जब साहित्यकारों ने वातावरण को बना दिया काव्यमय…छंदशाला की गोष्ठी को बना दिया ऐतिहासिक.. रचा कीर्तिमान

बिलासपुर.. साहित्यिक नवाचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए छंदशाला की मासिक काव्यगोष्ठी ने इस बार एक नई मिसाल कायम की। कार्यक्रम में शामिल सभी कवियों ने बिना डायरी या मोबाइल की सहायता से रचना पाठ किया । गोष्ठी केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं रही, बल्कि काव्य की स्मरणशक्ति और मंचीय आत्मविश्वास का भी अद्वितीय उदाहरण बन गई।
गोष्ठी का आयोजन छंदशाला की संयोजिका डॉ. सुनीता मिश्रा के निवास नर्मदा नगर में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार ओमप्रकाश भट्ट ने किया। मुख्य अतिथि की जिम्मेदारी लब्ध प्रतिष्ठित कवयित्री उषा तिवारी ने उठाया । कार्यक्रम का समीक्षात्मक संचालन डॉ. सुनीता मिश्रा ने किया। संचालन की भूमिका में कवयित्री कामना पांडेय ने सुंदर तालमेल प्रस्तुत किया और अंत में आभार प्रदर्शन छंदशाला के अध्यक्ष विनय पाठक ने किया।
काव्य की विविध रसधाराएं
गोष्ठी में श्रृंगार, विरह, हास्य-व्यंग्य, शांत एवं वीर रस की रचनाओं ने भावनाओं का सजीव चित्रण किया।सुषमा पाठक ने समाज के वैचारिक प्रदूषण पर संवेदनशील कविता सुनाई—“चल सकूं मैं नेक पथ पर, शुद्ध हो मम भावना।”उषा तिवारी ने आंचलिक भाषा में नारी वेदना को अभिव्यक्त किया—का मुख ले गोठियावं परोसिन।”शैलेंद्र गुप्ता ने न्यायपालिका पर तीखा व्यंग्य किया—“कानून है अंधा आज, करता न कोई काज।”विनय पाठक की रचना आध्यात्मिक चेतना से ओतप्रोत रही—जिन चरणों की पवन पावनी रज मस्तक पर ला न सका।”गजानंद पात्रे ने ग्रामीण संस्कृति की टूटती डोर पर चिंता जताई—
“कहां गँवागे गँव मया के।” का सस्वर पाठ कर वातावरण को काव्यमय बना दिया।
अन्य प्रमुख प्रस्तुतियाँ
बाल मुकुंद श्रीवास, मनीषा भट्ट, अवधेश भारत, बुधराम यादव, सरोज ठाकुर, राजेश दुबे, देवेन्द्र शर्मा पुष्प, ललिता यादव, कामना पांडेय, ध्रुव देवांगन, डॉक्टर भास्कर मिश्रा, डॉ. दीनदयाल यादव सहित हूपसिंह क्षत्रिय, पूर्णिमा तिवारी, विपुल तिवारी, सेवक राम साहू ने गीत, ग़ज़ल और मुक्तक के माध्यम से विविध विषयों पर सशक्त अभिव्यक्ति दी। अनामिका शर्मा ने शहीद नूतन सोनी को समर्पित मार्मिक कविता से सभी को भावविभोर कर दिया।
विचारों की गूंज
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए ओमप्रकाश भट्ट ने वर्तमान कवि सम्मेलनों के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।डॉ. मंतराम यादव ने रचनाकारों को अहंकार त्याग कर आत्मविकास की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी।डॉ. सुनीता मिश्रा ने छंदशाला की निरंतर प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए कविता को “अंतस का उद्गार” बताया।