ख़ामोश रहिए- हम “कोलवाशरी” यहीं बनाएंगे…. !

( गिरिजेय ) बिलासपुर शहर और इसके आसपास के इलाके में विकास का एक नया मॉडल खड़ा हो रहा है। यहां कोई कोयला खदान नहीं है…। लेकिन यहीं पर कोलवाशरी लगाने की ज़िद क्यों है… ? कोलवाशरी लगाने वालों के लिए यह पसंद की जगह क्यों है.. ? शहर के चारों तरफ लगी कोलवाशरी हमें क्या देती है…. ? और हमसे क्या छीनती जा रही है… ? ये सवाल एक बार फिर घुमड़ रहे हैं और व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों से जवाब की उम्मीद कर रहे हैं। रलिया और भेलई गांव में कोलवाशरी की जनसुनवाई को लेकर मीडिया में आ रही खबरों के देखकर लग रहा है कि कोयला धोने का कारखाना लगाकर हमारा पानी, सड़क, जमीन, हवा और खेती छीनने वाले एक बार फिर जीत जाएंगे। कागजी खानापूरी में समर्थन दिखाकर विरोध को दबा दिया जाएगा। सिस्टम को अपनी जेब में रखने वाले अपनी पसंद की जगह पर कोलवाशरी लगाकर जनभानवाओँ को कोयले के काले परदे से ढंक देंगे।
बिलासपुर की हरियाली को कोयले से मूंदने को यह खेल पिछले काफी समय से चल रहा है। जिसमें सब शामिल हैं। आंकड़ों की बाजीगरी से दूर हकीकत की जमीन पर कोई भी देख सकता है कि शहर के चारों तरफ कोयला धोने के कारखाने लग चुके हैं।शहर के चारों तरफ मस्तूरी,बेलतरा,बिल्हा,तखतपुर,कोटा सहित बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र के इलाके में कोई भी घूमकर देख सकता है कि पिछले कुछ बरसों के भीतर यहां किस कदर धड़ल्ले से कोलवाशरी लगी है। बिलासपुर के आसपास जमीन के नीचे कोयले का भंडार नहीं है। इसलिए कोयले की खदान नहीं है। लेकिन किसी की आँख में पट्टी बांधकर अगर किसी कोलवॉशरी के पास पहुंचने के बाद पट्टी खोल दी जाए तो उसे लगेगा कि वह कोयला खदान के एरिया में है। बिलासपुर शहर और आसपास का भूगोल बदल देने वाले कोलवाशरी में कोयला धोने का काम होता है। कोयले जैसी चीज को धोने में कितना पानी लगता होगा , इसका अदाजा लगाया जा सकता है। जाहिर सी बात है कि जमीन का सीना छलनी कर यह पानी निकाला जाता है। यह पूछा जा सकता है कि कोलवाशरी से बिलासपुर और आसपास के आम लोगों को क्या मिल रहा है..? जिनके हिस्से के पानी पर डाका डालकर कोयला धोने का काम चल रहा है। प्रशासन में बैठे लोगों को ज़रूर पता होगा कि एक – एक कोलवाशरी में कितने इंच की बोरिंग की गई है … और कितने हॉर्सपावर के मोटर पानी खींच रहे हैं।
कोई भी पूछ सकता है कि कोलवाशरी में क्या पैदा हो रहा है…? बल्कि भूजल के भरोसे अच्छे किस्म की सब्जी – भाजी पैदा करने वाले बिलासपुर शहर के आसपास के इलाके में इस काले कारोबार की वजह से जमीन बंजर हो रही है। कभी हरियाली से भरे इस इलाके में अब चारों ओर काली हवा का धुंध छाया रहता है और पत्तियां भी कोयले की डस्ट से काली पड़ गईं हैं। शहर की पहचान को मिटाकर पानी का संकट खड़ा करने वाले इस कारोबार को लेकर पिछले बरसों में कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया । शायद लोग इस बात का अहसास नहीं कर पाए कि कुदरत से मिले पानी के तोहफे की लूट मचाकर यह संकट खड़ा किया जा रहा है। जो आने वाले समय में शहर को भयानक स्थिति की ओर ले जाएगा। कई बार लगता है कि कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में उस समय के विधायक शैलेश पाण्डेय की पहल पर अरपा में शुरू किया गया बैराज भी इस शहर को संकट से उबार नहीं पाएगा। यह सौगात भी कोयला धोने के काम आएगी और बची – खुची जगह पर नई कोलवाशरी खड़ी होकर शहर के लोगों के हिस्से का पानी छीन ले जाएगी।
