Bilaspur

जमानत अर्जी खारिज: हाईकोर्ट का सख्त रुख..कहा..,6 माह में ट्रायल पूरा करें..

बिलासपुर …छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में, सुरक्षा बल पर विस्फोटक हमले और कांस्टेबल की हत्या के मामले में गिरफ्तार नक्सली सहयोगियों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि राज्य के विरुद्ध अपराधों, विशेषकर जब आरोपी गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानूनों के अंतर्गत आरोपित हों, उस स्थिति में जमानत नहीं दी जा सकती।

क्या है पूरा मामला

यह मामला 17 नवंबर 2023 का है, जब आई.टी.बी.पी. कांस्टेबल जोगेंद्र कुमार, गरियाबंद जिले के मैनपुर क्षेत्र में मतदान केंद्र से लौटते समय बड़ेगोबरा के पास आईईडी विस्फोट का शिकार हुए। यह हमला जानबूझकर किया गया था और इसमें कांस्टेबल की मृत्यु हो गई थी।

इस गंभीर वारदात में शामिल होने के आरोप में पुलिस ने तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया:

  • भूपेन्द्र नेताम उर्फ भूपेन्द्र ध्रुव (40 वर्ष)
  • मोहनलाल यादव उर्फ मोहन यादव (36 वर्ष)
  • लखनलाल यादव उर्फ लाखन यादव (37 वर्ष)
    तीनों गरियाबंद जिले के मैनपुर थाना अंतर्गत बड़ेगोबरा गांव के निवासी हैं।

इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, शस्त्र अधिनियम तथा यूएपीए की कई धाराओं के तहत गंभीर आरोप दर्ज किए गए हैं।

हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला:

न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने जो साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं — जिनमें आरोपियों की प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से जुड़ाव, उनके द्वारा डेटोनेटर, तार और अन्य विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति, षड्यंत्र बैठकों में भागीदारी, संरक्षित गवाहों के बयान, तथा उनके खुलासे के आधार पर की गई बरामदगियाँ शामिल हैं — वे इस बात का प्रथम दृष्टया संकेत देते हैं कि आरोपी बड़ी आतंकवादी गतिविधि की योजना में संलिप्त थे।

यूएपीए की धारा 43-डी(5) का हवाला देते हुए कोर्ट ने दोहराया कि जब प्रथम दृष्टया आरोप सिद्ध होते हों, तो जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि लंबी जेल या आर्थिक-सामाजिक कठिनाइयाँ भी, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े आरोपों की गंभीरता पर भारी नहीं पड़ सकतीं।

6 महीने में ट्रायल पूरा करने का निर्देश:

हालांकि, हाईकोर्ट ने विशेष न्यायालय (एनआईए), रायपुर को निर्देशित किया है कि यदि कोई वैधानिक बाधा न हो, तो 6 माह की अवधि के भीतर ट्रायल को पूर्ण किया जाए। साथ ही, अपीलकर्ताओं को निर्देशित किया गया है कि  मुकदमे में पूर्ण सहयोग करें।

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