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सम्मान दिल्ली में, बदहाली बिलासपुर में — स्मार्ट सिटी की सफाई व्यवस्था पर बड़ा घोटाला

एक पखवाड़े में दो बार पुरस्कार, पर शहर में कूड़े के पहाड़

बिलासपुर… करीब एक महीने पहले दिल्ली में  एक भव्य कार्यक्रम के दौरान बिलासपुर नगर निगम को स्वच्छता अभियान के लिए राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित किया गया। यह गौरव केवल एक बार नहीं, बल्कि एक ही पखवाड़े में दो बार मिला। लेकिन यही सबसे बड़ा सवाल बन गया है — क्या दिल्ली के आयोजकों और भारत सरकार को बिलासपुर की वास्तविक स्थिति का कोई अंदाज़ा नहीं था? क्या उन्हें नहीं पता था कि जिस शहर को ‘स्वच्छता का आदर्श’ बताया जा रहा है, उसकी सड़कों पर कूड़े के ढेर लगे हैं, नालियाँ बंद हैं, जलभराव से लोग त्रस्त हैं और बीमारी का खतरा मंडरा रहा है? यदि उन्हें सही स्थिति का पता होता तो क्या राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के हाथों यह सम्मान बिलासपुर को मिलता? यह पुरस्कार अब जनता के लिए शर्म का विषय बन चुका है।

सम्मान का रहस्य—कागज़ों और मिलीभगत का खेल?

सवाल उठता है कि क्या यह सम्मान सिर्फ कागज़ों पर तैयार रिपोर्टों, फोटोशूट और दिखावटी कार्यक्रमों के आधार पर दिया गया? क्या सफाई अभियान की असली तस्वीर देखने की कोई कोशिश भी की गई? राजधानी में बैठकर शहर की गंदगी पर पर्दा डाल दिया गया और करोड़ों का पुरस्कार लूट लिया गया। क्या यह प्रशासन और कंपनियों की मिलीभगत नहीं? क्या यह जनता की आँखों में धूल झोंकने का तरीका नहीं?

स्मार्ट सिटी की स्थिति — तालाब में बदलता शहर

स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलने के बावजूद बिलासपुर की सूरत बेहद दयनीय है। बारिश होते ही शहर तालाब में बदल जाता है। गोल बाज़ार, तेलीपारा, अग्रसेन चौक, तिफरा जोन — हर जगह कचरे के ढेर, बंद नालियाँ और जलभराव आम समस्या बन गए हैं। नागरिक अपनी रोजमर्रा की जरूरतों से जूझ रहे हैं, पर नगर निगम एसी कमरों में बैठकर सफाई का प्रमाणपत्र भर रहा है। स्मार्ट सिटी का तमगा कागज़ पर है, ज़मीन पर गंदगी का साम्राज्य।

स्थानीय लोग बताते हैं कि जलभराव के कारण कई बार वाहन भी बंद हो जाते हैं। बुजुर्गों और बच्चों के लिए सड़क पार करना भी मुश्किल हो जाता है। गंदगी से उत्पन्न बीमारियाँ लोगों को जकड़ रही हैं, परंतु प्रशासन की नज़र इन समस्याओं पर नहीं बल्कि पुरस्कार पाने की राजनीति पर है।

लूट का खेल — करोड़ों का भुगतान, सफाई शून्य

सफाई व्यवस्था दो निजी कंपनियों — एमएसडब्ल्यू और लायंस — के हाथ में है। जानकारी के अनुसार सफाई के नाम पर हर महीने 7 करोड़ से अधिक और सालाना करीब 85 करोड़ से ऊपर का भुगतान किया जा रहा है। एक कंपनी कचरा संग्रहण करती है, तो दूसरी उसका परिवहन। परंतु कागज़ों में चल रही यह व्यवस्था ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर है। न तो पार्षदों से सत्यापन किया जाता है, न सफाई निरीक्षकों से। नोडल अधिकारी खजांची कुम्हार और प्रवेश कश्यप निगरानी समिति में शामिल हैं, पर शहर की सड़कों पर कूड़े का अंबार हर जगह दिखाई दे रहा है।

सूत्रों की मानें तो यह भुगतान बिना सत्यापन के होता है। केवल फाइलों में सफाई दिखाकर करोड़ों का भुगतान कर दिया जाता है। नागरिक पूछते हैं — क्या यह लूट प्रशासन की मिलीभगत से चल रही है? क्या जिम्मेदार अधिकारी इस भ्रष्ट व्यवस्था में हिस्सेदार हैं?

