एक गांव..जहां महिलाओं ने पलटा पासा…संभाला होली पर्व का जिम्मा..सरपंच ने तारा ने कहा सब बराबर….महिलाओं ने गया कबीरा..जोगी सरा..रा..रा
सोन की महिला सरपंच तारा ने खींची महिला सशक्तिकरण की नई लकीर

बिलासपुर— हम आजादी के 75 साल आगे आ चुके हैं। इस दौरान देश की जनता ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक पन्नों को उलटते पटलते देखा। यद्यपि इस दौरान महिलाओं को सशक्त करने कई कानून भी बनाए गए। बावजूद इसके महिलाओं का आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। यह जानते हुए भी बेशक भारत पुरूष प्रधान देश है…लेकिन घर से लेकर बाहर तक महिलाओँ के बिना कोई काम संभव नहीं है। बावजूद इसके महिलाओं को आज भी दोयम स्तर बना कर रखा गया है। लेकिन मस्तूरी ब्लाक के सोन गांव ने गांव के सरपंची इतिहास में होली पर्व पर कुछ कर दिखाया..जिसकी चर्चा आज बिलासपुर जिले से बाहर प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। तारा साहू ने इस बार गांव में होली का पर्व ना केवल महिलाओं के हवाले किया। बल्कि होली दहन के बाद दूसरे दिन कबीरा और जोगी सरा..रा..रा भी गया। इस दौरान व्यवस्था वैसी ही रही जैसे पुरूष सरपंचो के समय हुआ करती थी। लेकिन अगुवाई गांव की बड़ी बुजुर्ग महिलाओं से लेकर नौ जवान बच्चियों ने किया।
पुरूष प्रधानता का पलटा पासा
महिलाए चाह भर लें…इतिहास को इतिहास में स्थान देना ही पड़ता है। भारत देश में महिलाओं की बोल्ड फैसलों का उदाहरण भी जहां तहां पढ़ने को मिल भी जाएगा। महिला सशक्तिकरण का ताजा उदाहण बिलासपुर जिले के ब्लाक मस्तूरी स्थित सोन गांव में देखने को मिला। गांव में सालों साल से हर गांव की तरह सोन में भी होली पर्व को पुरूष प्रधान माना जाता रहा है। पुरूष दारू पीकर रंग लगाकर घर लौटते..और महिला घर के अन्दर बैठकर या तो पकवान छानती..या फिर बच्चों की सेवा में रहती थी। लेकिन इस बार महिला सरपंच तारा साहू ने सारा पासा ही पलट दिया।
महिलाओं ने संभाला होली पर्व का जिम्मा
नव निर्वाचित सरपंच ने पुरूष प्रधान गांव को वह सब कुछ करने को मजबूर कर दिया…जिस बात को महिलाओं को बहुत कर देना चाहिए था। नवनिर्वाचित सरपंच तारा मोती साहू ने इस बार होली की सारी जिम्मेदारी महिलाओं को दिया। होलिका दहन के दिन गांव की वरिष्ठ महिला के हाथों होली का दहन किया। इस दौरान सभी महिलाओं ने गांव घूमकर महिला और पुरूषों को प्यार भाईचारा का गुलाल लगाया। सरपंच तारा मोती साहू ने गांव के एक-एक घर को होली चौपाल में आमंत्रित किया। धुलंडी के दिन गांव के क्या स्त्री क्या पुरूष..क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग सभी लोग एकत्रित हुए। इस दौरान महिलाओं ने जमकर घर की जिम्मेदारियों के साथ पुरूषों के साथ उमंग और उत्साह का जश्न मनाया।
महिलाओं ने गाया कबीरा
कम पढ़ी लिखि तारा मोची साहू ने चौपाल कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। उपस्थित लोगों ने एक दूसरे को गुलाल और रंग लगाकर सम्मानित किया। बच्चों को ईनाम तो बुजुर्गों को सम्मान भी दिया। डीजे के धुन पर महिलाओं ने मर्यादा का पूरा ध्यान रखकर घूंघट और बिना घूंघट में होली का नाच गाकर जश्न लगाया। रिश्तों की मर्यादा में सभी ने ना केवल कबीरा गाया..बल्कि जोगी रा…सरा..रा..रा भी सुनाया। नंगाड़ा बजाकर अपना हुनर भी दिखाया…इस दौरान पूरे गांव ने एक पंडाल के नीचे बैठकर पति और बच्चों के साथ भोजन भी किया।
तारा मोती ने रचा इतिहास
मजेदार बात है कि पुरूषों ने इस नजारा को देखकर ना केवल अपने आप पर गर्व किया। बल्कि यह कहते भी पाये गए कि पर्व पर सबका अधिकार है। आज महिलाओं ने साबित कर दिया कि वह किसी से कम नहीं है। दरअसल महिलाओं का असली सशक्तिकरण आज नजर आया है। गांव के पुरूषों ने कहा कि सच तो यह है कि तारा मोती साहू ने नया इतिहास रचकर बच्चियों को नई दिशा दिया है।
लैंगिक भेदभाव पसंद नहीं
नव निर्वाचित सरपंच तारा मोती साहू ने बताया कि होली पर्व समाज के भेदभाव को दूर करता है। वैमनस्यता को खत्म करता है। कल तक क्या हुआ..मुझे इससे कोई लेना देना नहीं…अब क्या होगा इस पर हमारी नजर है। हम बुजुर्ग मात भाई बहनों की दिशा निर्देश पर गांव के विकास के लिए हर संभव काम करेंगे। समाज के सभी पर्व भाईचारा का संदेश देते हैं। हमें महिला पुरूष के भेदभाव से दूर होकर ना केवल महिलाओं को बल्कि पुरूषों को भी सबल बनाना है। हमें ईकाई होकर गांव के लिए काम करना है।