ननकीराम कंवर के अल्टीमेटम से गरमायी छत्तीसगढ़ की राजनीति, CM विष्णुदेव साय ने कही यह बात
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने राजधानी रायपुर में मीडिया से चर्चा के दौरान कहा कि ननकीराम कंवर ने मांग रखी है तो उस पर जांच कराई जाएगी। जांच के बाद ही किसी प्रकार का निर्णय लिया जाएगा। यानी सरकार ने संकेत दिए हैं कि आरोपों को गंभीरता से लिया जा रहा है, लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले तथ्यों की पुष्टि जरूरी है।

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजनीति इन दिनों एक बार फिर गरमा गई है। प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को हटाने के लिए सरकार को तीन दिन का अल्टीमेटम दे दिया है। कंवर ने चेतावनी दी है कि यदि तय समय में कार्रवाई नहीं हुई तो वे अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठेंगे।
उनके इस बयान से सत्तारूढ़ दल के भीतर हलचल तेज हो गई है और विपक्ष को भी सरकार पर सवाल उठाने का मौका मिल गया है।
मामले पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने राजधानी रायपुर में मीडिया से चर्चा के दौरान कहा कि ननकीराम कंवर ने मांग रखी है तो उस पर जांच कराई जाएगी। जांच के बाद ही किसी प्रकार का निर्णय लिया जाएगा। यानी सरकार ने संकेत दिए हैं कि आरोपों को गंभीरता से लिया जा रहा है, लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले तथ्यों की पुष्टि जरूरी है।
दरअसल, ननकीराम कंवर ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को ‘हिटलर प्रशासक’ बताते हुए संवैधानिक अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि कलेक्टर ने अपनी चिकित्सक पत्नी को जिला खनिज न्यास मद से मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पदस्थ करवा दिया और बगैर काम किए वेतन दिलवा रहे हैं।
हालांकि मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है। अधीक्षक द्वारा जारी दस्तावेजों में साफ किया गया है कि डॉ. रूपल ठाकुर की नियुक्ति 15 जून 2024 को सीनियर रेजिडेंट के तौर पर हुई थी और तब से वे निरंतर कार्यरत हैं।
उनके रिकॉर्ड के मुताबिक अब तक 623 ऑपरेशन किए जा चुके हैं, हर महीने औसतन 200 मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण हुआ है और 72 दिन इमरजेंसी ड्यूटी भी निभाई गई है। इन तथ्यों के बाद ननकीराम कंवर के आरोप कमजोर पड़ते दिख रहे हैं।
गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब ननकीराम कंवर ने किसी प्रशासनिक अधिकारी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हों। सत्ता में रहते हुए भी वे कई बार कलेक्टरों और अधिकारियों की नीतियों पर आपत्ति जता चुके हैं। इस बार भी उनका रुख सख्त है, लेकिन मेडिकल कॉलेज के तथ्यों ने उन्हें असहज स्थिति में ला दिया है।