रतनपुर घूसकांड: सत्ता के साये में झुकी जांच, तस्वीर ने खोला सिस्टम की शर्म का चेहरा

बिलासपुर/रतनपुर…22 सितंबर को रतनपुर नगर पालिका के भ्रष्टाचार और अवैध वसूली के गंभीर आरोपों पर जब सबूतों के साथ शिकायत दर्ज हुई, तब आम जनता में उम्मीद जगी थी कि इस बार शायद सच सामने आएगा। कलेक्टर ने तुरंत जांच की ज़िम्मेदारी नगरीय निकाय विभाग के संयुक्त संचालक राकेश जायसवाल को सौंपी — लेकिन बीस दिन बीत चुके हैं, और जांच की रफ्तार आज भी वैसी ही है, जैसी उस दिन थी।
इसी बीच एक तस्वीर सामने आई जिसने इस “धीमी जांच” पर गहरे सवाल खड़े कर दिए। तस्वीर उपमुख्यमंत्री अरुण साव के भूमि पूजन कार्यक्रम की है — पर चर्चा उस कार्यक्रम की नहीं, बल्कि उसमें दिख रहे दो चेहरों की है।
पहला, वही जांच अधिकारी — संयुक्त संचालक राकेश जायसवाल, और दूसरा, उसी भ्रष्टाचार कांड में घिरे नगर पालिका रतनपुर के अध्यक्ष लवकुश कश्यप।
सूत्रों का कहना है कि तस्वीर में अधिकारी का सर जिस तरह अध्यक्ष के समक्ष झुकता दिखा, उसने लोगों के मन में यह यकीन गहरा दिया कि सत्ता के सामने न्याय का सिर उठ नहीं पा रहा। और यही वह दृश्य है जिसने रतनपुर की जनता के भरोसे को भीतर तक झकझोर दिया है।
स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि यही “सत्ता का साया” नगर पालिका के भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कवच बन चुका है। पहले भी रतनपुर की कार्यप्रणाली पर शिकायतें हुईं — भुगतान रोकना, जेम्स पोर्टल में हेराफेरी, प्लेसमेंट कर्मचारियों की गलत नियुक्तियाँ, और फाइलों में फेरबदल जैसी शिकायतें। पर उनमें से किसी पर भी कार्रवाई नहीं हुई। परिणाम यह हुआ कि अब नगर पालिका में “डिजिटल कमीशन” का खुला दौर चल रहा है — फाइलों पर फैसला अब नोटों के बारकोड से तय हो रहा है।
और अब जब जांच का आदेश हुआ, तब वही अधिकारी उस जांच की कमान संभाले हैं जिनपर पहले भी चुप्पी के आरोप लगे। यही कारण है कि जनता अब पूछ रही है —
“क्या मंत्री के विभाग का अधिकारी मंत्री के आदमी पर कार्रवाई कर सकता है?”
यह तस्वीर दरअसल एक प्रतीक बन गई है — बाहर से संयमित, भीतर से आत्मसमर्पित।
सवाल उठता है कि जब जांच अधिकारी और आरोपी नेता सार्वजनिक मंच पर इस तरह दिखें, तो निष्पक्षता पर भरोसा कैसे जगेगा?
पूर्व शिकायतकर्ताओं का कहना है कि अगर एक भी पुरानी शिकायत पर कार्रवाई होती, तो शायद रतनपुर की यह स्थिति न बनती। पर हर बार फाइलों ने मौन साध लिया और भ्रष्टाचारियों के हौसले आसमान छूने लगे। यही वजह है कि आज एक तस्वीर पूरे तंत्र की नैतिकता पर सवाल बनकर खड़ी है।
प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा भी है कि यह मामला अब संवेदनशील दायरे में जा चुका है, जहाँ हर शब्द, हर फोटो, और हर आदेश राजनीतिक वजन से तौला जा रहा है। यही वजह है कि जनता अब केवल कार्रवाई नहीं — न्याय की विश्वसनीयता की माँग कर रही है।
कानूनी जानकारों का कहना है कि ऐसे मामलों में जहां विभागीय अधिकारी पर पहले भी निष्क्रियता के आरोप रहे हों, वहाँ बाहरी, स्वतंत्र जांच समिति ही न्याय का भरोसा लौटा सकती है। पर ऐसा होगा या नहीं, यह आने वाले दिनों में प्रशासन की पारदर्शिता तय करेगी।
फिलहाल, रतनपुर की जनता एक सवाल बार-बार दोहरा रही है —जब अधिकारी का सिर सत्ता के आगे झुका दिखे, तो न्याय सिर उठाकर कैसे चले?”