शरण या निर्वासन? सुप्रीम कोर्ट के सामने रोहिंग्या पर चार टेढ़े सवाल”..सितंबर में होगा फैसला

नई दिल्ली..भारत में रह रहे रोहिंग्या समुदाय को लेकर एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत की नज़र गंभीर हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रोहिंग्या शरणार्थियों की कानूनी हैसियत, हिरासत और मानवीय अधिकारों से जुड़े एक अहम मामले पर सुनवाई की। अदालत ने साफ किया है कि इस मुद्दे पर फैसला अब सितंबर में किया जाएगा, लेकिन उससे पहले चार मूलभूत सवालों पर सरकार और याचिकाकर्ताओं से जवाब मांगा गया है।
बहस ऐसे वक्त में हो रही है जब केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन पुशबैक’ नाम से एक राष्ट्रव्यापी मुहिम चला रखी है, जिसके तहत अवैध विदेशी नागरिकों, विशेषकर बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है।
अदालत में क्या हुआ?
सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ के सामने हुई। अदालत के समक्ष 22 याचिकाएं रखी गई थीं, जिनमें से कुछ असम में डिटेंशन सेंटरों में रह रहे लोगों से जुड़ी थीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण का तर्क था कि ये सभी याचिकाएं एक जैसे कानूनी ढांचे यानी फॉरेनर्स एक्ट से संबंधित हैं और इन्हें एक साथ सुना जाना चाहिए। लेकिन जस्टिस दत्ता ने रोहिंग्या मसले को बाकी सभी से अलग बताते हुए उस पर पहले चर्चा की मांग की।
इस पर वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने ‘राजूबाला’ नामक मामले को जोड़ने की बात कही, जिसमें एक महिला के पति को लंबे समय से 30 रोहिंग्याओं के साथ हिरासत में रखा गया है।
शरणार्थी और घुसपैठिए में फर्क समझना होगा”
सुनवाई के दौरान एक अन्य याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि भारत सरकार दोनों श्रेणियों में फर्क नहीं कर रही, जिससे निर्दोष लोगों के मौलिक अधिकार खतरे में पड़ रहे हैं। उनका कहना था कि यदि म्यांमार रोहिंग्याओं को अपनाने से इनकार कर रहा है, तो क्या भारत उन्हें बलपूर्वक निर्वासित कर सकता है?
कोर्ट ने पूछे ये चार बुनियादी सवाल
- क्या रोहिंग्या वास्तव में शरणार्थी माने जा सकते हैं?
यदि हाँ, तो उन्हें किन अधिकारों की गारंटी दी जानी चाहिए? - क्या रोहिंग्या अवैध घुसपैठ की श्रेणी में आते हैं?
यदि हाँ, तो क्या राज्य व केंद्र सरकारों को उनका निर्वासन सुनिश्चित करने का अधिकार है? - जो रोहिंग्या हिरासत में हैं, क्या उन्हें अनिश्चितकालीन बंदी बनाकर रखा जा सकता है, या उन्हें सशर्त ज़मानत दी जानी चाहिए?
- जो रोहिंग्या शिविरों में रह रहे हैं, क्या उन्हें मूलभूत सुविधाएं — जैसे पानी, स्वास्थ्य, और शिक्षा — मिल रही हैं?
अगला पड़ाव: सितंबर 2025
कोर्ट ने सरकार से बिंदुओं पर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है l स्पष्ट किया है कि सितंबर में इस संवेदनशील मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जाएगी।
यह सुनवाई केवल रोहिंग्या समुदाय से ही नहीं, बल्कि भारत की शरणार्थी नीति, मानवाधिकारों की समझ और विदेशी नागरिकों के प्रति कानूनी दृष्टिकोण को भी गहराई से प्रभावित कर सकती है।