“मासूम के हित में हाईकोर्ट का अहम फैसला: कस्टडी मामा के पास, पिता को सीमित मिलने की अनुमति”

बिलासपुर… छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मासूम के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि आठ साल के बच्चे की कस्टडी उसके मामा ललित सिंह के पास रहना बच्चे के हित में होगा। वहीं, जैविक पिता को बच्चे से मिलने की सीमित अनुमति दी गई है।
जानकारी के अनुसार, बच्चा जन्म के 15 दिन बाद अपनी माँ रागिनी सिंह के निधन के कारण अनाथ हो गया। उस समय से वह अपने मामा ललित सिंह के संरक्षण में बड़ा हुआ। पिता ने कुछ समय बाद दूसरी शादी कर ली, लेकिन इस दौरान बच्चे को अपने पास लाने की कोई कोशिश नहीं की।
बच्चे के मामा ने गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत कस्टडी की मांग की। फैमिली कोर्ट ने भी इस आधार पर फैसला सुनाते हुए बच्चे की परवरिश का अधिकार मामा को दिया। पिता ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी और खुद को स्वाभाविक अभिभावक बताते हुए बेटे की कस्टडी लेने की अपील की।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क और साक्ष्यों की समीक्षा के बाद पाया कि बच्चा बचपन से मामा के साथ रह रहा है और वहां सुरक्षित व खुश है। यदि उसे पिता और सौतेली मां के पास भेजा गया तो बच्चा असहज महसूस कर सकता है। इसी कारण अदालत ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए मामा के पक्ष में कस्टडी देने का निर्णय सुनाया।
कोर्ट ने साथ ही पिता को यह अनुमति दी है कि वह वीडियो कॉल, छुट्टियों और त्योहारों पर अपने बेटे से मिल सकते हैं, लेकिन बच्चे के स्थायी रहने का अधिकार केवल मामा के पास रहेगा।