ChhattisgarhEducation
शिक्षकों की ट्रांसफर लिस्ट देखकर छिड़ी बहस….! किस ओर जा रहा शिक्षा रथ ….?

Join WhatsApp Group यहाँ क्लिक करे
बिलासपुर (मनीष जायसवाल) । गुरुजी मिलते है तो मुद्दे बनते है चर्चाएं होती है। ऐसी ही एक चर्चा शिक्षकों के ट्रांसफर सूची सामने आने के बाद हुई..! जहां बात कौटिल्य के अर्थशास्त्र तक पहुंच गई। जिसमे कौटिल्य ने शासन को रथ के रूप में बताया है..। जहां सारथी दिशा देता है, नीतिकार पहिए बनते हैं और कार्यान्वयन करने वाली टीम घोड़े की तरह रथ को आगे बढ़ाती है। यदि सारथी दिशाहीन हो जाए, पहिए कमजोर हों या घोड़े असमंजस में पड़ जाएं तो रथ अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंचता। छत्तीसगढ़ का स्कूल शिक्षा विभाग इस समय ऐसी ही स्थिति में दिख रहा है…! ऐसा गुरुजी मान कर चल रहे है..। सत्ता में लौटी सरकार को दो साल होने को है। विभाग को तीसरा मंत्री मिल चुका है, लेकिन नीतिगत भ्रम और रणनीति कारों की कमी ने इस विभाग को लगातार विवादों में रखा है। चर्चा इस बात की भी है कि बीते करीब दो साल ट्रांसफर पोस्टिंग, प्रभार वाद और अस्थिर योजनाओं में समय काटते हुए दिखाई दे रहे है..। छात्र,पालक और अध्यापक के मुख्य मुद्दे गायब है। सिर्फ प्रयोग चल रहा है।
गुरुजी चर्चा में बताते है कि जियो फेंसिंग आधारित विद्या समीक्षा केंद्र (VSK) ऐप नया विवाद ला रही है। विचार अच्छा है । उपस्थिति केवल स्कूल परिसर में ही दर्ज होगी, लेकिन बिना पर्याप्त नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर के यह योजना संकट बन सकती है। महासमुंद, बेमेतरा, दंतेवाड़ा, सूरजपुर और रायगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट शुरू होने वाला है, पर कमजोर नेटवर्क वाले इलाकों में यह व्यावहारिक नहीं दिखता। मध्यप्रदेश के उदाहरण बताते हैं कि शिक्षक सिग्नल पाने के लिए छतों पर चढ़ रहे हैं, GPS त्रुटियों से उपस्थिति गड़बड़ा रही है। शिक्षक संगठनों ने कैमरा और लोकेशन एक्सेस की अनिवार्यता को लेकर डेटा सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं। योजनाकार नीति बनाते समय स्थानीय हालात नजर अंदाज कर दिए है।
खुल कर नहीं बोल सकने वाले गुरुजी इशारा करते हुए बताते है कि सरकार बनने के बाद शिक्षकों के लिए कोई स्पष्ट ट्रांसफर नीति नहीं बनी। लेकिन प्रशासनिक , स्वैच्छिक और आपसी ट्रांसफर कैसे हो रहे है कोई नहीं जानता है। पर सब जानते है कि समन्वय किस वजह से हो रहे है..।
चाय पर होती चर्चा में गरमा गरम बात यह भी निकल कर आती है कि बुधवार को आई ट्रांसफर सूची में कुछ चुनिंदा नामों से ट्रांसफर की चाह रखने वाले और युक्तियुक्तकरण में हटाए गए शिक्षक स्कूल शिक्षा मंत्री के इस कदम से खुश होंगे । सरकार की नीतियों की तारीफ करेंगे ..?
गुरुजी बड़ा वोट बैंक है अंगीठी पर चढ़ी केतली से गिरती हुई चाय दिखाते हुए कहते है कि अब तक स्कूल शिक्षा में विभागीय समन्वय की बहुत बड़ी कमी रही है। पूर्व स्कूल शिक्षा सचिव आईएएस विवेकशील और आईएएस गौरव द्विवेदी के बाद विभाग के सिस्टम को समझने वाले अफसर का अकाल रहा है..। विभाग के काम काज में वही गलती दिख रही है जो पिछली सरकार में भी हुई थी ..! तब भी तबादलों की वीआईपी पालिसी से विभाग की छवि और मनोबल कमजोर हुआ था, अब भी वही दोहराव दिख रहा है।
गुरुजी चाय का घूट पीते हुए बताते है कि युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया के कागजी काम अभी भी जारी है, बड़े पैमाने में गड़बड़ियां तो हुई है। जवाबदेही तय नहीं की गई बहुत से शिक्षको की याचिका का जवाब विभाग से नहीं मिल पाया है। विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जानते हैं कि कितना खून पसीना इस योजना को अमली जामा पहनाने और दाग साफ करने में लगाया गया है।
गुरुजी की जमघट में आक्रोश दिखाई देता है बात निकल कर आती है कि ऐसे में बीच-बीच में बिना नीति-नियम के ट्रांसफर आदेश जारी होना समझ से परे है। इससे फिर से शिक्षकों की कमी और असंतुलन फिर बढ़ेगा। जब रायपुर से आदेश जारी होते हैं, तो यह नहीं देखा जाता कि संबंधित स्कूल या ब्लॉक में पद उपलब्ध है या वेतन के लिए आवंटन है या नहीं। यही अव्यवस्था बाद में भुगतान और नियोजन की जटिलता बढ़ा देता है।
गुरुजी कौटिल्य के अर्थशास्त्र का तर्क देते हुए कहते है। जब अमात्य यानी नीतिकार जनता की वास्तविकता से कट जाए, तो नीति दुर्गति की ओर जाती है। शिक्षा विभाग की वर्तमान स्थिति यही दर्शा रही है…। विषय-विशेषज्ञ रणनीतिकारों की कमी और सलाह की अनदेखी से नीति और क्रियान्वयन का समन्वय टूट रहा है..।
विदा लेने से पहले गुरुजी कहते है कि यदि छत्तीसगढ़ को शिक्षा के क्षेत्र में सशक्त बनाना है, तो कौटिल्य की सीख याद रखनी होगी..। नीतिकारों की मज़बूत टीम बने, नीति और कार्यान्वयन में तालमेल हो, और डिजिटल योजनाओं को स्थानीय वास्तविकताओं के अनुरूप ढाला जाए। जब तक यह त्रिवेणी नीति, नीतिकार और रणनीति संतुलित नहीं होगी, तब तक शिक्षा का रथ मंज़िल से भटकता रहेगा..। अब वक्त है कि सरकार नीति की दिशा तय करने से पहले, रथ के हर पहिए की आवाज़ सुने..!
नए मंत्री अभी विभाग का इमला सीख रहे हैं, इसलिए उनसे तुरंत नीतिगत बदलाव की उम्मीद फिलहाल जल्दबाज़ी होगी..! पर वो जल्दबाजी में क्यों है .?