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पौरूष – परमार्थ के प्रभु परशुराम : डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा

रामनवमीं तथा अक्षय तृतीया – लगातार चैत्र तथा बैशाख में दो महाप्रभुओं की जयंती के उत्सव है।  दाशरथि राम का मध्यान्ह चैत्र मास याने मधुमास में अभिजित नक्षत्र में अवतरण हुआ।

 

विप्र धेनु] सुरसंत हित] लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु] माया गुन गोपार।।

 

वातावरण और पर्यावरण के प्रदूषण को नापने के लिए विप्र] धेनु] देवता तथा साधु-सन्यासी उपयुक्त पात्र होते हैं।  जब सीधे] सरल] साधकों] आराधकों] का जीवन दूभर हो जावे] सेनापति] सामंत] सम्राट सत्ता के बल पर साधारण जनों पर दीन] दुर्बल जनता पर] निरीह ग्रामवधू पर] गुंगी दुधारू गायों पर] समाज के सुधारक तथा शिक्षा-दीक्षा देने वाले गुरूजनों पर] सुदूर घने जंगल में कुटिया] कुटीर] बनाकर छात्रों को आश्रम में रखकर पढ़ने-पढ़ाने वाले संतों-साधुओं पर अत्याचार करने लगे] सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए] सुंदरी बालाओं को स्वेच्छाचार में डुबाने के लिए] नर-नारियों के मर्यादित मार्ग को तोड़ने फोड़ने के लिए लोम-विलोम परिणय के स्थान में अपहरण बल-प्रयोग] बलात्कार दैहिक अनाचार प्रतिलोम परिणय के स्थान में अपहरण बल-प्रयोग] बलात्कार] देहिक अनाचार करने लगे] तब किसी न किसी को सुधार के लिए बीड़ा उठाना पड़ता है।  समाज सुधार के लिए] मर्यादा स्थापित करने के लिए] अत्याचार का अंत करने के लिए] आततायी को समाप्त करने के लिए] आतंकवाद को नष्ट करने के लिए] शोषण की क्रूर प्रथा को बंद करने के लिए कोई तो होगा !  सामान्य जनता के बीच में चयन या नामांकन द्वारा – प्रजातंत्र के नाम पर सत्ता को केन्द्रित करके] अथवा शोषित जनों के बीच शोषक पद प्राप्त करने के लिए अथवा राज्य साम्राज्य] सैन्य बल को एकत्र कर समस्त बल को व्यक्ति में केन्द्रित करने के लिए सामान्य जनता की असुविधा को भाग्य या नियति बाधित घोषित कर] समस्त सुविधा को महल में पंूजीभूत करने के लिए] जनसेवा के नाम पर जन नायक बनकर अपनी जय जयकार सुनने के लिए] अपनी पूजा] अपनी प्रतिमा स्थापित करवाने के लिए अपना सम्मान तथा अभिनंदन करवाने के लिए – भांति भांति की कुटिल चाल कौन चलता है] इस कुटिलता को दूर करना-यही पौरूष है] यही प्रभुत्व है] यह परम पुरूषत्व है- और तीनों दशरथि राम ने] भार्गव राम ने] तथा यदुवंशी राम ने यही सब किया।  रावण से लेकर कंस तक कितने दुष्ट धराशायी हो गये।  जामदग्नेय राम का अवतरण प्रदोष समाप्ति पर] रात्रि के प्रथम पहर में हुआ।  उसी दिन त्रेता युग का आरंभ था] तथा नर-नारायण] हयग्रीय जयंती भी अक्षय तृतीया का पावन व्रत है।  तथा प्रभु परशुराम की पूजा आज भी प्रासंगिक है।  प्रभु परशुराम के पौरूष ने] परशु प्रहार ने अनेक आतंकवादियों अत्याचारियों] अनाचारियों] शोषकों] सत्ताधारियों] सम्राटों को समाप्त किया] भले ही वे राजा थे] महाराज थे] क्षत्रियवंशी थे किन्तु अत्याचारियों की कोई जाति नहीं होती] झुंड होते हैं भीड़ होती है- इसलिये द्विभुजी हो] या सहस्त्रभुजी हो- उसकी भुजाओं को काटना जरूरी हो जाता है।

