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CG NEWS:बस्तर में समर कैंप का हलवा बना खिचड़ी, यहां के शिक्षक संगठनों ने विरोध के बहाने एक नए मुद्दे का बीज लगा दिया..। पढ़िए- पूरी खबर

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CG NEWS:जगदलपुर (मनीष जायसवाल )स्कूल शिक्षा विभाग की योजनाएं अक्सर कागजी घोड़े दौड़ाने और उधार की रेसिपी से हलवा बनाने की कोशिश में जमीनी हकीकत से कोसों दूर रहती हैं। स्थानीय प्रशासन भी ऐसी बहुत सी योजनाओं में अपना दखल देने लिए
अपने स्वाद का तड़का लगाने से भी नहीं चूकता है। ऐसा ही एक ताजा उदाहरण बस्तर में देखने को मिल रहा है, जहां 1 मई से 15 जून तक प्रस्तावित समर कैंप के स्वैच्छिक आदेश को जिला प्रशासन ने अनिवार्य कर दिया। नतीजा, यह योजना कागजों में हलवा बनने की बजाय खिचड़ी में तब्दील होकर स्कूल शिक्षा विभाग की नीतियों से भटकती हुई दिखाई दे रही है।जो भविष्य में करीब दो लाख से अधिक शिक्षकों और उनके परिजनों के लिए वर्तमान सरकार की नीतियों के चलते एक मुद्दा बन कर उभर सकती है।
हलवे के खिचड़ी बनने का किस्सा कुछ यूं है कि हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग ने 25 अप्रैल के अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा था कि समर कैंप स्वैच्छिक होगा और इसे पालक-शिक्षक समिति की सहमति से आयोजित किया जाएगा। साथ ही, 25 अप्रैल से 15 जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश का उल्लेख करते हुए बच्चों को रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखने की सलाह दी गई थी। लेकिन बस्तर जिला प्रशासन ने शासन के इस पत्र को दरकिनार करते हुए समर कैंप को अनिवार्य कर दिया और प्रतिदिन फोटोग्राफ भेजने का निर्देश जारी कर दिया है।
जबकि,इसी बीच में प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जिनके पास अभी स्कूल शिक्षा विभाग का प्रभार है उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर बच्चों से छुट्टियों का आनंद लेने और घर पर गर्मी में रहकर खूब पानी पीने की अपील की थी। ताकि बच्चे गर्मी में डिहाइड्रेशन की समस्या से ग्रसित न हो पाए।
लेकिन, बस्तर सहित प्रदेश के कुछ जिलों में व्यवस्था की जिम्मेदार लोग अपनी अलग ही कलम घसीटते हुए दिखाई दे रहे हैं।
हलवे को मनमानी खिचड़ी बनता देख, अब जिला प्रशासन के आदेश के खिलाफ, बस्तर के सभी शैक्षिक संगठनों ने जिला शिक्षा अधिकारी बलीराम बघेल से भेंट कर तीखा विरोध दर्ज कराया है । संगठनों के समूह ने अपने ज्ञापन में ग्रीष्मकालीन अवकाश को बंद न करने और समर कैंप की अनिवार्यता को तत्काल वापस लेने की मांग अपने विभाग के प्रमुख से कर दी है..! इसके अलावा बस्तर से ही बड़ी मांग के रूप में सर्व शैक्षिक संगठन के पदाधिकारियों ने अपने ज्ञापन में ही शिक्षकों को 30 दिन की अर्जित अवकाश (EL) और प्रत्येक शनिवार को अवकाश देने की एक नई मांग रख दी है।
अब नया मुद्दा है.., और मांग बस्तर से निकली है..। तो दूर तलक जाएगी ..! क्योंकि बस्तर को क्रांतिकारियों की भूमि कहा जाता है। यहां का आदिवासी समाज और यहां की मिट्टी के लोग अपने वाजिब हक के लिए इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं..! यह बात आम है कि बस्तर का कर्मचारी अपने हक के लिए हर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता रहा है हर कठिन परिस्थिति में सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहा ऐसे में शिक्षकों को 30 दिन की अर्जित अवकाश और राज्य के अन्य कर्मचारियों जैसे हर शनिवार को अवकाश देने की एक नई मांग का बीज सियासत की भूमि पर लगा दिया गया है..।
शिक्षक बताते है कि बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था पहले ही कई चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में, शासन के निर्देशों को ताक पर रखकर अनावश्यक आदेश थोपना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि शिक्षकों और बच्चों के मनोबल को भी प्रभावित करता हुआ दिखाई भी दे रहा है..। क्योंकि गर्मी की छुट्टियों का महत्व खत्म किया जा रहा है अब बस्तर के सभी शिक्षक संगठनों ने सवाल उठाया कि जब शासन का आदेश स्वैच्छिक आयोजन का है, तो जिला प्रशासन की ओर से इसे अनिवार्य करने का फैसला किस आधार पर लिया गया ? यह कदम न केवल शासन के निर्देशों का उल्लंघन है, बल्कि शिक्षकों और बच्चों के अवकाश के अधिकार पर भी कुठाराघात है।
चलते चलते यह भी जान ले कि जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपने में बस्तर के सभी शिक्षक संगठनों की ओर से प्रमुख रूप से अगुवाई करते हुए शिक्षक गजेंद्र श्रीवास्तव, सतपाल शर्मा, देवदास कश्यप, प्रवीण श्रीवास्तव, अखिलेश त्रिपाठी, अजय श्रीवास्तव, देवराज खूंटे, जे.आर. कोसरिया, रज्जी वर्गिस, भूपेश पानीग्राही, अनिल गुप्ता, प्रमोद पांडे, गणेश्वर नायक सहित बड़ी संख्या में शिक्षक इस ज्ञापन कार्यक्रम में शामिल हुए।