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शिक्षक पात्रता परीक्षा TET की अनिवार्यता पर क्या कहते हैं-शिक्षक संगठन…?

बिलासपुर (मनीष जायसवाल)। एक सितम्बर 2025 को सर्वोच्च न्यायालय में हुई सुनवाई में दिए गए आदेश ने देशभर के शिक्षकों के बीच चिंता और असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें पहली से आठवीं तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा TET को अनिवार्य किया गया है..। इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ में भी शिक्षक समुदाय में उहापोह की स्थिति है।

छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के बिलासपुर जिला अध्यक्ष ढोला राम पटेल का कहना है कि हर राज्य में शिक्षकों की भर्ती अलग-अलग प्रक्रियाओं के तहत हुई है..। अभिभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही शिक्षक का पद ड्राइंग कैडर घोषित हो चुका था और भर्ती प्रक्रिया पंचायत विभाग के अधीन शिक्षाकर्मी के रूप में संचालित होती रही है।

ढोला राम बताते हैं कि राज्य गठन के बाद से 2007 तक भर्ती की जिम्मेदारी जनपद और जिला पंचायत पर थी। जो छत्तीसगढ़ शिक्षक भर्ती पदोन्नति के राजपत्र के नियमों के आधार पर होती थी..। वर्ष 2008 में व्यापम परीक्षा के माध्यम से शिक्षकों की भर्ती शुरू हुई। तब भी शिक्षक पंचायत विभाग के अधीन अनियमित कर्मचारी के रूप में सेवा करते रहे..। वर्ष 2018 में संविलियन की प्रक्रिया पूरी हुई और सभी शिक्षक पूर्ण शासकीय शिक्षक बने..!

उनका कहना है कि यदि हमें 2018 से स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्त शिक्षक माना जाता है, तो हम भी सर्वोच्च न्यायालय की डबल बेंच के इस निर्णय से प्रभावित हो सकते हैं। यह आदेश शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 की धारा 23(1) की व्याख्या पर आधारित है..। जबकि वास्तविकता यह है कि अविभाजित मध्य प्रदेश में 1998 से ही शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप की जा रही थी, और यही प्रक्रिया छत्तीसगढ़ में भी लागू रही..।

पटेल बताते है कि वर्ष 2011 में राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद NCTE ने शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए नियमावली बनाई थी। छत्तीसगढ़ ने 2012 से इस नियमावली के अनुसार TET परीक्षा शुरू की और 2022-23 से शिक्षक पात्रता तथा चयन परीक्षा के आधार पर नियुक्तियां की जा रही है..। उनका तर्क है कि 2008 से ही प्रदेश में भर्ती परीक्षा आधारित रही है, हालांकि उस समय शैक्षणिक योग्यताएं और परीक्षा पाठ्यक्रम वर्तमान TET से अलग थे। ऐसे में जो शिक्षक पहले से आवश्यक योग्यताएं पूरी कर चुके है, और नियमित शासकीय सेवा में हैं, उन्हें फिर से परीक्षा देने के लिए बाध्य करना न्यायसंगत नहीं है..।

उन्होंने बताया कि 1998 से शिक्षाकर्मी का सफर शुरू हुआ, 2012 से एनपीएस कटौती लागू हुई, 2018 में संविलियन हुआ और 2022 में पुरानी पेंशन लागू की गई..। हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य पहले से ही अधर में है। अब एक और परीक्षा के आधार पर हमारी सेवा समाप्त करना या पदोन्नति रोकना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा ..!

पटेल का कहना है कि वर्तमान निर्णय पर पुनर्विचार आवश्यक है, क्योंकि देश के अनेक राज्यों में कार्यरत शिक्षकों के पास TET के लिए निर्धारित न्यूनतम शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यता उपलब्ध नहीं है..। कई राज्यों में NCTE के नोटिफिकेशन से पहले भी पात्रता परीक्षा के आधार पर शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं। सालों से सेवा दे रहे शिक्षकों को नई नियमावली के आधार पर अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता..!

पटेल का सुझाव है कि छत्तीसगढ़ सरकार को उत्तर प्रदेश और केरल की तरह सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए..। साथ ही प्रदेश के सभी संगठन और संघों को एकजुट होकर इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए..।

पटेल कहते है कि यह कहना आसान है कि शिक्षक TET निकाल लेंगे, लेकिन यदि कोई शिक्षक परीक्षा में असफल रहा तो इससे अनावश्यक तनाव पैदा होगा और इसका प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा..।

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