CG NEWS:संगीन ज़ुर्मः अपोलो के साथ जुड़ी “भरोसे की डोर” कमज़ोर हो रही… ! यह क्यों नहीं समझ रहा मैनेजमेंट….?
अपराध दर्ज लेकिन अभी सामने नहीं आए कई सवालों के जवाब, क्या छिपा रहा है प्रबंधन.... ? इलाज में लापरवाही की बात 2006 में भी सामने आ गई थी। उस समय डॉ. प्रदीप शुक्ल सहित छत्तीसगढ़ शासन के जन प्रतिनिधि और अधिकारी डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव और अपोलो अस्पताल प्रबंधन से लगातार पूछताछ करते रहे। लेकिन पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की बीमारी, उपचार और मृत्यु के संबंध में गोल-गोल जवाब दिया जाता रहा।

CG NEWS : करीब 19 साल पहले उस समय के छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की इलाज के दौरान मौत के मामले में पुलिस ने अपोलो प्रबंधन और उनका ऑपरेशन करने वाले डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है। लेकिन अभी भी कई सवालों के जवाब सामने नहीं आए हैं।
पिछले कुछ समय से चर्चित हुए इस मामले में अब तक अपोलो प्रबंधन का रुख साफ नजर आ रहा है कि वह मामले की जांच पड़ताल में सहयोग नहीं कर रहा है। सबसे अहम सवाल यह है कि जिस डॉक्टर की डिग्री ही संदिग्ध है, उसे हार्ट का ऑपरेशन करने के लिए अपोलो जैसे अस्पताल में क्यों और कैसे नियुक्ति दी गई ? इस नियुक्ति की वजह से ही डॉक्टर यादव ने पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल सहित और भी कई मरीजों का ऑपरेशन किया ।
जिन्हें असमय ही मौत ने लील लिया। पुलिस के शिंकजे में आने का बाद भी अगर अपोलो प्रबंधन कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा है तो इस अस्पताल के साथ जुड़ी भरोसे की डोर भी कमजोर होगी। जिसे उसने बड़ी कोशिशों के बाद कमाया है और इसी की वजह से पं. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल सहित बड़ी संख्या में लोग इमरजेंसी के समय अपोलो की डेहरी चढ़ते हैं।
बड़ी खबर है की सरकंडा पुलिस ने अपोलो प्रबंधन और डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 465 ,466, 468, 471, 304 और 34 के अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना शुरू की है। पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के पुत्र डॉ. प्रदीप शुक्ल के आवेदन पर यह मामला पंजीबद्ध किया गया है। जैसा कि मालूम है कि 20 अगस्त 2006 को उस समय छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल का अपोलो में इलाज के दौरान निधन हो गया था। उन्हें हार्ट अटैक के बाद अपोलो में इलाज के लिए भर्ती किया गया था। जहां डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने उनका ऑपरेशन किया था।
इलाज में लापरवाही की बात 2006 में भी सामने आ गई थी। उस समय डॉ. प्रदीप शुक्ल सहित छत्तीसगढ़ शासन के जन प्रतिनिधि और अधिकारी डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव और अपोलो अस्पताल प्रबंधन से लगातार पूछताछ करते रहे। लेकिन पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की बीमारी, उपचार और मृत्यु के संबंध में गोल-गोल जवाब दिया जाता रहा। परिवार के सदस्यों को उनसे मिलने का मौका भी नहीं दिया गया। बाद में अपोलो प्रबंधन ने लीपा पोती कर मामले को दबा दिया। पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के उपचार में खर्च हुए करीब 20 लाख रुपए का भुगतान छत्तीसगढ़ विधानसभा से अपोलो प्रबंधन ने प्राप्त किया।
इसी अप्रैल महीने की 8 तारीख को जब डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ डॉक्टर नरेंद्र जान केम को लेकर मिशन अस्पताल दमोह में हृदय रोग विशेषज्ञ की फर्जी डिग्री का मामला सामने आया। और पता चला कि हृदय रोग से पीड़ित कई मरीजों की मौत हो चुकी है। इस मामले में डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को गिरफ्तार किया गया।
तब अपोलो बिलासपुर से जुड़ा यह मामला फिर से खुल गया। तब यह बात सामने आई कि जो डॉ. नरेन्द्र विक्रमादित्य यादव हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं है, उसके हाथों किसी मरीज के हार्ट का ऑपरेशन किया जाएगा तो निश्चित ही उस मरीज की मौत हो जाएगी। यह मामला उठने के बाद अपोलो प्रबंधन भी सवालों के दायरे में आया और पूछा जाने लगा कि डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव की फर्जी डिग्री को बिना जांच और भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा डॉक्टरों की नियुक्ति हेतु निर्धारित मापदंडों का पालन किए बिना अपोलो प्रबंधन ने कैसे नियुक्ति दी ?
