जन्म से पहले लड़ाई, जन्म के बाद नदी — आदिवासी मां ने रास्ते में दिया बच्चे को जन्म…व्यथा पर खामोश सिस्टम

बलरामपुर/वाड्रफनगर( पृथ्वीरलाल केसरी).. बलरामपुर-रामानुजगंज जिले से एक हिला देने वाली तस्वीर सामने आई है,।जो सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई को बयां करती है। सोनहत गांव की एक पंडो जनजाति की गर्भवती महिला ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में बच्चे को जन्म दे दिया।, क्योंकि वहां तक पहुंचने के लिए न तो सड़क है, न पुल और न ही एंबुलेंस सेवा।
महिला को प्रसव पीड़ा होने पर गांव वालों ने अस्पताल ले जाने की कोशिश की। लेकिन रास्ते में ही उसने बच्चे को जन्म दे दिया। स्थिति इतनी भयावह थी कि नवजात को गोद में लेकर महिला को नदी पार करनी पड़ी। यह दृश्य न सिर्फ दर्दनाक था बल्कि सवालों से भरा भी — आखिर कब तक आदिवासी अंचलों की माताएं सिस्टम की लापरवाही का शिकार बनती रहेंगी?
उसके बाद महिला को गांववालों ने बाइक पर बैठाकर 15 किलोमीटर दूर स्थित रघुनाथनगर सिविल हॉस्पिटल पहुंचाया।, जहां मां और बच्चे का इलाज चल रहा है। गनीमत रही कि दोनों सुरक्षित हैं, लेकिन यह तो किस्मत थी, व्यवस्था नहीं।
विकास के खोखले दावों की खुली पोल
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद यह घटना बताती है कि आदिवासी अंचलों में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। सड़कें नहीं, पुल नहीं, एंबुलेंस नहीं — फिर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच कैसे होगी? ये वही क्षेत्र हैं जहाँ हर बजट में विकास के दावे गूंजते हैं, लेकिन हकीकत आज भी पैदल चलती मां और नदी में तैरते नवजात की तस्वीर में दिखती है।
अब सवाल यह उठता है…
घटना के बाद कई सवाल खडे हो गए हैं। सवाल उठने लगे हैं कि क्या केवल अस्पताल की इमारत बना देना पर्याप्त है?जब तक सड़क और पुल नहीं होंगे, क्या स्वास्थ्य सेवाएं गांव तक पहुंच पाएंगी? आदिवासी जनजातियों को क्या हमेशा ऐसे ही भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा?
प्रशासन को चेतने की जरूरत
सरकार को चाहिए कि ऐसे दुर्गम इलाकों की प्राथमिकता पर आधारभूत सुविधाओं की बहाली करे। सड़क और पुल निर्माण को पहले पायदान पर रखा जाए, ताकि किसी और मां को रास्ते में बच्चा न जनना पड़े और किसी नवजात को जन्म के पहले दिन नदी न पार करनी पड़े।