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AAP को छत्तीसगढ़ में करारा झटका –प्रदेश महासचिव जसबीर सिंह चावला ने छोड़ी पार्टी.. फोड़े बड़े राज.. पार्टी पर लगाए गंभीर आरोप

रायपुर…छत्तीसगढ़ की राजनीति में आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगा है। पार्टी के पूर्व प्रदेश महासचिव (संगठन), पूर्व कोषाध्यक्ष और 2018 व 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे सरदार जसबीर सिंह चावला ने अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह त्यागपत्र पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी संदीप पाठक को भेजा है।

त्यागपत्र में गंभीर सवाल

चावला ने अपने त्यागपत्र में पार्टी की कार्यप्रणाली, विचारधारा और संगठन की स्थिति पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का सम्मान नहीं होता, मेहनत करने वालों को दरकिनार कर दिया जाता है। छत्तीसगढ़ में संगठनात्मक ढांचा बेहद कमजोर है और स्थानीय नेतृत्व को अवसर नहीं दिया जाता। उनके अनुसार, पार्टी की कोई स्पष्ट विचारधारा दिखाई नहीं देती, न ही वह आदिवासियों और सामान्यजन के मुद्दों के साथ खड़ी है।

उन्होंने 2023 विधानसभा चुनाव का उल्लेख करते हुए कहा कि पार्टी ने बिना किसी ठोस रणनीति और गेम प्लान के 90 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर दिए, जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा। टिकट वितरण में गंभीर गलतियां हुईं और संगठन पर आंतरिक गुटबाजी हावी रही। चावला ने यह भी आरोप लगाया कि दिल्ली से भेजे गए फंड का सही उपयोग नहीं हुआ और आर्थिक पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

14 साल की निष्ठा के बाद विदाई

चावला ने लिखा कि वे वर्ष 2011 से अब तक लगभग 14 वर्षों तक पार्टी के लिए समर्पित रहे, लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि आम आदमी पार्टी आम कार्यकर्ताओं की नहीं, बल्कि कुछ चुनिंदा लोगों की पार्टी बनकर रह गई है। उनका कहना है कि उन्होंने पार्टी को अपना खून-पसीना दिया, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उन्हें कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आती। ऐसे हालात में अपने आत्मसम्मान और क्षेत्र की जनता के हित में इस्तीफा देना उनके लिए जरूरी हो गया है।

राजनीति में असर

जसबीर सिंह चावला लंबे समय से छत्तीसगढ़ की राजनीति में सक्रिय रहे हैं और दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। उनका इस्तीफा आम आदमी पार्टी की प्रदेश इकाई के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम आने वाले निकाय और भविष्य के चुनावों में पार्टी की जमीनी पकड़ को और कमजोर कर देगा।

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