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जानलेवा है..कोलोरेक्टल कैंसर..लेकिन उतना ही आसान ईलाज…अपोलो की टीम बताया..लेकिन इस बात का रखना होगा ध्यान
कोलरेक्टल कैंसर पहचान में अचूक प्रक्रिया का उपयोग

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बिलासपुर—तेजी से कुछ खास क्षेत्रों में बड़ी आंत का कैंसर पैर पसारता जा रहा है। चिकित्सा जगत में इसे कोलोरेक्टल कैंसर कहा जाता है। थोड़ी सी सजगता से इस बड़ी महामारी पर आसानी से नियंत्रण हासिल किया जा सकता है। और ऐसा हो भी रहा है। लेकिन इसके लिए पीड़ित को थोड़ी सी जागरूकता रखनी होगी। यह बातें प्रेसवार्ता के दौरान अपोलो के मशहूर कैंसर विशेषज्ञों ने दी। चिकिस्ता विशेषज्ञ डॉ.अमित वर्मा और डॉ. देवेन्द्र सिंह ने बताया कि कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव ही आसान है। इसके लिए दिनचर्चा और शारीरिक गतिविधियों में हो रहे परिवर्तन को ध्यान में रखना है। थोड़ी सी आशंका होने पर छोटे से टेस्ट से भारी भरकम बीमारी से बचा जा सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर को लेकर आज अपोलो अस्पताल प्रबंधन ने विस्तार से जानकारी दी। साथ ही समय पर इलाज के अलावा इस महामारी से बचने का उपाय भी बताया। प्रबंधन ने बताया कि कोलोरेक्टल कैंसर का उम्र से कोई लेना देना नहीं है। किसी को भी हो सकता है। लेकिन इस प्रकार का कैंसर पचास साल के आसपास वालों में ज्यादा होती है। शरीर में यकायक होने वाले परिवर्तन के बीच इस कैंसर का प्रारंभिक अवस्था से पहले ही आसानी से पता लगाया जा सकता है। इसके लिए अपोलो कैंसर सेंटर्स ने “कॉल फिट” नामक एक व्यापक कोलोरेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग प्रोग्राम शुरू किया है। इस प्रोग्राम को कोलोरेक्टल कैंसर के रोकथाम के लिए ही शुरू किया गया है।
संभावना को करें खारिज
अपोलो कैंसर सेंटर के वरिष्ठ कैंसर सर्जन डॉ अमित वर्मा ने बताया कि कोलोरेक्टल कैंसर को आरंभिक चरणों में ही रोका जा सकता। इसके बाद किसी भी स्टेज में कैंसर का इलाज बहुत ही कठिन है। डाक्टरों की टीम ने बताया कि भारत में मलाशय कैंसर में मरीजों के 5 साल की जीवित रहने की दर 40 से भी कम है। इसे कभी भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। इस दौरान डाक्टरों ने मलाशय कैंसर के कारणों को भी गिनाया। उन्होने बताया कि मल त्याग की आदतों में लगातार परिवर्तन होना, पुराना दस्त, मलाशय से रक्तसव, या मल में रक्त या अनजाने में वजन कम होना, पेट में लगातार दर्द होना…ऐसे लक्षण कोलोरेक्टल कैंसर की संभावना की तरफ इशारा करते हैं।
ऐसे बचें कोलोरेक्टल कैंसर से
डॉ देवेंद्र सिंह डॉक्टर सीतेंदू पटेल ने कोलोरेक्टल कैंसर के मामलों के बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर की। दोनो डॉक्टर ने बताया कि इस प्रकार के कैंसर की प्रमुख वजह हमारी दिनचर्चा और खानपीन का गलत होना है। मलाशय कैंसर से बचने के लिए भोजन में फाइबर का होना जरूरी है। निष्क्रिय जीवन शैली, मोटापा, अनुवांशिक प्रवृत्ति कोलोरेक्टल कैंसर की वजह है। बचाव के लिए जीवन शैली को ठीक करना जरूरी है। खासकर फास्टफूड से यथासंभव दूर रहना चाहिए। मलाशय कैंसर को ध्यान में रखकर अपोलो कैंसर सेंटर ने कॉल फिट कार्यक्रम तैयार किया है। फिकल इम्यूनो केमिकल टेस्ट के माध्यम से ना केवल कोलोरेक्टल कैंसर की पहचान करते हैं। बल्कि कैंसर का बिना चीर फाड़ के इलाज भी करते हैं।
मलाशय कैंसर पहचान मे अचूक
कॉल फिट स्क्रीन कार्यक्रम सिस्टमैटिक स्क्रीनिंग प्रक्रिया है। प्रक्रिया के तहत सर्वप्रथम जोखिम का निर्धारण किया जाता है।जिनकी आयु 45 वर्ष से अधिक है उनमें मलाशय कैंसर की ज्यादा संभावना होती है। इस बीमारी का पारिवारिक इतिहास नहीं है। उच्च जोखिम वाले मरीजों को जिनका पारिवारिक इतिहास है को कोलोनोस्कोपी की सलाह दी जाती है। जांच के बाद असामान्य परिणाम के नमूनों को विशेष जांच के लिए भेजा जाता है। जबकि कोलोनोस्कोपी के निष्कर्ष की समीक्षा पॉलिप या ट्यूमर होती है।
रोकथाम के लिए जागरूकता
अपोलो कैंसर सेंटर के यूनिट सीईओ अर्नब एस रlहा ने कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि उन्नत कैंसर देखभाल में अपोलो का लक्ष्य न केवल उपचार करना है बल्कि कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम में जागरूकता का प्रसार प्रसार करना भी है। मल्टीलेवल अप्रोच के साथ हम सटीक देखभाल प्रदान करते हैं। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और जीवन की गुणवत्ता पर भी ध्यान देते हैं। हमारी टीम मरीजों के साथ मिलकर आवश्यकतासार ट्रीटमेंट प्लान के लिए काम करती है। कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम के लिए अत्यंत आवश्यक है कि इसका निदान आरंभिक अवस्था में ही किया जाए।
अपोलो में सर्वसुविधा
डॉ.अमित वर्मा और डॉ. देवेन्द्र सिंह ने कहा कि अपोलो कैंसर सेंटर्स में 390 से अधिक अनुभवी कैंसर विशेषज्ञ शामिल है पूरे भारतवर्ष में लगभग 147 देश के कैंसर मरीजों का इलाज करते हैं। अपोलो कैंसर सेंटर बिलासपुर में भी अत्याधुनिक रेडिएशन मशीन लीनियर एक्सीलेटर 2013 से स्थापित है। कैंसर के लिए मेडिकल सर्जिकल और रेडिएशन से उपचार की सुविधा भी है।