हालांकि डॉ. प्रदीप शुक्ला की रिपोर्ट पर सरकंडा पुलिस ने अपोलो प्रबंधन और डॉक्टर यादव के खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया है। लेकिन अपोलो प्रबंधन अभी भी सवालों के दायरे में है। पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के असामयिक निधन के मुद्दे पर बवाल उठा ,कांग्रेस की ओर से प्रदर्शन किया गया और समाज के विभिन्न वर्गों की ओर से जांच की मांग को लेकर ज्ञापन भी प्रस्तुत किए गए। लेकिन गंभीर बात यह भी है कि इस दौरान अपोलो प्रबंधन की ओर से सहयोगात्मक रवैया नजर नहीं आ रहा है। जाहिर सी बात है कि डॉ. विक्रमादित्य यादव ने अपोलो अस्पताल में ऑपरेशन किया था।
इस तरह एक डॉक्टर को इलाज के लिए अस्पताल की जगह अपोलो प्रबंधन में ही मुहैया कराई। इस वजह से पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ला और दूसरे मरीज उनसे इलाज कराने के लिए पहुंचे । ऐसे में अपोलो प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि वह साफ-साफ बताए की कोई योग्यता या विशेषज्ञता नहीं होने के बावजूद डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को नियुक्ति किस आधार पर दी गई ? उन्हें नियुक्ति देने के मामले में जिम्मेदार कौन है ? डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव जब जुलाई 2006 से मार्च 2007 तक बिलासपुर अपोलो में कार्यरत रहे। इस दौरान उन्होंने कितने मरीजों का इलाज किया, कितने मरीजों के हार्ट का ऑपरेशन किया और इलाज के बाद उन मरीजों की क्या स्थिति थी ? इन सवालों का जवाब भी अपोलो प्रबंधन की ओर से आना चाहिए। पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के इलाज के लिए अपोलो ने कितनी फीस ली यह भी सामने आना चाहिए।
इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि अपोलो अस्पताल अपनी स्थापना के बाद से ही इलाज के मामले में लोगों के लिए भरोसेमंद रहा है। लिहाजा इमरजेंसी के समय लोग यहां पहुंचते हैं। लेकिन लोगों का भरोसा तोड़ते हुए अपोलो प्रबंधन यदि ऐसे डॉक्टर की नियुक्ति करता है, जिसकी डिग्री फर्जी पाई जाती है तो इसे बड़ा विश्वासघात क्यों नहीं माना जा सकता ? सवाल यह भी उठता है कि अपोलो प्रबंधन यदि डॉ. नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को नियुक्ति नहीं देता तो क्या अपोलो पर भरोसा करने वाले लोग उनके गलत इलाज की वजह से मौत के मुंह में जाते ।
गौरतलब यह भी है कि अपोलो प्रबंधन के पास सारे दस्तावेज हैं जो बताते हैं कि पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने कब-कब अपोलो में अपना इलाज कराया, उन्हें क्या बीमारी थी और उनका उपचार किस तरह किया गया। लेकिन वही प्रबंधन यह नहीं बता रहा है कि डॉ नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने कब-कब ,किसका -किसका इलाज किया और मरीजों की क्या स्थिति रही ? कोई भी पूछ सकता है कि इतना बड़ा मामला सामने आने और संगीन ज़ुर्म दर्ज होने के बाद भी अपोलो प्रबंधन सभी तथ्यों को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रहा है… ? इलाज से जुड़ी अपनी उपलब्धियों को बताने के लिए समय – समय पर प्रेस कांफ्रेस करने वाला प्रबंधन ख़ामोश क्यों हैं… ?
अपोलो मैनेजमेंट का यह रुख़ अपोलो के साथ जुड़ी “भरोसे की डोर” को भी कमज़ोर कर सकता है। जब पुलिस का शिकंजा कस गया है और लापरवाही ही नहीं संगीन जुर्म की तफ़तीश भी शुरू हो गई है, ऐसे में अपोलो प्रबंधन को छिपने – छिपाने का खेल बंद कर सामने आना चाहिए और सच सामने रखना चाहिए । जिससे अपोलो पर लोगों का भरोसा कायम रहे।