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प्राचार्य पदोन्नति :सभी को नहीं मिल रहा एक समान अवसर ,अलग-अलग नाव से नदी पार कराना चाह रहा है विभाग

रायपुर (मनीष जायसवाल )।छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग की टी संवर्ग के 1335 प्राचार्य पदों की पदोन्नति में जिसका डर था वहीं हुआ। काउंसलिंग विवाद की ओर बढ़ चली है। सोमवार को प्राचार्य पदोन्नति फोरम ने इंद्रावती भवन में संचालक ऋतुराज रघुवंशी से मिल कर नियमों की विसंगतियों पर तंज कसने के अंदाज में ज्ञापन सौंपा। लेकिन छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय के संचालक ने इसे शासन का निर्देश बता हाथ झाड़ लिया है..। ज्ञापन के बहाने एक विवाद इस प्रक्रिया से जुड़ गया है। फोरम चाहता है की प्रक्रिया आगे बढ़े और सब को सामान अवसर मिले। जो मिल नहीं रहे है।

स्कूल शिक्षा विभाग प्राचार्य पदोन्नति को दो अलग अलग नाव से नदी पार करा रहा है।
415 व्याख्याओं के लिए मध्य सत्र का हवाला दिया जा रहा है। वही करीब 840 पदों के लिए मध्य सत्र की श्रेणी नहीं है..। चर्चा आम है कि अपनी बारी आने पर नए नियम अपने या किसी की सुविधा से बनाए गए है। ये मंत्रालय के वही अधिकारी है जिन्होंने बीते वर्ष के मध्य सत्र में ही धड़ाधड़ शिक्षकों के ट्रांसफर किए और मध्य सत्र में धड़ाधड़ शिक्षक संवर्ग की पदोन्नतियों के आदेश मान्य किए थे..।

विडंबना यह है कि पूरी पारदर्शिता से काउंसलिंग का राग अलापा जा रहा है..। वहीं 415 व्याख्याताओं को उसी स्कूल में पदोन्नत कर विशेष मेहरबानी दिखाई जा रही है..? जबकि इनमें से बहुत से व्याख्याता इस मेहरबानी को लेना नहीं चाहते है..! क्या यह कुछ सुविधाजनक स्कूलों में जमे शिक्षकों की सेटिंग है..? इनके लिए विभाग का तर्क है कि मध्य सत्र को देखते हुए वरिष्ठता के आधार पर ऐसा किया जा रहा है..!

सोशल मीडिया में चर्चा है कि यह नियम सहायक शिक्षक या मिडिल स्कूल प्रधान पाठक की काउंसलिंग में क्यों नहीं दिखा? संवैधानिक समानता की गारंटी देने वाले विभाग के कर्ता धर्ता चुप क्यों है ..? 1335 में से 415 पदों पर चुनिंदा शिक्षकों को लाभ देना संवैधानिक सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाने जैसा नहीं तो और क्या है.?

विभाग के अधिकारी भूल रहे है कि छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग की हकीकत इतनी आसानी से नहीं छुपती। अब
लोक शिक्षण संचालनालय की अलग-अलग संवर्गो के लिए अलग नियम बनाने के निर्देश कवायद सवालों के घेरे में है..!

संचालक से हुई मुलाकात के बाद प्राचार्य फोरम का कहना है कि बड़े सालो के बाद इस पद पर पदोन्नति हो रही है हमारे बहुत से साथी रिटायरमेंट कगार पर है। काउंसलिंग तय तारीख पर हो, ताकि कोई कानूनी अड़चन न आए..हम यही चाहते है।

लेकिन अगर और मगर के बीच एक सवाल यह है कि अगर यह प्रक्रिया कोर्ट में चुनौती दी गई तब विभाग की यह सेटिंग संवैधानिक जांच की कसौटी पर खरी नहीं उतरी तब की स्थिति में क्या होगा .?

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