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IAS अफसर नहीं लिख सकेंगे APCCF अधिकारियों की ACR… सुप्रीम कोर्ट का फैसला

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि यह आदेश पहले दिए गए सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि APCCF रैंक तक के IFS अधिकारियों के लिए रिपोर्टिंग अथॉरिटी, समीक्षा अथॉरिटी और स्वीकृति अथॉरिटी उसी सेवा यानी वन सेवा से और संबंधित वरिष्ठ अधिकारी ही हो सकते हैं। IAS अधिकारियों को इस भूमिका में नियुक्त करना कानूनन गलत है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय वन सेवा (IFS) के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (APCCF) रैंक तक के अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) किसी IAS अधिकारी द्वारा नहीं लिखी जा सकती। अदालत ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 29 जून 2024 को जारी उस सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें जिला कलेक्टर और प्रभागीय आयुक्त की टिप्पणियों को IFS अधिकारियों की प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (PAR) के लिए प्रासंगिक बताया गया था।

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि यह आदेश पहले दिए गए सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि APCCF रैंक तक के IFS अधिकारियों के लिए रिपोर्टिंग अथॉरिटी, समीक्षा अथॉरिटी और स्वीकृति अथॉरिटी उसी सेवा यानी वन सेवा से और संबंधित वरिष्ठ अधिकारी ही हो सकते हैं। IAS अधिकारियों को इस भूमिका में नियुक्त करना कानूनन गलत है।

न्यायालय ने हरियाणा राज्य बनाम पी.सी. वाधवा (1987) और संतोष भारती बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2007) जैसे मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि किसी अधिकारी की ACR लिखने वाला व्यक्ति उसी सेवा का और उससे उच्च रैंक का होना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि केवल PCCF (Principal Chief Conservator of Forests) के मामले में ही रिपोर्टिंग अथॉरिटी अन्य विभाग से हो सकती है, वह भी तब जब वह उससे सीनियर और कार्य से परिचित हो।

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से जारी आदेश को अदालत ने सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के 22 सितंबर 2000 और 19 अप्रैल 2024 को दिए गए आदेशों की अवमानना बताया, लेकिन अवमानना की कार्यवाही से बचते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह नियमों में संशोधन करे और पूर्व के आदेशों के अनुसार व्यवस्था लागू करे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें यदि चाहें तो कलेक्टर और आयुक्त जैसे अधिकारियों को एक अलग शीट पर वन अधिकारियों के प्रदर्शन पर अपनी टिप्पणियां दर्ज करने की अनुमति दे सकती हैं, लेकिन इन टिप्पणियों की समीक्षा फिर एक वरिष्ठ IFS अधिकारी द्वारा ही की जानी चाहिए।

सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने टिप्पणी की कि कई IAS अधिकारी IFS अधिकारियों पर अपनी “श्रेष्ठता” साबित करने की कोशिश करते हैं, जो कि प्रशासनिक व्यवस्था की भावना के खिलाफ है। यह टिप्पणी इस बात पर रोशनी डालती है कि किस प्रकार सेवा आधारित अधिकारों की अवहेलना की जा रही थी।

यह फैसला न केवल मध्य प्रदेश सरकार के आदेश को अवैध ठहराता है, बल्कि देशभर में सेवा आधारित पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यवस्था को सशक्त करता है। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने पहले ही सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि IFS अधिकारियों की ACR लिखने के लिए संबंधित विभाग के ही वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्टिंग अथॉरिटी बनाया जाए।

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