CG NEWS:स्कूल समय में बदलाव को लेकर शिक्षा जगत में छिड़ गई है बड़ी बहस

CG NEWS:रायपुर ।छत्तीसगढ़ में शनिवार को विद्यालय संचालन के समय में बदलाव को लेकर शिक्षा जगत में गंभीर बहस छिड़ गई है। छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रदेश मीडिया प्रभारी राजू टंडन का कहना है कि शनिवार को शाला के समय के साथ छेड़छाड़ व्यवहारिक, शैक्षणिक और मानसिक तीनों दृष्टिकोण से उचित नहीं है..!
श्री टंडन ने कहा कि वर्षों से शनिवार का दिन एक अल्टर्नेट डे के रूप में रखा गया था, जिसमें छात्रों और शिक्षकों दोनों को ‘ब्रेक फॉर्मल एजुकेशन’ का अवसर मिलता था। शनिवार का पारंपरिक बैगलेस डे केवल सुविधा नहीं, बल्कि एक शैक्षणिक नवाचार था। जिसमें सहगामी गतिविधियां, खेल, कला, और व्यक्तिगत अभ्यास को स्थान दिया जाता था। वर्तमान समय में जब यह दिन भी पूर्ण शैक्षणिक घंटों में समाहित कर दिया गया है, तो इससे शिक्षा की वह लय टूट रही है जो बच्चे और शिक्षक सप्ताह भर में बनाते हैं।
शिक्षक नेता राजू टंडन की मांग व्यावहारिक और जायज बताते हुए शिक्षक नेता अश्वनी कुर्रे का कहना है कि हमारे अनुभव और शिक्षाविदों के अनुसार यह बात सामने आती है कि बाल मनोविज्ञान यह कहता है कि बच्चों की सीखने की क्षमता लगातार एक समान नहीं होती। सप्ताह के अंत में मानसिक थकावट अधिक होती है। अंतर राष्ट्रीय शोधों और भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की अनुशंसाओं में भी यह स्वीकार किया गया है कि सातों दिन कक्षा शिक्षण नहीं, बल्कि समन्वित शिक्षण और विश्राम के मिश्रण से दीर्घकालिक सीखने को बढ़ावा मिलता है।
अश्वनी कुर्रे कहते है कि ‘पॉज़ एंड रिफ्लेक्ट’ मॉडल के तहत शनिवार को बच्चों को स्वायत्तता दी जाती है कि वे सप्ताह भर के ज्ञान को पुनरावलोकित् करें, आत्म-चिंतन करें, समूह चर्चा करें, और गतिविधियों के माध्यम से सीखें। इससे मेमोरी रिटेंशन बढ़ता है और भावनात्मक थकावट घटती है।
शिक्षक राजू टंडन का कहना है जब शनिवार को स्कूल सुबह से लगे और दोपहर को छुट्टी हो, तो बच्चों को विंड डाउन टाइम मिलता है जिसमें वे अपना होमवर्क, खेलकूद, पारिवारिक संवाद या रचनात्मक अभ्यास कर सकते हैं। जबकि पूरे दिन की पाली में पढ़ाई के बाद बच्चे मानसिक रूप से थककर घर लौटते हैं और अगला दिन (रविवार) भी निष्क्रिय हो जाता है।
श्री टंडन ने यह भी रेखांकित किया कि शनिवार को छोटी पाली होने से शिक्षकों को सप्ताह भर के शैक्षणिक रिकॉर्ड संकलन, मूल्यांकन, पाठ योजना और स्कूल के प्रशासनिक कार्यों को करने का समय मिलता है। इससे शिक्षकों पर कार्य का भार संतुलित रहता है और शैक्षणिक गुणवत्ता बेहतर होती है।
राजू टंडन का यह भी कहते है कि विद्यालय संचालन प्रणाली में ‘टाइम ऑन टास्क’ और ‘टाइम फॉर प्रोसेसिंग’ दोनों का संतुलन जरूरी होता है। वर्तमान व्यवस्था में यह संतुलन बिगड़ रहा है, जिसका प्रभाव बच्चों की सीखने की निरंतरता पर पड़ रहा है।
राज्य के अधिकांश प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय एकल पाली में संचालित होते हैं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। वहां बच्चों की दिनचर्या प्रातः कालिक होती है । वे सुबह खेत-खलिहान, घरेलू कार्य, या पशुपालन में सहयोग करते हैं। ऐसे में जब स्कूल दोपहर तक चलते हैं, तो यह उनकी शारीरिक लय और पारिवारिक जिम्मेदारियों से टकराव पैदा करता है। इसके साथ ही, दोपहर में स्कूल लगाने से गर्मी, धूप, लंबा सफर और ट्रांसपोर्ट की समस्याए भी जुड़ जाती हैं, जिससे बच्चों की उपस्थिति पर सीधा असर पड़ता है।
शिक्षक नेता अश्वनी कुर्रे ने कहा कि फेडरेशन का स्पष्ट मत है कि किसी भी शैक्षणिक नीति को लागू करने से पहले ज़मीनी शिक्षकों, प्राचार्यों और शिक्षाविदों से विमर्श आवश्यक है। शनिवार के समय को लेकर जो व्यवस्था लागू की गई है, वह टॉप-डाउन पॉलिसी अप्रोच का उदाहरण है
जिसमें नीचे की ज़रूरतों को नहीं, ऊपर की प्रशासनिक सुविधा को प्राथमिकता दी गई है।
अश्विनी कुर्रे और राजू टंडन ने सरकार से आग्रह किया है कि शिक्षा नीति को केवल समय-सारणी के रूप में न देखा जाए, बल्कि उसे छात्र केंद्रित और शिक्षक समर्थित प्रणाली के रूप में विकसित किया जाए।
शिक्षक संगठनों की मांग सिर्फ व्यवस्था में बदलाव की नहीं है, बल्कि एक ऐसी सोच को पुनर्स्थापित करने की है, जो वर्षों से छात्रों के मानसिक, शारीरिक और शैक्षणिक विकास में सहायक रही है। अब यह राज्य सरकार पर है कि वह इस मांग को केवल विरोध न समझे, बल्कि एक व्यवहारिक समाधान की पहल के रूप में देखे।