BilaspurChhattisgarh

21 साल पुराने पामगढ़ हत्याकांड में हाईकोर्ट का झटका —भीड़ में होना अपराध नहीं, उम्रकैद पाए 14 आरोपी दोषमुक्त!

बिलासपुर…छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पामगढ़ शराब भट्ठी के गद्दीदार की हत्या के 21 साल पुराने मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि — “केवल भीड़ में मौजूद होना अपराध साबित नहीं करता जब तक यह सिद्ध न हो कि आरोपी ने हिंसा में सक्रिय भागीदारी की हो।” इसी आधार पर अदालत ने सभी 14 ग्रामीण आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया।

यह फैसला न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने सुनाया।

 घटना का पृष्ठभूमि

दिसंबर 2004 में पामगढ़ थाना क्षेत्र के निवासी शिक्षक महेश खरे (गुरुजी) की मड़ई मेला में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मल्टीपल इंजरी के कारण मौत की पुष्टि हुई। इसके बाद पूरे इलाके में अफवाह फैली कि गुरुजी की हत्या शराब भट्ठी में कार्यरत पंडो समुदाय के लोगों ने की है।

आक्रोशित ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में सड़क पर उतर आए और प्रदर्शन के दौरान भीड़ के एक समूह ने शराब भट्ठी पर हमला कर दिया। हमले में गद्दीदार भोला गुप्ता की मौत हो गई थी।

 पुलिस कार्रवाई और निचली अदालत का निर्णय

घटना के बाद पुलिस ने भगवानलाल सहित दो दर्जन से अधिक ग्रामीणों के खिलाफ बलवा और हत्या का मामला दर्ज कर अदालत में चालान पेश किया। करीब 10 वर्ष बाद, साल 2015 में निचली अदालत ने 14 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

 हाईकोर्ट का निर्णय — “साक्ष्य नहीं, केवल अनुमान”

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष न तो आरोपियों की स्पष्ट पहचान सिद्ध कर पाया, और न ही प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रस्तुत कर सका।
अधिकांश गवाह शत्रुतापूर्ण हो गए थे। जब्त किए गए डंडों और कपड़ों पर मिले रक्त के धब्बे मृतक के रक्त समूह से मेल नहीं खाते थे। अदालत ने स्पष्ट किया कि —सिर्फ भीड़ में शामिल होना अपराध की भागीदारी नहीं माना जा सकता। जब तक अभियोजन यह साबित न करे कि आरोपी ने हिंसा या हत्या में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई, उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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