हाईकोर्ट ने दिया झटका…नमाज मामले में प्राध्यापक की याचिका खारिज…कोर्ट ने कहा…नहीं रद्द करेंगे FIR..जांच रोकने से इंकार
हाईकोर्ट ने दिया सुप्रीम कोर्ट का हवाला..जांच रोकने से भी किया इंकार

बिलासपुर—चीफ जस्टिस के डबल बैंच ने कुछ समय पहले कोटा में केन्द्रीय विश्वविद्याालय के एनएसएस कैम्प आयोजन के दौरान नमाज पढ़े जाने के मामले में दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं ने पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाए जाने की मांग की। साथ ही दर्ज एफआईआर को रद्द किए जाने को लेकर गुहार लगाई। लेकिन हाईकोर्ट ने पुलिस जांच में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है।
बताते चलें कि याचिकाकर्ता दिलीप झा, मधुलिका सिंह, सूर्यभान सिंह, डॉ ज्योति वर्मा , प्रशांत वैष्णव, बसंत कुमार गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। जानकारी देते चलें कि विश्वविद्यालय की तरफ से शिवतराई, कोटा में 29 मार्च से 1 अप्रैल के बीच एनएसएस कैम्प का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय ने याचिकाकर्ताओं को शिविर की देखरेख के लिए नियुक्त किया। विश्वविद्यालय की तरफ से दिलीप झा को 26 अप्रैल 2025 के आदेश पर शिविर का समन्वयक बनाया गया।
शिकायतकर्ता आस्तिक साहू, आदर्श कुमार चतुर्वेदी और नवीन कुमार,ने भी एनएसएस शिविर में भाग लिया। याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई गयी। आरोप लगाया गया कि हिंदू छात्रों को नमाज अदा करने के लिए मजबूर किया गया। शिकायत पर, पुलिस ने अपराध दर्ज किया।
शिविर में पढ़ाया गया नमाज
याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि 14 अप्रैल को .लिखित शिकायत राजनीति से प्रेरित है। शिविर में 150 हिंदू छात्रों ने भाग लिया था। लेकिन केवल सिर्फ तीन छात्रों ने ही एफआईआर दर्ज कराया है। वकील ने कोर्ट को बताया कि शिविर में शामिल प्रतिभागियों को याचिकाकर्ताओं ने नमाज पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया। लगाए गए आरोप झूठे हैं। बावजूद इसके पुलिस ने अपराध दर्ज किया है। जबकि शिविर में मुस्लिम धर्म से से जु़डे चार छात्र भी शामिल थे। याचिकाकर्ता दिलीप झा को ट्रायल कोर्टने जमानत पर रिहा किया है।
याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई आरोप नहीं बनता है। कोर्ट से निवेदन है कि दर्ज एफआईआर को रद्द किया जाए।
याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गंभीर आरोप
,राज्य शासन के वकील ने चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की डबल बैंच ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप गंभीर हैं।याचिकाकर्ताओं ने शब्दों और दृश्य चित्रण का उपयोग करके हिन्दू शिकायतकर्ताओं को नमाज पढने के लिए मजबूर किया है। ऐसा किया जाना बीएनएस की धारा 190, 196(1)(बी), 197(1)(बी), 197(1)(सी), 299, 302 और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत दण्डनीय अपरा्ध है। मामला जांच के अधीन है और गवाहों ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोपों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है।
एफआईआर रद्द करने की अनुमति नहीं
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की डीबी ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, (2021) 19 एससीसी 401 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करने के मुद्दे पर विचार करते हुए, प्रारंभिक चरण में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। आपराधिक कार्यवाही को आरंभिक चरण में रोका जाना उचित नहीं है। जब पुलिस जांच चल रही हो, तो अदालत को एफआईआर में लगाए गए आरोपों के गुण-दोष पर विचार नहीं करना चाहिए। पुलिस को जांच पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन
जांच के दौरान या उसके बाद, यदि जांच अधिकारी को पता चलता है कि शिकायतकर्ता के आवेदन में कोई तथ्य नहीं है, तो जांच अधिकारी विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष एक उचित रिपोर्ट/सारांश दाखिल कर सकता है। मजिस्ट्रेट नियमों के अनुसार विचार करेंगे। न्यायालय को जांच एजेंसी/पुलिस को एफआईआर में लगाए गए आरोपों की जांच करने की अनुमति देनी होती है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पहले से ही जमानत पर हैं, जांच चल रही है और आरोप-पत्र अभी तक दाखिल नहीं किया गया है। इसलिए मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। इसलिए दोनों की याचिकाओं को खारिज किया जाता है।