जानकारी के मुताबिक यहां छोटे – बड़े 19 कोलवाशरी हैं और करीब पांच दर्जन वैध – अवैध कोयला प्लॉट हैं। जहां पर रोज़ाना हजारों टन कोयला आता है और धुलाई के लिए बेहिसाब पानी का इस्तेमाल हो रहा है। प्रशासन को बताना चाहिए कि कोयला धोने के लिए कितने इंच बोरिंग और कितने हॉर्सपावर के पंप लगाने की परमीशन दी गई है। इस मामले में जल संसाधन विभाग, पीएचई और खनिज विभाग जिम्मेदार हैं।
सवाल यह है कि बिलासपुर और आसपास के इलाके को बेहिसाब नुकसान पहुंचा रहे इन कारखानों को अनुमति कैसे मिलती है। दिलचस्प बात है कि इसकी प्रक्रिया में जनसुनवाई भी शामिल है । यानी लोग चाहेंगे , तभी कोलवाशरी लगेगी। हमारा पुराना तजुर्बा रहा है कि जनसुनवाई के पहले तक जो लोग कोलवाशरी लगाने के विरोध में रहते हैं, वो धीरे – धीरे समर्थन में आ जाते हैं। इस खेल का ताजा नमूना हाल ही में खैरा गांव में हुई जनसुनवाई के बाद सामने आया है। मीडिया खबरों के मुताबिक कोलवाशरी के विरोध में एसडीएम को ज्ञापन देने वाले सरपंच ने पलटी मार दी और कहा कि कोलवाशरी के मालिक से मिलने के बाद विचार बदल गया । आज के दौर में मेल मुलाकात के बाद विचार बदलने का चमत्कार कैसे होता है, लोग बेहतर जानते हैं। मीडिया में आ रही यह खबर भी चिंताजनक है , जिसमें तीन पंचायतों के सरपंचों पर पैसे लेकर समर्थन देने का आरोप लगाया गया है।
जमीनी स्तर पर नुमाइंदगी कर रहे पंचायत प्रतिनिधियों के विचार बदलने की वजह चाहे जो भी हो। लेकिन इससे कोलवाशरी की वजह से होने वाली बदहाली की जमीनी हकीकत तो बदलने वाली नहीं है। इसी गांव के लोगों ने जनसुनवाई के दौरान कहा था कि पहले भी तीन कोलवाशरी के कारण जमीन बंजर हो चुकी है। नई कोलवाशरी लगने से जमीन खोदकर और पानी निकाला जाएगा। ऐसे में खेती कैसे होगी। प्रदूषण भी बढ़ेगा और सड़कें भी टूटेंगी। पहले कोलवाशरी लगने से भुगत रहे लोगों को हकीकत मालूम है। यह सच्चाई जनप्रतिनिधियों के “पलटी” मारने से बदल नहीं सकती। आने वाले कल की फिकर ना कर पंचायत प्रतिनिधि अगर आज की “संतुष्टि” के हिसाब से एनओसी जारी कर रहे हैं तो भी सच्चाई अपनी जगह रहेगी ही।
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। CGWALL ने पहले कई ऐसी रिपोर्टिंग की है, जहां पहले से कोलवाशरी का विरोध करने वाले लोग जनसुनवाई के दिन समर्थकों की तरफ वाली कुर्सी में बैठे दिखाई दिए । जब बड़े-बड़े जनप्रतिनिधि “संतुष्ट” होकर खामोश बैठे हैं तो पंचायत के प्रतिनिधियों को “संतुष्ट” करने में दिक्क्त कहां आती है… ? हालांकि यह मामला भविष्य से जुड़ा है और इसे बड़े -छोटे जनप्रतिनिधियों की संतुष्टि या समर्थन – विरोध की आंकड़ेबाजी के हिस्से में ही नहीं छोड़ा जा सकता। यह ऐसा मामला है , जिसे लेकर सिस्टम के साथ ही आम लोगों को भी चौकस रहने की जरूरत है और खुद से संज्ञान में लेकर कोई ठोस कदम उठाने की दरकार है । नहीं तो कोयला खदानें नहीं होने के बावजूद हम काले होते रहेंगे और आने वाली पीढ़ी माफ नहीं करेगी …।