेंगे तभी संभव होगा  ।
बाल श्रमिक कानूनी समस्या से अधिक सामाजिक समस्या है  ।बाल श्रमिक के जो प्रमुख कारण है आमजन  जिसे समझता है
वह है अपने बच्चों को दायित्व नहीं संपत्ति समझना और इसे गरीबी जनसंख्या वृद्धि भूख से जोड़ता है । यह सब करण को दृष्टिगत रखते हुए किसी भी संगठन के द्वारा सरकार के द्वारा और व्यक्ति के द्वारा बाल श्रमिक निषेध हेतु ईमानदार प्रयास नहीं किया जाता  ।जबकि पूरे देश में आज की स्थिति में लगभग 2 करोड़ से अधिक बाल श्रमिक कार्यरत होंगे  ।यह सब उक्त कारण से ही कार्यरत नहीं है।जब इसमें गहन अनुसंधान हुआ शोध हुआ जिसमें यह बात निकाल कर सामने आई कि बाल श्रम एक मजबूरी नहीं …नियोजकों के लिए मालिकों के लिए जरूरी है ।
पूरे देश में कांच के काम में कालीन के काम में, होटल में घर में ,ईट भुट्टों मे,  परंपरागत व्यवसाय में ,जहां, परिवार के माता-पिता के साथ वह कार्य करते हैं और शिक्षा से वंचित किए जाते हैं  ।छत्तीसगढ़ में विशेष कर कोसा   वस्त्र उद्योग तथा ईंट भट्टे, शहर से बाहर ढाबा , बस स्टेशन ,रेलवे स्टेशन के करीब होटल एवं बड़े अधिकारी तथा पाश कालोनी  पैसे वालों के घर घरेलू कार्य करते बाल श्रमिक पाए जाएंगे  ।अन्य भवन सडक निर्माण कार्य  में बाल श्रमिक अधिकांश मात्रा में नियोजित है  ।क्योंकि सस्ता श्रम है बाल श्रमिकों में एनर्जी, शारीरिक क्षमता, उनकी दृष्टि जो रहती है, महीन से महीन चीजों को बिना दूरबीन और चश्मा के देख लेती है*और कुशलता पूर्वक परिणाम मूलक कार्य करने में सक्षम होते हैं ।एक वयस्क श्रमिक को नियोजित करने में मलिक को सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम वेतन से भी अधिक वेतन का भुगतान करना पड़ता है  ।क्योंकि उनमें सौदा गिरी की क्षमता रहती है ।
साथ ही ओवर टाइम ,बोनस भुगतान ,उपादान भुगता,न भविष्य निधि ,कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा योजना इन सबके भी अंशदान  श्रमिक के मालिक को देने पड़ते हैं  । जबकि बाल श्रमिक का कोई वैधानिक अभिलेख मलिक रखता ही नहीं   ।उन्हें थोड़े बहुत पैसे देकर 12-12 घंटे कार्य कर लेता है ।न ओवर टाइम देता है, ना बोनस देता है ,ना उपरोक्त एक भी श्रम अधिनियम का पालन करता है।  एक मिथक पूरे समाज में वह बना दिया है कि बच्चे काम नहीं करेंगे तो भूखे मरेंगे और इसे पूरा देश मान लिया है । इस पर देश के राष्ट्रीय मीडिया का भी बहुत बड़ा योगदान है । जिसके लिए यह विषय ग्लैमर से नहीं जुड़ा है  ।अतः उसे नीरस समझ कर कभी भी प्राइम टाइम में स्थान नहीं दिया जाता और जो मिथक है वो समाज के शासन श्रमिक संगठन के Believe system मै धारणा बन गया है ।
12 जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रमिक निषेध सप्ताह के रूप में परंपरागत कालम लिखकर और शासकीय आयोजन कर अपना कर्तव्य निभा लिया जाता है ।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 में मानव तस्करी जबरन श्रम प्रतिबंध है । अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से काम के बच्चों का बाल श्रम प्रतिबंध है ।अनुच्छेद 39 में उन सिद्धांतों का वर्णन है  । राज्यों को पालन करना अनिवार्य है । जिसमें बालकों के शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण पर अनिवार्य रूप से प्रत्येक राज्य को कार्य करना है ।शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है । संविधान संशोधन के अंतर्गत…..।साथ ही संसद द्वारा पारित बाल श्रमिक अधिनियम 1986 एवं बाल श्रमिक संशोधन अधिनियम 2010 के अंतर्गत बाल श्रमिक नियोजन पर कानूनी प्रावधान बहुत कड़े किए गए हैं । बाल श्रमिक अधिनियम देश में पहला अधिनियम है जिसमें कम से कम सजा 6 माह 1 साल का प्रावधान किया गया है  ।Act में अंकित है Not less than 6 month  से 1 year तक  जबकि अन्य अधिनियम  मै अधिकतम सजा का प्रावधान रहता है ।
एक बात जो आईने की तरह साफ है- बाल श्रमिक नियोजन पर फैक्ट्री खदान होटल औद्योगिक संस्थान घरों में काम करने वाले मालिकों का निहित स्वार्थ है । बाल श्रमिक का मुख्य कारण केवल गरीबी ,अशिक्षा और जनसंख्या वृद्धि नहीं है । बाल श्रमिक मजबूरी नहीं है बाल श्रमिक सिर्फ मालिकों के लिए जरूरी है—–।
“””जिंदगी का पता उन्हें क्या मालूम–
जो उम्मीद की खोज में उम्र गुजार देते हैं—
सब उठो
 मै भी उठूं
तुम भी ऊठो
तुम भी उठो
कोई खिडकी इसी दीवार मे खुल जायेगी
—–स्वर्गीय कैफी आजमी
दीपक पाण्डेय भूतपूर्व श्रम अधिकारी छ ग शासन बिलासपुर
Back to top button
casibomultrabet girişgrandpashabet girişholiganbet girişvaycasino girişjojobetholiganbet girişcasibomcasibom girişvaycasinojojobetgrandpashabetbets10casibom girişcasibom