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मंत्री का ‘कंधा हुआ इस्तेमाल.? हाईकोर्ट–शासन को भी दिया धोखा..1.67 करोड़ की फाइल पास

रतनपुर….रतनपुर नगर पालिका इन दिनों भ्रष्टाचार का ऐसा गढ़ बन चुका है। जहां न तो शासन के आदेश मायने रखते हैं, न न्यायालय की चेतावनी और न ही सरकारी नियमों की मर्यादा। अब इस निकाय ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कोर्ट और शासन दोनों को अंधेरे में रखकर करोड़ों का भ्रष्टाचार करने के लिए प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं नगरीय निकाय मंत्री अरुण साव के “कंधे” का सहारा लिया है। सवाल बड़ा है — शायद ही मंत्री को इस बात की जानकारी हो कि नगरपालिका का सिंडीकेट उनके नाम का दुरुपयोग कर कोर्ट के आदेश को कटघरे में खड़ा कर दिया  है?

नगर पालिका रतनपुर — भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला

.रतनपुर नगर पालिका इन दिनों भ्रष्टाचार का ऐसा गढ़ बन चुका है, जहां न तो शासन के आदेशों की कोई अहमियत रह गई है और न ही न्यायालय की चेतावनियों का डर। यह वही निकाय है जिसने पहले “कुर्मी समाज भवन” जैसे विभागीय कांड को अंजाम देकर पूरे प्रदेश में चर्चा बटोरी थी। अब एक बार फिर इसने भ्रष्टाचार के खेल में नई पटकथा लिखी है, और इस बार दांव पर है 1 करोड़ 67 लाख रुपए की लागत से बनने वाला “नवीन कार्यालय भवन”।

गड़बड़ियों से भरी निविदा, हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

सूत्रों के अनुसार, इस भवन निर्माण की निविदा प्रक्रिया शुरू से ही गड़बड़ियों से भरी रही। तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण इस निविदा पर उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने पहले ही गंभीर टिप्पणी की थी। विभागीय जांच में तत्कालीन सीएमओ, इंजीनियर और बाबू को निलंबित भी किया गया था। बावजूद इसके रतनपुर नगर पालिका ने शासन के आदेशों को ताक पर रखकर कुटरचित दस्तावेजों को अनदेखा किया गया lऔर निविदा को सत्ता के बल पर आगे बढ़ाया।

 फाइल को वैधता देने की साज़िश

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इन तमाम गंभीर खामियों के बावजूद नगर पालिका ने इस फाइल को ‘कानूनी कवच’ देने के लिए प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं नगरीय निकाय मंत्री अरुण साव के हाथों भूमि पूजन कराया। उद्देश्य साफ था — भविष्य में इस निविदा पर विभागीय जांच की नौबत ही न आए। कोर्ट और शासन से बचाव के लिए मंत्री की छवि और पद का उपयोग ढाल की तरह किया गया।  भ्रष्टाचार को वैधता का चेहरा दिया जा सके।

सरकार और न्यायपालिका को अंधेरे में रखा

 पूरा प्रकरण इस बात का सबूत है कि नगर पालिका रतनपुर न सिर्फ विभागीय आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है, बल्कि शासन और न्यायपालिका — दोनों को अंधेरे में रखकर भ्रष्टाचार को अंजाम दे रही है। किसी निविदा की फाइल के बारीक तथ्यों की जानकारी मंत्री को स्वाभाविक रूप से नहीं होती, लेकिन विभाग के अधिकारियों ने नियमों को दरकिनार कर जिस तरह से इस फाइल को स्वीकृति दी, वह सत्ता के संरक्षण और दबाव की ओर इशारा करता है।

राजनीतिक संरक्षण में बेलगाम हुआ निकाय

रतनपुर नगर पालिका अध्यक्ष की कार्यशैली पहले से ही भाजपा की मूल विचारधारा के विपरीत मानी जा रही है। लगातार विवादास्पद निर्णयों और भ्रष्टाचार के मामलों के बावजूद जिस प्रकार वह खुलेआम शासन–प्रशासन को चुनौती देते नजर आ रहे हैं, उससे यह साफ है कि उन्हें राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। यही वजह है कि नगर पालिका कार्यालय अब नियम-कानूनों से ऊपर खुद को समझने लगा है।

मौन स्वीकृति या नाम का दुरुपयोग—बड़ा सवाल

 सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि पूरे खेल में मंत्री को अंधेरे क्यों रखा गया।  इतनी साहस कि नगर पालिका ने उनके नाम और पद का दुरुपयोग कर करोड़ों के भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया? आने वाले दिनों में इस मामले में बड़े खुलासों की संभावना है। अब देखना दिलचस्प होगा कि शासन–प्रशासन इस फाइल को निरस्त कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करता है या एक बार फिर आंख मूंदे बैठा रहता है।

सरकार और कोर्ट को चुनौती.?

रतनपुर नगर पालिका ने हाईकोर्ट की चेतावनियों और शासन के आदेशों की अनदेखी करते हुए 1.67 करोड़ की भ्रष्ट फाइल को आगे बढ़ाया। मंत्री के नाम का सहारा लेकर फाइल को वैधता देने की कोशिश की गई।, ताकि जांच और न्यायालय की कार्रवाई से बचा जा सके। और लोग निकाय प्रशासन की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने लगे।

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