केदार कश्यप पर कर्मचारी से मारपीट का आरोप…,अरुण साव बोले – ‘चरित्र हत्या की राजनीति!’ – सत्ता में भूचाल!

बिलासपुर/जगदलपुर…जगदलपुर सर्किट हाउस में चतुर्थ वर्ग कर्मचारी से मारपीट के आरोप ने प्रदेश की राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है।
वन एवं परिवहन मंत्री केदार कश्यप पर आरोप है कि दौरे से लौटते समय उन्होंने कर्मचारियों से दरवाजा न खोलने को लेकर नाराजगी जताई और गाली-गलौज के साथ मारपीट की।
घटना सामने आते ही विपक्ष ने इसे सत्ता के अहंकार और प्रशासनिक ढिलाई का मुद्दा बना दिया, जबकि सत्ता पक्ष ने इसे बेबुनियाद और राजनीतिक साजिश करार दिया है।
जानकारी के अनुसार, मंत्री केदार कश्यप अपने सरकारी दौरे से लौटे और सर्किट हाउस में प्रवेश के दौरान कर्मचारियों द्वारा समय पर दरवाजा न खोलने पर नाराज दिखे। कर्मचारियों का आरोप है कि मंत्री ने उन्हें न केवल डांटा बल्कि कमरे में बुलाकर हाथापाई भी की। घटना के बाद कर्मचारियों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। कांग्रेस ने इसे “नीचे के कर्मचारियों पर सत्ता का दुरुपयोग” बताते हुए विरोध जताया।
कांग्रेस का आरोप – ‘चरित्र हत्या की राजनीति’
प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने ट्वीट कर कहा कि “यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही बल्कि कर्मचारियों के सम्मान पर हमला है।” कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सत्ता में बैठे लोग लोकतांत्रिक मर्यादा भूलकर आम कर्मचारियों को धमकाने लगे हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और पीड़ित कर्मचारियों को न्याय मिलना चाहिए।
डिप्टी सीएम का बयान – आरोपों का खंडन
डिप्टी सीएम अरुण साव ने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“वरिष्ठ मंत्री ने आरोप का खंडन किया है। कांग्रेस चरित्र हत्या की राजनीति कर रही है। यह आरोप बेबुनियाद हैं और सरकार कर्मचारियों के हित में कार्य कर रही है।”
उन्होंने आगे कहा कि यदि आरोपों में तथ्य मिलते हैं तो उचित कार्रवाई की जाएगी, लेकिन फिलहाल यह राजनीतिक आरोप प्रतीत होता है।
मंत्री केदार कश्यप का पक्ष
मंत्री केदार कश्यप ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा,
“मैं दौरे से लौटकर आया था। कर्मचारियों से नाराजगी जताई थी, लेकिन मारपीट की बात पूरी तरह गलत है। विपक्ष इस घटना का राजनीतिक फायदा उठाना चाहता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कर्मचारियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रशासन की भूमिका और जांच
जगदलपुर कोतवाली पुलिस ने शिकायत दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है।
पुलिस अधिकारियों ने कहा कि संबंधित कर्मचारियों और अन्य गवाहों के बयान लिए जाएंगे। जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है
यह घटना केवल एक प्रशासनिक विवाद नहीं है, बल्कि सत्ता और कर्मचारी वर्ग के बीच संवादहीनता, थकान, दबाव और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रतिबिंब है। विपक्ष इसे सरकार की असंवेदनशीलता का प्रतीक बताकर बड़ा मुद्दा बना सकता है।
वहीं, सत्ता पक्ष इसे विपक्ष की राजनीति करार देकर अपने समर्थकों को संगठित करने का प्रयास कर रहा है।
जांच पूरी होने तक यह मामला चर्चा में रहेगा। यदि आरोप सही साबित हुए तो सरकार को कठोर कदम उठाने होंगे।
यदि आरोप निराधार पाए गए तो राजनीतिक विरोधियों की मंशा पर सवाल उठेंगे। फिलहाल प्रशासन ने मामले को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने और कर्मचारियों का विश्वास बहाल करने का भरोसा दिलाया है।