CG NEWS:शिक्षकों पर पंचायत सचिव का प्रभार ,विवादित आदेश से शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक नीति पर उठे सवाल

CG NEWS:बिलाईगढ़(मनीष जायसवाल) ।छत्तीसगढ़ में पंचायत सचिवों की शासकीय करण की मांग को लेकर चल रही अनिश्चितकालीन हड़ताल ने ग्राम पंचायत के ग्रामीण प्रशासन को ठप कर दिया है। इस हड़ताल के कारण पंचायतों के कार्य प्रभावित हो रहे हैं, जिससे कामों में गति लाने के लिए सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के उप संचालक (पंचायत) कार्यालय ने एक विवादास्पद आदेश जारी किया है। इस आदेश (क्रमांक: 105/2025) के तहत राजस्व, कृषि, और स्कूल शिक्षा विभाग के 123 कर्मचारियों, जिनमें कई प्राथमिक शालाओं के शिक्षक और प्रधान पाठक शामिल हैं, को पंचायत सचिव का प्रभार सौंपा गया है। यह निर्णय शिक्षकों के बीच तीखे विरोध का कारण बन गया है, जो इसे अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी और अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।
शिक्षकों का कहना है कि पंचायत सचिवों की हड़ताल अभी लंबी चल सकती है, और उन्हें इस जटिल प्रशासनिक भूमिका में बिना किसी प्रशिक्षण या अनुभव के धकेलना अनुचित है। पंचायतों में लेन-देन, हिसाब-किताब और अन्य वित्तीय प्रक्रियाओं की जानकारी उनके पास नहीं है, जिससे उनकी “कलम बेवजह फंसने” का डर बना हुआ है। शिक्षकों की चिंता यहीं खत्म नहीं होती। 30 अप्रैल से स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश शुरू होने वाला है, और इस समय शिक्षकों के पास स्कूलों से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्य बाकी हैं..। ऐसे में अतिरिक्त जिम्मेदारी थोपना उनके लिए दोहरी मार साबित हो सकता है। शिक्षकों को आशंका है कि यदि इस आदेश का अनुसरण प्रदेश के सभी जनपद पंचायतों में होने लगा, तो राज्य के सभी विभाग शिक्षकों को मुफ्त का सहयोगी मानकर चलेंगे, जो कहीं से भी उचित नहीं है।
जारी आदेश में छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 69 का हवाला दिया गया है, जो राज्य सरकार या विहित प्राधिकारी को ग्राम पंचायतों के लिए सचिव नियुक्त करने का अधिकार देता है। इस धारा के अनुसार, नियुक्त व्यक्ति पंचायत सचिव की सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। साथ ही, धारा 66(4) के तहत पंचायत निधि से राशि निकासी के लिए कुछ उपबंधों के साथ अनुमोदन की शक्ति दी गई है।
हालांकि, शिक्षकों का कहना है कि उन्हें इन कानूनी प्रावधानों की कोई जानकारी नहीं है, और बिना प्रशिक्षण के वे इन जिम्मेदारियों को कैसे निभा सकते हैं..? यह स्थिति न केवल उनके लिए जोखिम भरी है, बल्कि पंचायतों के वित्तीय प्रबंधन में भी गड़बड़ी का कारण बन सकती है।
शिक्षकों का कहना है कि उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी बच्चों को शिक्षित करना और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है..। उन्हें पंचायत सचिव जैसे प्रशासनिक कार्यों में शामिल करना उनके मुख्य दायित्व से ध्यान भटकाने वाला कदम है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही शिक्षकों की कमी एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में, उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपना शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से प्राथमिक स्कूलों में, जहां शिक्षक पहले से ही कई भूमिकाएं निभाते हैं, यह निर्णय बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो सकता है..!
शिक्षकों का यह भी कहना है कि पंचायत विभाग को शिक्षा विभाग के कर्मचारियों को अपने कार्यों के लिए नियुक्त करने का अधिकार तभी होना चाहिए, जब उच्च स्तरीय अनुमोदन या अंतर-विभागीय सहमति हो..। बिना किसी स्पष्ट नीतिगत ढांचे के यह आदेश प्रशासनिक मनमानी का उदाहरण बन सकता है।
शिक्षकों के बीच इस आदेश का विरोध इसलिए भी तीखा है, क्योंकि यह उनकी सहमति के बिना थोपा गया है। कई शिक्षकों ने बताया कि उन्हें इस जिम्मेदारी के लिए न तो सूचित किया गया, न ही तैयार किया गया। इससे न केवल उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होगी, बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ेगा। शिक्षक संघों ने इस निर्णय को अलोकतांत्रिक करार देते हुए मांग की है कि इसे तत्काल वापस लिया जाए। उनका कहना है कि पंचायत सचिव के लिए पंचायत विभाग से जुड़े किसी अन्य को यह प्रभार दिया जाए ताकि शिक्षकों पर अनावश्यक बोझ न पड़े।
चर्चा में शिक्षकों ने बताया कि यह आदेश न केवल शिक्षकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने का खतरा भी पैदा करता है। सरकार को इस आदेश की तत्काल समीक्षा करनी चाहिए और शिक्षकों को उनकी मूल जिम्मेदारी—शिक्षण—पर केंद्रित रहने देना चाहिए। साथ ही, पंचायत सचिवों की हड़ताल के समाधान के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि ग्रामीण प्रशासन और शिक्षा दोनों सुचारु रूप से चल सकें..।