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व्याख्याता से प्राचार्य पद पर पदोन्नति : क्या नए विवाद को जन्म दे रही शिक्षा विभाग की कार्य शैली…? 

रायपुर:(मनीष जायसवाल) स्कूल शिक्षा विभाग के शिक्षक युक्तियुक्तकरण में विभाग की कार्यशैली पर उठा विवाद अभी खत्म हुआ भी नहीं था कि विभाग अब व्याख्याता से प्राचार्य पद पर पदोन्नति में अपनी कार्यशैली की वजह से नया विवाद खड़ा करने वाला है..।

लोक शिक्षण संचालनालय की ओर से टी संवर्ग के प्राचार्यो के लगभग 840 पदों की काउंसलिंग के लिए 20 अगस्त से 23 अगस्त 2025 तक समय सीमा जारी कर नियम सार्वजनिक कर दिए गए हैं।

न्यायालयीन प्रकरण की वजह से अभी ई संवर्ग की प्राचार्य पदोन्नति नहीं हो रही है। वही टी संवर्ग में 1335 पदों पर पदोन्नति होनी हैं।

रिटायर हो चुके शिक्षकों को छोड़ कर लगभग 400 व्याख्याता शिक्षकों को संभवतः उसी स्कूल में पोस्टिंग देने या अन्यत्र प्रशासनिक पदों पर पदस्थापना देने की तैयारी चल रही है ,जहां पर वे प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत या फिर जहां प्राचार्य नहीं और संभवतः वरिष्ठ व्याख्याता के रूप में कार्यरत है।

या फिर प्रभारी अधिकारी के रूप में जिले से लेकर ब्लॉक तक बहुत से गैर शिक्षकीय पदों पर सेवा दे रहे है। ऐसे व्याख्याता 400 में से तो नहीं ..!

आम तौर स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से जो सभी शिक्षक संवर्ग की पदोन्नति के लिए नियम जारी किए जाते हैं। जो जहां पदस्थ है उसे छूट देने का प्रावधान तब होता है जब विभाग की ओर से सभी पदों पर सीधे पद स्थापना कर दी जाती है । काउंसलिंग में आम तौर पर ऐसा नहीं होता।

यदि होता तो सहायक शिक्षक से प्राथमिक स्कूल प्रधान पाठक और शिक्षक से मिडिल स्कूल प्रधान पाठक के पद पर हुई पदोन्नतियां जो काउंसलिंग के माध्यम से हुई है ,उसमें वर्तमान में जो व्याख्याता से प्राचार्य पदोन्नति के लिए नियम बनाए गए हैं वह लागू होते..।

पदोन्नति एक प्रकार से उच्च पद पर स्थापना होती है जिसमें प्रशासनिक ट्रांसफर भी होता है। जिसका लाभ टी संवर्ग में 1335 पद में अधूरा मिल रहा है जबकि रिटायर हो चुके शिक्षकों को छोड़ कर लगभग 400 पदों पर व्याख्याता को लाभ नहीं मिल रहा है। या फिर सुविधाजनक स्कूलों में सेवा दे रहे शिक्षकों ने रिंग बना कर इस सुविधा का लाभ लेने के लिए दबाव बनाया हो, ऐसा हो सकता है..?

जिसमें कथित अनुचित लाभ विशेष वर्ग को दिया जा रहा हो..। जिसकी वजह से सरकार की भविष्य में किरकिरी होने की पूरी संभावना तो बनती हुई नजर आ रही है।

अब तक होता आया है कि विभाग की ओर से अलग-अलग नियोक्ता के लिए अलग-अलग नियम नहीं बनाए जाते रहे हैं। व्याख्याता का नियोक्ता स्कूल शिक्षा विभाग होता है और सारी प्रक्रिया लोक शिक्षण संचालनालय के माध्यम से पूरी की जाती है..। लोक शिक्षण संचालनालय अपनी ओर से की जाने वाली पदोन्नति के नियम अलग बना रहा हो तो सवाल उठना लाजमी है..!

ये सवाल छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग को परेशान भी कर सकते हैं। यदि इस नियम को न्यायालय में चुनौती दी गई तो यह पदोन्नति एक बार फिर खटाई में पड़ सकती है…।

प्राचार्य का रिक्त पद मंगाया जाना सही है लेकिन विकास खंड शिक्षा अधिकारी,डाइट एवं बी टी आई में प्राचार्य के समकक्ष पदों की जानकारी मंगवाना कतिपयों को पदस्थापना का लाभ देने की मंशा को जाहिर करता है ..!

भारतीय संविधान में अवसर का अधिकार मुख्य रूप से अनुच्छेद 16 में सन्निहित है। जो कि सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी देता है । इसका अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों और नियुक्तियों में समान व्यवहार का अधिकार है। अनुच्छेद 16 गैर-भेदभाव सुनिश्चित करता है।

यदि स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से टी संवर्ग के कुछ व्याख्याताओं को प्राचार्य पदोन्नति में प्राथमिकता दी जा रही है। विशेष रूप से उन शिक्षकों को जो प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत हैं, और अन्य पात्र व्याख्याताओं को इस अवसर से वंचित किया जा रहा है, तो यह अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन माना जा सकता है..।

यदि 1335 में से केवल 844 पदों के लिए काउंसलिंग की जा रही है और शेष करीब 400 पदों पर कुछ खास शिक्षकों को अनुचित लाभ दिया जा रहा है। तो यह मनमाना निर्णय माना जा सकता है। जो संवैधानिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।

जानकर कहते है कि एक ही नियोक्ता स्कूल शिक्षा विभाग के तहत अलग-अलग संवर्गो के लिए भिन्न नियम बनाना अनुचित और गैर-कानूनी हो सकता है।पदोन्नति में वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर निष्पक्ष प्रक्रिया होनी चाहिए। यदि वर्तमान काउंसलिंग प्रक्रिया में इन सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। तो इसे चुनौती दी जा सकती है।

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