
आंकड़ों की रिपोर्ट नहीं, चेतावनी है ये!
क्षेत्र | प्रदेश रैंक (33 जिलों में) | कमेंट |
---|---|---|
मातृत्व पंजीयन | 29 | माताओं की जान से खिलवाड़ |
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी पहचान | 30 | बच्चे और मां दोनों खतरे में |
एनिमिया टैबलेट वितरण | 19 | बच्चों की सेहत से मज़ाक |
पोषण पुनर्वास केंद्र | 36% इलाज दर | ये इलाज नहीं, दिखावा है |
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य परीक्षण | 28 | स्कूलों में खानापूर्ति |
टीबी जागरूकता | 28 | बिलासपुर = टीबी हॉटस्पॉट? |
कुष्ठ रोग पहचान | 33 | आखिरी पायदान – शर्मनाक! |
मानसिक रोग स्क्रीनिंग | 33 | अवसाद से जूझते मरीज़ भटके |
डायबिटीज जांच (30+) | 33 | बुजुर्गों को भगवान भरोसे |
स्तन कैंसर स्क्रीनिंग | 32 | महिलाओं से सीधा धोखा |
गर्भाशय कैंसर स्क्रीनिंग | 32 | फिर महिलाओं को अनदेखी |
सिकल सेल स्क्रीनिंग | 28 | आदिवासी स्वास्थ्य की बर्बादी |
इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि जिले की स्वास्थ्य मशीनरी पूरी तरह से जमींदोज हो चुकी है। हैरत की बात है कि जिन दो जिलों — खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और मोहला-मानपुर-चौकी — को नक्सल प्रभावित कहा जाता है, वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था बिलासपुर से बेहतर है।
स्वास्थ्य समीक्षा .33 जिलों में बिलासपुर का स्थान 31वां,
बिलासपुर। कहने को तो यह शहर छत्तीसगढ़ की न्यायधानी है, मगर स्वास्थ्य व्यवस्था की असलियत इतनी बदहाल है कि अब यह शहर ‘बीमार व्यवस्था का बड़ा उदाहरण’ बनता जा रहा है। ताज्जुब की बात यह है कि प्रदेश के 33 जिलों में बिलासपुर का स्थान 31वां है, और वह भी तब जब यह जिला हर दृष्टि से शासन के लिए एक ‘प्रायोरिटी ज़ोन’ माना जाता रहा है।
प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ताज़ा रैंकिंग रिपोर्ट में बिलासपुर लगभग हर अभियान में औंधे मुंह गिरा हुआ पाया गया है। न मातृत्व स्वास्थ्य सुधरी है, न टीबी, कुष्ठ और मानसिक रोगों की रोकथाम, और न ही गैर-संक्रामक रोगों को लेकर जागरूकता। लगभग हर रैंकिंग में बिलासपुर नीचे से चौथे, तीसरे या अंतिम पायदान पर है।
बिलासपुर बनेगा बीमारियों का हॉटस्पॉट!
बहरहाल विभाग में अंगद की पांव की तरह जमें कर्मचारियों पर शासन का ध्यान नहीं है। आंकड़ें बता रहे हैं कि वह दिन दूर नहीं जब बिलासपुर को प्रदेश और देश मे बीमारियों का हाटस्पाट कहा जाएगा। इस स्थित से बचने के लिए स्वास्थ्य विभाग को कमरे के अंदर बैठकर PowerPoint स्लाइड्स नहीं, फील्ड में उतरकर सच्चाई देखनी चाहिए। जनता को *“औसत सेवा” नहीं, “आदर्श सेवा” की जरूरत है। अगर बिलासपुर जैसे शहर में स्वास्थ्य का यह हाल है, तो सोचिए दूरदराज़ के गांवों में क्या हालत होगी?
