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चीफ जस्टिस ने सख्त लहजे में पूछा.. एज़ी साहब…”काम करने की इच्छा नहीं. – ‘दिल्ली-रायपुर दोनों जगह आपकी सरकार, फिर ये हाल क्यों?'”,, कोर्ट ने इन्हें किया तलब

बिलासपुर… बिलासपुर एयरपोर्ट के विकास में हो रही लगातार देरी और शिथिलता पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में दायर दो जनहित याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सरकार और अफसरों की कार्यशैली पर कड़ी नाराजगी जताई।

चीफ जस्टिस ने सख्त लहजे में कहा, “आप लोगों में काम करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। स्टेटमेंट दे दीजिए कि आपसे कुछ नहीं हो पाएगा, हम दोनों पीआईएल को खत्म कर देंगे।” उन्होंने सरकार की ओर से पेश जवाब और अधिकारियों के रवैये को देखकर इसे “गैर-जिम्मेदाराना” बताया।

याचिकाकर्ता अधिवक्ता आशीष श्रीवास्तव और संदीप दुबे ने कोर्ट को बताया कि एयरपोर्ट की स्थिति में अब तक कोई ठोस बदलाव नहीं आया है।  कार्यों में गंभीरता की कमी साफ देखी जा रही है। इस पर मुख्य न्यायाधीश और भी अधिक नाराज हो गए और महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत से सवाल किया, “एजी साहब, यह सब क्या हो रहा है? छत्तीसगढ़ और दिल्ली दोनों जगह आपकी सरकार है, फिर भी ये हालात क्यों हैं?”

महाधिवक्ता ने कोर्ट के समक्ष एयरपोर्ट विकास से जुड़ी कुछ तस्वीरें पेश कीं और बताया कि नाइट लैंडिंग की सुविधा पर काम चल रहा है। हालांकि, तस्वीरों को देखकर मुख्य न्यायाधीश संतुष्ट नहीं हुए और कहा, “आप खुद देखिए, क्या दिख रहा है इन तस्वीरों में? एक गाड़ी खड़ी है और कुछ लोग पीछे दिख रहे हैं। काम कहां हो रहा है? इसमें कुछ दिख ही नहीं रहा।”

कोर्ट को यह भी अवगत कराया गया कि रक्षा मंत्रालय ने रनवे की चौड़ाई और लंबाई बढ़ाने के लिए 286 एकड़ जमीन पर काम करने की अनुमति राज्य सरकार को दे दी है। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया, “जब डिफेंस से अनुमति मिल गई है, तब भी काम क्यों नहीं हो रहा?” महाधिवक्ता ने जवाब दिया कि जमीन के बदले कीमत को लेकर बातचीत अटकी हुई है, क्योंकि रक्षा मंत्रालय अधिक मुआवजा मांग रहा है।

चीफ जस्टिस सिन्हा ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “बिलासपुर का भाग्य शायद किसी और सरकार के आने पर ही जागेगा।” कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव और रक्षा सचिव को शपथ पत्र के साथ विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख तय करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि जिम्मेदार अफसरों का रवैया ऐसा ही रहा, तो कोर्ट को कठोर आदेश देने पड़ सकते हैं।

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