CG NEWS:बिलासपुरिया आनंद पांडे ने न्यूयार्क में पेश की नायाब मिसाल, पूरे रीति-रिवाज़ से कराया मुस्लिम सहकर्मी का कफ़न -दफ़न

CG NEWS:बिलासपुर । यूएनओ न्यूयार्क में अपनी सेवाएं दे रहे बिलासपुरिया आनंद पांडे ने इंसानियत की एक नायाब मिसाल पेश की है। उन्होने पाकिस्तान में जन्मे अपने सहकर्मी शेर खान के निधन के बाद पूरे रीति – रिवाज़ के साथ उनका कफ़न -दफ़न कराया । शेर खान यूएनओ से रिटायर होने के बाद न्यूयार्क में ही बस गए थे और वे अकेले थे , जब उनका निधन हुआ। बिलासपुर – छत्तीसगढ़ के तखतपुर में जन्मे आनंद पांडे ने सात समंदर पार आपसी प्रेम ,भाईचारे और सौहार्द्र की मिसाल पेश की तो इसकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई है। पाकिस्तान मीडिया ने भी इसे कवरेज़ दिया।
यह छत्तीसगढ़ और बिलासपुर के लिए गौरव का विषय है कि तखतपुर के एक छोटे से गांव में जन्मे आनंद पांडे को हाल ही में छत्तीसगढ़ अप्रवासी भारतीय सम्मान से नवाज़ा गया। मूलतः तखतपुर बेलसरी के निवासी आनंद पांडे संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय न्यूयार्क में पदस्थ हैं और छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति के प्रचार – प्रसार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आनंद कुमार पाण्डे का जन्म तखतपुर के बेलसरी गांव में 19 सितंबर 1977 को हुआ । उनके पिता दुर्गा प्रसाद पांडे ने बाल्को के महाप्रबंधक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। 47 वर्षीय आनंद पांडे वर्तमान में न्यूयार्क के किस्सेना बीएलबीडी में रहते हैं। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय न्यूयार्क में वित्त विभाग में यूनिट चीफ के रूप में कार्यरत हैं ।
हाल की एक घटना ने आनंद पांडे को झकझोर दिया,जब उन्हे ख़बर मिली कि यूएनओ में उनके सहकर्मी रहे 80 वर्षीय शेर खान का निधन हो गया है। जिस समय शेर खान का निधन हुआ, वे अकेले थे ।सबसे अहम् सवाल था कि उनका अंतिम संस्कार किस तरह होगा….? तब आनंद पांडे आगे आए। शेर खान के परिवार का अमेरिका में कोई सदस्य न होने के कारण आनंद पांडे ने ही उनकी अंतिम विदाई और दफन क्रियाओं का इंतज़ाम किया । जिसे न्यूयॉर्क के मुस्लिम समुदाय द्वारा अत्यधिक सराहा गया। आनंद पांडे ने शेर खान के लिए आर्थिक सहायता एकत्र की । स्थानीय मस्जिद में जुम्मा की नमाज अदा की और उनके अंतिम संस्कार की सभी रस्में पूरी कीं। यह खबर पाकिस्तान में भी व्यापक रूप से कवर की गई, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि मानवता और सम्मान की सीमाएँ किसी धर्म या देश तक सीमित नहीं होतीं।
आनंद पांडे बताते हैं कि शेर खान 1945 में कराची, पाकिस्तान में जन्मे। उन्होंने अपनी शिक्षा रावलपिंडी में प्राप्त की । वे उर्दू, अंग्रेज़ी और अरबी भाषाओं में निपुण थे। संयुक्त राष्ट्र में उनकी असाधारण यात्रा 1975 में शुरू हुई जब उन्होंने Department of Economic and Social Affairs (DESA) में कार्यभार संभाला। उन्होंने DESA के कार्यकारी कार्यालय, UN OHRLLS, और UN Office of the Special Adviser on Africa में महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान कीं। 2005 में सेवानिवृत्त होने के बावजूद, उन्होंने 2015 तक विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए संयुक्त राष्ट्र के कई कार्यालयों की परिचालन क्षमता को सशक्त बनाने में योगदान दिया।
यह बताते हुए आनंद पांडे भावुक हो गए कि शेर खान खान एक शांत और सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे। जिनमें दयालुता, ईमानदारी और गरिमा बेशुमार थी। उनके सहकर्मी उन्हें अत्यंत सम्मान और प्रशंसा की दृष्टि से देखते थे। संयुक्त राष्ट्र के नए और अनुभवी कर्मचारियों के बीच वे एक सेतु की भूमिका निभाते थे, और हमेशा सभी का मुस्कुराहट के साथ स्वागत करते थे। शेर खान एक गरिमामय आत्मा थे, जिन्होंने हमें जाति, धर्म और राष्ट्रीयता की सीमाओं से ऊपर उठने का मार्ग दिखाया और एक सच्चे वैश्विक नागरिक के मूल्यों को आत्मसात किया। आनंद पांडे ने बताया कि अपने अंतिम दिनों तक वे मुझसे महासभा के प्रस्तावों और पाँचवीं समिति की रिपोर्टों के बारे में पूछते रहते। अंतरराष्ट्रीय नागरिक सेवक के रूप में पूरी प्रतिबद्धता से जुड़े रहे। उनके निधन के साथ, हमने संयुक्त राष्ट्र के उन सहयोगियों में से एक को खो दिया है, जिन्होंने हमारे संगठन के मूल्यों का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया। संयुक्त राष्ट्र समुदाय उन्हें अत्यधिक याद करेगा। उनका समर्पण, विनम्रता, और संगठन के प्रति अटूट सेवा हमेशा हमारे हृदय में जीवित रहेगी।
यूएनओ में नए और अनुभवी कर्मचारियों के बीच सेतु का किरदार अदा करने वाले शेर खान ने आनंद पांडे के दिलो – दिमाग पर ऐसी छाप छोड़ी कि आख़िरी बिदाई के समय भी सेतु का किरदार निभाने के लिए वे ख़ुद आगे आए और दिलों को जोड़ने वाला अद्भुत उदाहरण पेश किया। जाति, धर्म और राष्ट्रीयता की सीमाओं से उठकर आनंद ने आपसी प्रेम, मोहब्बत और भाईचारे की ऐसी मिसाल कायम कर दी, जिसकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई है। पाकिस्तान मीडिया ने भी इसे कवर करते हुए कहा कि एक हिंदू ने मुस्लिम का कफ़न – दफ़न कर इंसानियत की मिसाल पेश की है।