रतनपुर ‘घूसकांड’ की खुली पोल — बारकोड ने खोला घूस का दरवाजा, नोटिस मे दिखा साजिश — प्रशासन पर सवालों की झड़ी

बिलासपुर…प्रदेश में नगर पालिका परिषद रतनपुर अब भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है। इस पहचान को मजबूत करने में नगर पालिका अध्यक्ष लव कुश कश्यप, मुख्य नगर पालिका अधिकारी खेल कुमार पटेल और अभियंता शिरिल भास्कर की भूमिका पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। खुलेआम कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के नए खुलासे सामने आ रहे हैं, परंतु सत्ता के संरक्षण में यह तंत्र अब भी जांच से दूर बना हुआ है।
भाजपा के नगर पालिका अध्यक्ष का दावा है कि उसका उपमुख्यमंत्री से नजदीकी रिश्ता है। शायद यही कारण है कि अब तक जांच की आंच अध्यक्ष तक नहीं पहुंची है। किंतु एक गलती ने नगर पालिका अध्यक्ष लव कुश कश्यप को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यह ठीक वैसा ही हो गया है— मानो “चोर की दाढ़ी में तिनका” खुद ही दिख गया हो।
22 को शिकायत, 24 को नोटिस — दबाव या डर
रतनपुर घूसखोरी कांड की जड़ 22 सितंबर की शिकायत में है,। जिसमें नगर पालिका के उप अभियंता ने ठेकेदार से व्हाट्सऐप चैट और बारकोड के जरिये कमीशन मांगा था। ठेकेदार विक्रांत तिवारी ने सबूतों के साथ शिकायत कलेक्टर, विभाग के संचालक और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक भेजी थी।
लेकिन चौकाने वाली बात यह रही कि सिर्फ दो दिन बाद, 24 सितंबर को, नगर पालिका अध्यक्ष लव कुश कश्यप ने वकील के माध्यम से ठेकेदा विक्रांत को मानहानि का लीगल नोटिस भेज दिया। यही नोटिस अपने आप में भ्रष्टाचार की नई डिक्शनरी बन गया —जहां कमीशनखोरी को सरकारी कार्य, भ्रष्टाचार की शिकायत को परिषद की छवि धूमिल करना, और सत्य उजागर करने को मानसिक प्रताड़ना बताया गया।
नोटिस में चूक या षड्यंत्र?
मानहानि नोटिस के बिंदु क्रमांक 2 में नगर पालिका अध्यक्ष ने शिकायतकर्ता को “पूर्व ठेकेदार” बताया, जबकि परिषद ने कुछ ही दिन पहले उसी ठेकेदार को कार्य संपादन का पत्र जारी किया था। यह विरोधाभास महज़ भूल नहीं — बल्कि ऐसा लगता है कि फाइलों में खेल कर ठेकेदार के अनुबंध को निरस्त करने की साजिश शुरू की जा चुकी है।
अध्यक्ष का यह कदम शिकायत वापस लेने के लिए दबाव का कारण माना जा रहा है। क्योंकि इतनी बड़ी “चूक” किसी साधारण गलती से नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक डराने की रणनीति से उपजी लगती है।
सत्ता का संरक्षण, जांच की चुप्पी
भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत, सार्वजनिक शिकायत, लगातार मीडिया रिपोर्ट और ठोस प्रमाणों के बावजूद आज तक मुख्य नगर पालिका अधिकारी, अभियंता, और अध्यक्ष — तीनों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
सरकार की यह चुप्पी अब सवाल बन चुकी है कि क्या रतनपुर में भ्रष्टाचार की फाइलें सत्ता की छतरी के नीचे सुरक्षित रखी जा रही हैं?
‘सिस्टम’ बनाम ‘शिकायतकर्ता’ — नई परिभाषा
नगर पालिका अध्यक्ष का लीगल नोटिस केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक सिस्टम की मानसिकता का आईना है। जहां भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले को ही अपराधी की तरह पेश किया जा रहा है।
शिकायतकर्ता विक्रांत तिवारी पर “नगर पालिका परिषद की छवि धूमिल करने, सरकारी कार्य में बाधा डालने और मानसिक प्रताड़ना देने” का आरोप लगाकर मानो यह संदेश दिया गया है कि “सच बोलोगे तो सजा पाओगे।”
घूसखोरी का लीगल आवरण
रतनपुर का यह कांड केवल एक नगर पालिका की कहानी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सड़ांध है —जहां भ्रष्टाचार की शिकायत पर नोटिस मिलता है, जहां सवाल उठाने पर धमकी दी जाती है, और जहां घूसखोरी को “सरकारी कार्य” की संज्ञा दी जाती है।
अब देखना यह है कि यह “लीगल नोटिस वाला षड्यंत्र” आगे कौन-सा नया गुल खिलाता है। फिलहाल जनता यही पूछ रही है —क्या रतनपुर में ईमानदारी अपराध बन चुकी है?