“बिजली गई तो बुझ गए दावे – तखतपुर स्वास्थ्य केंद्र में टॉर्च से कराई गई डिलवरी”

तखतपुर (टेकचंद कारड़ा)..तखतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही ने एक बार फिर सरकारी अस्पतालों की बदहाली को उजागर कर दिया है। बीती रात बेलसरी निवासी महिला ज्योति को प्रसव पीड़ा होने पर जब अस्पताल लाया गया तो परिजनों को उम्मीद थी कि यहां सुरक्षित संस्थागत प्रसव होगा। लेकिन अस्पताल की व्यवस्था ने सबको हैरान कर दिया।
अंधेरे में अफरा-तफरी, टॉर्च बनी सहारा
जैसे ही महिला को डिलीवरी के लिए ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया, अचानक पूरे अस्पताल की बिजली गुल हो गई। नर्सें अफरा-तफरी में इधर-उधर भागती रहीं। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि टांके लगाने तक का काम अधर में अटक गया। महिला का रक्तस्त्राव लगातार बढ़ रहा था और बिजली का कोई इंतजाम नहीं हो पाया। अंततः नर्स ने बाहर खड़े व्यक्ति से मोबाइल फोन मांगा और मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में प्रसव पूरा कर जच्चा-बच्चा की जान बचाई।
मरीज भी रहे बेहाल
सिर्फ प्रसूता ही नहीं, बल्कि अस्पताल में भर्ती अन्य मरीज और उनके परिजन भी अंधेरे और उमस भरी गर्मी में परेशान होते रहे। परिजन मरीजों को गमछे से हवा करते दिखे। हालात ऐसे थे मानो अस्पताल नहीं, बल्कि किसी पुरानी ढाणी में लोग इलाज कराने मजबूर हों।
सरकारी दावों की पोल खुली
सरकार एक ओर संस्थागत डिलीवरी को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर तखतपुर जैसे स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली और मूलभूत सुविधाओं तक का अभाव है। यह घटना बताती है कि स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार पड़ चुके हैं।
अधिकारियों की सफाई
बीएमओं उमेश कुमार साहू ने सफाई देते हुए कहा कि दिनभर बिजली बंद रहने और इन्वर्टर की बैकअप क्षमता खत्म होने के कारण आपात स्थिति में टॉर्च का सहारा लेना पड़ा। वहीं जेई रचित दुआ का कहना है कि अस्पताल में थ्री-फेस कनेक्शन है, केवल एक फेस की दिक्कत थी, जिसे आधे घंटे में दुरुस्त कर दिया गया। उनका दावा है कि “सुबह से बिजली बंद थी” यह कहना गलत है।
सवाल बरकरार
अस्पताल प्रशासन चाहे जितनी सफाई दे, लेकिन सवाल यह है कि क्या जीवनरक्षक सेवाओं पर टॉर्च की रोशनी भरोसे छोड़ी जा सकती है? यदि समय पर नर्स ने सूझबूझ न दिखाई होती, तो जच्चा-बच्चा की जान पर बन आती।