जिम्मेदार कौन? एक दिन में नही बिगड़ी हालत
जिले के स्वास्थ्य तंत्र की यह हालत कोई एक दिन की उपज नहीं है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि कई कर्मचारी और अधिकारी वर्षों से एक ही स्थान पर टिके हुए हैं। कई कर्मचारी तो ऐसे भी हैं जिन्होने जिला स्वास्थ्य विभाग में संविदा कर्मचारी बनकर ज्वाइन किया। अब रिटायर्ड होने की स्थिति में है। न तो इनका ट्रांसफर होता है और न ही इनकी जवाबदेही तय की जाती है।
इन कर्मचारियों ने बिलासपुर में स्थायी निवास, राजनीतिक पकड़ और भीतरखाने की नेटवर्किंग से स्वास्थ्य विभाग को निजी अखाड़ा बना रखा है।
सवाल.. कहां खर्च हो रहा रूपया
बिलासपुर की जनता सवाल पूछ रही है कि जब राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय स्वास्थ्य अभियान में जिला हर बार पिछड़ रहा है, तो विभागीय अधिकारी और कर्मचारी आज तक बच कैसे रहे हैं? क्या शासन के पास बिलासपुर जैसे जिले के लिए कोई ठोस कार्ययोजना है? और सबसे अहम बात की जनता का पैसा आखिर किसके इलाज पर खर्च हो रहा है?
मंत्री की बैठक – चर्चा नहीं हुई, समझिए सरकार भी दोषी
आज रायपुर में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की अगुवाई में प्रदेशभर के जिलों की स्वास्थ्य समीक्षा बैठक होने जा रही है। बैठक के मद्देनजर सवाल उठना निश्चित है। सवाल है कि क्या बिलासपुर के शर्मनाक आंकड़ों को जिला स्वास्थ्य महकमा मीटिंग टेबल पर रखेगा। क्या उन कर्मचारियों पर कार्रवाई होगी जो दशकों से अपने पदों पर अंगद की तरह जमे हैं? क्या स्वास्थ्य मंत्री बिलासपुर की बिगड़ती व्यवस्था पर सवाल पूछेंगे या उन्हें भी “रैंकिंग रिपोर्ट” की फाइलें बहलाएंगी? क्या मंत्री न्यायधानी की बिगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोई कारगर कदम उठाएंगे। या फिर एक बार फिर रिपोर्टों में लीपापोती कर जिले को बेहाल छोड़ दिया जाएगा। फिलहाल इसकी जानकारी बैठक के बाद ही सामने आएगी।
सीएमएचओ ऑफिस – संवाद नहीं, सन्नाटा
सीजीवाल की टीम ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. शुभा गरेवाल से संपर्क का प्रयास किया, तो एक बार फिर वही पुरानी कहानी: “मीटिंग में व्यस्त हैं”।“बात करनी है तो शाम चार बजे आइए”। मतलब अधिकारी बार-बार पत्रकारों से कटते हैं जैसे सवाल पूछना अपराध हो। सवाल उठता है कि क्या मीटिंग की आड़ में जवाबदेही से भागना बिलासपुर स्वास्थ्य विभाग का आदत बन चुका है?
क्यों बीमार है बिलासपुर का स्वास्थ्य विभाग?
विभागीय कर्मचारियों की स्थायी पोस्टिंग, वर्षों से वही चेहरे, नेतागिरी, ट्रांसफर रुकवाने के खेल, कर्मचारियों की जवाबदेही खत्म,
हर योजना का मूल्यांकन आंकड़ों में मैनेज, सीएमएचओ ऑफिस में सिर्फ कागजी तैयारी,
कब होगा ‘अन्याय’ का अंत?
अगली कड़ी में हम सामने लाएंगे: किस-किस ने बिलासपुर स्वास्थ्य तंत्र को गिराने में भूमिका निभाई? कौन-कौन अधिकारी और संविदा कर्मचारी वर्षों से ट्रांसफर रोककर यहां कुंडली जमाए हैं? और किन योजनाओं में सरकारी धन सिर्फ आंकड़ों में ही खर्च हो रहा है?