प्रवेश कश्यप का बयान — पैसे नहीं, फिर भी भुगतान

 भ्रष्ट व्यवस्था की पोल खुलती है जब निगरानी समिति से जुड़े अधिकारी प्रवेश कश्यप स्वयं स्वीकार करते हैं कि कभी कभी भुगतान में कंपनियों को विलंब का सामना करना पड़ता है। “पैसा न होने की सूरत में भी हम दो‑दो महीने बाद भुगतान एक सात कर देते हैं यानी यह भुगतान न तो सफाई कार्य की गुणवत्ता से जुड़ा है और न ही पारदर्शिता से। हर महीने लगभग 7 करोड़ से अधिक की राशि कंपनियों को दी जाती है, चाहे सफाई हो या न हो। यही प्रशासन की असलियत है — जनता की गाढ़ी कमाई से खिलवाड़।

निगरानी का खेल — बंद कमरे की रिपोर्ट, बाहर गंदगी 

शहर की सफाई व्यवस्था की निगरानी के लिए समिति बनी है, जिसमें खजांची कुम्हार और प्रवेश कश्यप जैसे काबिल अधिकारी शामिल हैं। लेकिन ये अधिकारी कागज़ों में रिपोर्ट बनाकर बैठ जाते हैं। शहर का कोई ऐसा कोना नहीं जहाँ कचरे का ढेर न लगा हो। निरीक्षण के नाम पर केवल औपचारिकता निभाई जाती है। अधिकारियों ने स्वयं स्वीकार किया है कि शहर में जलभराव है, नालियाँ जाम हैं, पर सफाई में कोई कमी नहीं मानते।

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि निरीक्षण समितियाँ केवल कागज़ पर मौजूद हैं। न तो सफाई कार्य का निरीक्षण होता है, न ही जनता से फीडबैक लिया जाता है। अधिकारी सिर्फ रिपोर्ट बनाकर अधिकारियों को भेज देते हैं। ज़मीन पर हालत जस की तस रहती है।

जनता की कमाई की लूट — बिना सत्यापन भुगतान

नगर निगम से हर महीने सफाई व्यवस्था के लिए करोड़ों का भुगतान किया जाता है। परंतु सफाई कर्मचारियों की उपस्थिति, काम की गुणवत्ता या वास्तविक स्थिति की कोई जांच नहीं की जाती। न तो पार्षदों से संपर्क किया जाता है, न सफाई निरीक्षकों से। जबकि नियम है कि भुगतान से पहले सत्यापन आवश्यक है। लेकिन यहाँ सब उल्टा है — भुगतान पहले, जांच बाद में भी नहीं।

सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों और कंपनियों के बीच पैसे का खेल जमकर चल रहा है। यानि हर भुगतान पर कमीशन का खेल। यही वजह है कि शहर की सफाई की वास्तविक स्थिति की कोई समीक्षा नहीं की जाती। जनता की गाढ़ी कमाई लूटकर बंद कमरों में बैठकर रिपोर्ट तैयार की जाती है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि न तो कर्मचारियों की उपस्थिति की निगरानी होती है और न ही सफाई कार्य की गुणवत्ता पर कोई ध्यान दिया जाता है। फिर भी भुगतान निर्बाध चलता रहता है। यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का मामला है।

बिलासपुर की हालत — चौक पर कूड़े का ढेर

शहर में कचरा हर जगह फैला है। सड़क किनारे मलवे और कचरे के ढेर, बंद नालियाँ, जलभराव — ये सब आम दृश्य बन गए हैं। गोल बाज़ार, तेलीपारा, अग्रसेन चौक — कोई ऐसा इलाका नहीं जहाँ सफाई की व्यवस्था हो। गाड़ियाँ कचरे से होकर गुजरती हैं, फिर वही कचरा नालियों में लौट आता है। नागरिकों की सेहत खतरे में है, लेकिन नगर निगम अपनी सुविधा में मशगूल है।

