अरपा में रेत माफियाओं का दिनदहाड़े कब्ज़ा! नेताओं के संरक्षण में खुला ‘बालू साम्राज्य.. हाईकोर्ट के आदेश बौने

बिलासपुर। प्रदेश में रेत माफियाओं की मनमानी इन दिनों चरम पर है। पामगढ़ की महिला विधायक पर रेत माफियाओं से करीबी संबंधों के आरोपों को लेकर बीते सप्ताह प्रदेशभर में जमकर चर्चा रही, इसके बावजूद शासन–प्रशासन की कार्रवाई सिफर दिखती है। अब बिलासपुर की जीवनरेखा कही जाने वाली अरपा नदी के तट पर भी माफियाओं ने अपना साम्राज्य फैला लिया है।
अरपा नदी के दोनों किनारों—सेंदरी और कोनी घाट—पर दिनदहाड़े सैकड़ों ट्रैक्टर और हाइवा वाहनों में रेत भरकर अवैध उत्खनन किया जा रहा है। पहले माफिया रात के अंधेरे में चोरी-छिपे काम करते थे, लेकिन अब उन्हें किसी कार्रवाई या रोक-टोक का डर नहीं रहा। वे खुलेआम दिन में ही उत्खनन कर रहे हैं और प्रशासनिक व्यवस्था इस पर आंख मूंदे बैठी है।
यह चौंकाने वाली बात है कि न तो इन घाटों को शासन से कोई स्वीकृति मिली है और न ही रेत उत्खनन की अनुमति। बावजूद इसके यहां बिना किसी भय के अवैध कारोबार जारी है। शासन–प्रशासन की ओर से बार-बार स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी सूरत में अवैध रेत उत्खनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है।
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि इस पूरे कारोबार में राजनीतिक संरक्षण की भूमिका बेहद अहम है। भाजपा और कांग्रेस—दोनों दलों से जुड़े कुछ प्रभावशाली नेता अपने-अपने क्षेत्रों में रेत कारोबारियों को संरक्षण दे रहे हैं। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बिलासपुर में भी ऐसे माफिया सक्रिय हैं, जिन्हें स्थानीय नेताओं का खुला समर्थन प्राप्त है? यही कारण है कि माफिया अब रात नहीं, बल्कि दिन के उजाले में भी धड़ल्ले से अवैध उत्खनन कर रहे हैं।
हाईकोर्ट पहले ही अरपा नदी की बिगड़ती हालत पर कई बार गहरी चिंता जाहिर कर चुका है और प्रशासन को सख्त निर्देश दिए हैं। ताज्जुब की बात यह है कि हाईकोर्ट की गंभीरता के बावजूद ज़मीनी स्तर पर न तो कोई ठोस कार्रवाई दिख रही है और न ही हालात में सुधार।
जिला खनिज अधिकारी दावा करते हैं कि अवैध उत्खनन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन न तो घाटों पर निगरानी दिखती है और न ही माफियाओं पर कोई अंकुश। ख़बर तो यह भी है कि नेता भी इस अवैध कारोबार से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इसके चलते प्रशासनिक निष्क्रियता पर और सवाल उठना वाजिब है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब न्यायालय स्वयं इस विषय पर संज्ञान ले चुका है, तो भी बिलासपुर में रेत माफियाओं पर नकेल क्यों नहीं कसी जा रही? क्या राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक चुप्पी मिलकर अरपा नदी को धीरे-धीरे निगल रहे हैं?