 

जल की सहज धारा को रोकर कुत्सा व्यक्त करना या आश्रम की गोरस-दायिनी कामधेनु को लूट कर ले जाना] आश्रम की आरण्यक संस्कृति को आसुरी संस्कृति के बल पर छिन्न भिन्न करना] संयास के शीर्ष पद पर तपस्वी को न देख सकना] वन बालाओं को बलपूर्वक अंकशायिनी बनाना] इन सब अपराधों को कौन दंडित करेगा  ?  परशुराम ही तो है] भृगुवंश के तेजस्वी] मनस्वी] तपस्वी] तप करते हैं] उर्जा एकत्र करते हैं] धरा को अनेक बार आततायी से मुक्त करते हैं] और फिर निर्मोही होकर सब धरा-धाम को दान देकर जंगल में तरू-तले] पर्वत के शिखर पर] सरिता के तट पर तपोरत हो जाते हैं।  आश्चर्य की बात है कि दुर्धर्ष योद्धा आजन्म ब्रम्हचारी] किन्तु गृहस्थ के लिए वरदानी] पौरूष के साथ परमार्थी] क्रोध के साथ करूणा] कठोरता के साथ कोमलता] पिता के आज्ञा पालक] मां के दुलारे भाइयों में लाड़ले] ऐसा अद्भुत है – प्रभु परशुराम का जीवन चरित्र।  अक्षय तृतीया के दिन प्रभु परशुराम को कोमल] कुरकुरी ककड़ी का प्रसाद चढ़ाना चाहिये] नर-नारायण को सत्तू और हग्रीव को चने की भीगी दाल।  वरदानी परशुराम जयंती पर दान अक्षय होता है – दही] चांवल] जलघट] छाता] जूते] आम] सत्तू के साथ जल दान पवित्र ही नहीं] पुण्य कर्म भी होता है] उस दिन पूर्वजों को तर्पण करके परिवार की मंगल कामना के लिए सदाचारी ब्राम्हण को भोजन से तृप्त करें – यही अक्षय तृतीया है।

 

आज सुदूर सागर पार से जो सर्वनाशिनी संस्कृति छलनामयी अप्सरा सी मोहिनी] मंदिर] मसृण] कोमल] सुख सुविधामयी] मदमस्त बदमस्त] करती आ रही है] विज्ञान का रावण आत्मा की सीता को अशोक वाटिका की मृग मारीचिका में भटका रहा है।  सीमा के पार से चिपटी नाक वाले] लालवानर मुखी] माग्रकेशी] हिंसक पशु वत अट्टहास करने वाले आतंकवादी प्रतिदिन आश्रम की गाय को लूटते हैं] माताओं] बहिनों के शील की दुर्गति करते हैं] मनुष्यों को मूली गाजर के समान काट रहे हैं] भोले भारतीयों को गोली-बारूद से भून रहे हैं ये क्रुरकर्मा पिशाच हैं] असुर हैं] राक्षस हैं] वनैले पशु हैं।  सीमा के उस पार से आने वाली आंधी को कौन रोकेगा ?  सनातन धर्मी] शांति के पुजारी] अहिंसा के पालक] निरीह प्रजाजनों के संहार को कौन रोकेगा ?  आज देवात्मा हिमालय दुखी है] पावनी गंगा विसूर रही है] आर्यजन आतंकित है] पालित पशु पीड़ित है] वन-राजि विलुप्त हो रही है-इसे निर्भय मुक्तकाम] स्वच्छंद स्वत्रंत्र रखने के लिए] आर्य संस्कृति की सुरक्षा के लिए ग्राम वासिनी भारत माता की रक्षा के लिए आज परम पुरूष] परमार्थी प्रभु परशुराम प्रासंगिक है।  उनकी पावन पूजा बल प्रदान करती है।

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