बारिश के मौसम में शहर की स्थिति और खराब हो जाती है। कई जगह तो जलभराव से आवाजाही बंद हो जाती है। संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है, पर नगर निगम की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। नागरिकों ने इसे “जनता की जद्दोजहद” कहा है।

जनता का ओपिनियन — गंदगी से त्रस्त लोग

शहर के हृदय स्थल में जहाँ तहां कचरे के ढेर लगे हैं। सड़े‑गले कचरे पर मक्खियाँ और मच्छर मंडराते रहते हैं। आवारा कुत्ते कचरे में उलझे रहते हैं और उन्हें फैलाकर आसपास गंदगी फैला देते हैं। नागरिकों का कहना है कि बीमारी का खतरा हर समय बना रहता है। बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति और भी खतरनाक है।
स्थानीय महिलाओं ने बताया कि  नालियों से बदबू का उठन सामान्य बात है । सांस लेना मुश्किल हो जाता है। मजबूरी है कि हम गंदी साँस लें और व्यापार करें। युवाओं ने कहा कि यह शहर स्मार्ट सिटी कहलाने का हकदार नहीं है।
जनता अब खुलकर कह रही है — “हमारी मजबूरी का फायदा उठाकर करोड़ों की लूट की जा रही है। अगर यही हाल रहा तो बीमारी और गंदगी शहर की पहचान बन जाएगी। मजबूरियों में हमें निगम की सड़क व्यवस्था का विरोध करना पड़ेगा

सम्मान का मजाक — जनता की पीड़ा पर परदा

दिल्ली में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के हाथों सम्मान पाने वाले बिलासपुर नगर निगम की असलियत अब जनता के सामने है। स्मार्ट सिटी का दर्जा, पुरस्कार और योजनाएँ सब कागज़ों तक सीमित रह गई हैं। जनता अब सवाल कर रही है — क्या यह सम्मान केवल दिखावा है? क्या पुरस्कार पाने से शहर स्वच्छ हो जाएगा?

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ऐसे पुरस्कार जनता का अपमान हैं। जब शहर की गलियों में कचरे के ढेर और जलभराव आम दृश्य हैं, तब स्वच्छता अभियान की सफलता का दावा बेमानी है। यह सम्मान सिर्फ फोटो खिंचवाने का तरीका बनकर रह गया है। यति इसे ही स्मार्ट सिटी कहते हैं तो ऐसी स्मार्ट सिटी नगर निगम के अधिकारियों और दिल्लीवालों मुबारक।

कब होगा खुलासा? — जिम्मेदार कौन?

जब नगर निगम के अधिकारियों से सवाल किया गया तो खजांची कुम्हार ने  फोन पर बताया कि इस समय एक जरूरी बैठक में शामिल होने कर रायपुर आए हैं। प्रवेश कश्यप ने सफाई व्यवस्था में किसी खामी से इनकार कर दिया। लेकिन शहर की हर गली, हर नाली उनकी पोल खोल रही है। सवाल है — कब तक बंद कमरे में बैठकर रिपोर्ट बनाई जाएगी? कब तक जनता की आँखों में धूल झोंकी जाएगी?

जनता सवाल कर रही है — क्या प्रशासन की नाकामी छिपाने के लिए बड़े-बड़े मंचों पर सम्मान बांटे जाएंगे? क्या जनता को इसी तरह छला जाता रहेगा।

जल्द ही किया जाएगा।भ्रष्टाचार का बड़ा खुलासा

बताते चले कि स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर मे बहुत कुछ किया गया है लेकिन वह जमीन पर नहीं सिर्फ़ कागजों तक सीमित है करोड़ों रुपयों का बंदरबांट हुआ ही इसका खुलासा सीजी वाल जल्द ही करेगा। यह भी जानकारी देंगे कि इस जोन कमिश्नर ने करोड़ों का कबाड़ बिना अनुमति बेच दिया और कमिश्नर को हवा तक नहीं लगी।

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