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शिक्षक दिवस पर शिक्षा व्यवस्था की बात – बढ़ती चुनौतियों के बीच असली परीक्षा अब शुरू हुई है…!

बिलासपुर: (मनीष जायसवाल)। शिक्षक दिवस के मौके पर जब पूरे देश में गुरु-शिष्य परंपरा और शिक्षा के महत्व की बातें हो रही हैं, उसी बीच छत्तीसगढ़ को नया स्कूल शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव मिला है। पद संभाले उन्हें पंद्रह दिन हो चुके हैं और बदलते समय व बढ़ती चुनौतियों के बीच असली परीक्षा अब शुरू हुई है…।

स्कूलों की गुणवत्ता, परीक्षाओं के नतीजे, विभाग की अव्यवस्थित कार्यशैली, शिक्षकों की जवाबदेही,उनकी मांगे मुद्दे समस्याएं , डिजिटल व्यवस्था जैसी चुनौतियां और नई शिक्षा नीति 2020 का राज्य की भौगोलिक, सांस्कृतिक व सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए लागू किया जाना किसी एक व्यक्ति के बूते का नहीं हैं। यह काम एक मज़बूत और संतुलित टीम की मांग करता है..। बड़ा सवाल यह है कि क्या मंत्री जी के पास ऐसी सक्षम टीम है, जो शिक्षा व्यवस्था की जटिलताओं से निपट सके..?

अगर शासन और राजनीति की तुलना क्रिकेट से करें, तो मंत्री टीम के कप्तान होते हैं। लेकिन कप्तान अकेले मैच नहीं जीत सकता..। उसे भरोसेमंद बल्लेबाज़ चाहिए, मुश्किल वक्त में विकेट लेने वाले गेंदबाज चाहिए, चौकस फील्डर चाहिए और रणनीति बनाने वाला कोच चाहिए। शिक्षा का यह मैच तभी जीता जा सकता है, जब पूरी टीम तालमेल से खेले..।

मगर इन शुरुआती 15 दिनों में तस्वीर बहुत उत्साहजनक नहीं दिखती। शनिवार को स्कूल कब लगेंगे, इस पर ही स्पष्ट निर्णय नहीं आ पाया है। हर ब्लॉक में अलग-अलग स्थिति है, जबकि शनिवार का महत्व शुरू से रहा है क्योंकि यह हाफ डे होता है। इस छोटे लेकिन अहम मुद्दे पर भी एकरूपता न होना बताता है कि पुरानी टीम के साथ नई सोच की तालमेल अभी तक नहीं बैठ पाई है..!

अमेरिका की राजनीति में हर मंत्री के पास नीति विशेषज्ञों और रणनीतिकारों की मज़बूत टीम होती है..। वे केवल परंपरागत अफसरशाही पर निर्भर नहीं रहते..! सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ का शिक्षा मंत्रालय क्या कभी इस दिशा में आगे बढ़ेगा, या फिर हमेशा की तरह नौकरशाही तक ही सीमित रहेगा..?

जानकार मानते हैं कि आज मंत्री को सिर्फ पाठ्य पुस्तक और पाठशाला तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें कप्तान की तरह सोचना होगा, जिसके पास बहु आयामी टीम हो..। इसमें अफसर हों, जो नियम और बजट संभालें, टीम शिक्षक भी हो जो असली हाल बताए और नीतियों को ज़मीन से जोड़ें और साथ ही वे लोग हों, जो आपदा या आकस्मिक परिस्थिति में तुरंत सक्रिय हो सकें..।

सबसे अहम है आलोचना और सच बोलने वालों की भूमिका। हां में हां मिलाने वाले पल भर का सुकून दे सकते है, पर दिशा नहीं दिखा सकते…। बिना आलोचना के सुधार अधूरा ही रहेगा..!

छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था अधूरी इमारत जैसी है..। नींव रखी जा चुकी है, दीवारें खड़ी है, लेकिन छत अधूरी और खिड़कियां टूटी हुई हैं। नया मंत्री चाहे तो ऊपर-ऊपर रंग-रोगन कर चमका सकता है, या फिर असली मेहनत करके इसे मुकम्मल बना सकता है..। इसके लिए राजमिस्त्री भी चाहिए, इंजीनियर भी और मज़दूर भी जो ईंट-दर-ईंट जोड़कर टिकाऊ ढांचा खड़ा करे..।

हमारा मकसद तालियां बजाना नहीं, सवाल उठाना है..। और सवाल यही है मंत्री जी, क्या आपके पास वह टीम है, जो छत्तीसगढ़ के लाखों बच्चों का भविष्य संवार सके..? या हमें इंतज़ार करना पड़ेगा उस दिन का, जब शिक्षा का यह मैच सचमुच जीत लिया जाएगा..?

शिक्षक दिवस हमें याद दिलाता है कि शिक्षा सिर्फ कक्षा और किताब तक सीमित नहीं, बल्कि समाज और भविष्य की बुनियाद है। यह बुनियाद तभी मज़बूत होगी, जब शिक्षक, नीति और नेतृत्व एकजुट होकर काम करें। यही असली श्रद्धांजलि होगी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को, और यही सबसे बड़ा तोहफ़ा उन बच्चों को, जो आने वाले कल के नागरिक बनेंगे…।

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