CG NEWS: शिक्षकों की छुट्टियों पर कैंची… ? समर कैंप और सुशासन तिहार के नाम पर वार्षिक कैलेंडर की अनदेखी कर रहे जिले के अधिकारी

CG NEWS:रायपुर (मनीष जायसवाल ) । छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग ने गर्मी की छुट्टियों में शिक्षकों को करारा झटका देते हुए समर कैंप और सुशासन तिहार के नाम पर जिला स्तर के अधिकारियों ने शिक्षकों की छुट्टियों में कटौती का फरमान जारी कर दिया है। यह फैसला न केवल शिक्षकों के विश्राम और पारिवारिक समय को छीन रहा है, बल्कि भविष्य में राज्य सरकार पर अरबों रुपये की वित्तीय देनदारी का बोझ भी लाद सकता है। शिक्षक संगठनों ने इसे “शिक्षकों के अधिकारों पर खुला हमला” करार देते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है..!
जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर के आदेश के मुताबिक, 1 मई से 15 जून तक सभी स्कूलों में समर कैंप अनिवार्य होगा, जिसमें शिक्षकों की उपस्थिति जरूरी है..! यह फैसला अभी तो रायपुर के शिक्षकों की गर्मी की छुट्टियों को पूरी तरह निगल रहा है..! अब यह गरियाबंद जिले में कापी पेस्ट होने के बाद आगे सभी जिलों में लागू होने के लिए चल निकला है। व्यवस्था के जिम्मेदार लोग जो शिक्षकों के लिए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों को मजबूत करने के एकमात्र इस समय में फिर एक बार
कलम का हंटर चला चुके है।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि यह आदेश वार्षिक अवकाश कैलेंडर का उल्लंघन है और बिना शिक्षकों की सहमति, संसाधनों या प्रशिक्षण के थोपा जा रहा है। एक शिक्षक ने कही सोशल मीडिया में पोस्ट किया है कि विभाग हमें मशीन समझ रहा है। हमें शनिवार की छुट्टी भी नहीं मिलती “साल भर मेहनत के बाद ये छुट्टियां हमारा हक हैं।
चर्चा में यह बात उभर कर आती है कि ऐसे फैसले न केवल शिक्षकों के लिए अन्यायपूर्ण है, बल्कि राज्य के वित्त विभाग के लिए भी सिरदर्द बन सकता है..! नियमों के अनुसार, छुट्टियों में ड्यूटी करने पर शिक्षकों को 1:3 के अनुपात में अर्जित अवकाश मिलता है। 45 दिन के समर कैंप के लिए प्रत्येक शिक्षक को 15 दिन का अतिरिक्त अवकाश मिलेगा। सुशासन तिहार या समर कैंप सभी शिक्षकों के लिए अनिवार्य हुआ तो प्रदेश के 2 लाख से अधिक शिक्षकों के लिए यह देनदारी अरबों रुपये तक पहुंच सकती है..!
उदाहरण के लिए, यदि एक शिक्षक का दैनिक वेतन 1000 रुपये है, तो 15 दिन का अर्जित अवकाश 15,000 रुपये का होगा। रायपुर के 5000 शिक्षकों के लिए यह राशि 7.5 करोड़ रुपये होगी, और पूरे प्रदेश में यह राशि कई गुना बढ़ सकती है। रिटायरमेंट पर इस अवकाश का नकद भुगतान सरकार को करना होगा, जो भविष्य में वित्तीय संकट को जन्म दे सकता है।
ऐसे ही 30 अप्रैल से 31 मई तक किसी भी तरह की छुट्टी अधिकारियों और कर्मचारियों को नहीं दी जायेगी। विशेष परिस्थिति में अवकाश सिर्फ कलेक्टर के आदेश पर ही मिल पायेगा। यह आदेश सूरजपुर जिला शिक्षा अधिकारी ने दिया है।जिसमें “सुशासन तिहार” के दौरान सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी गई है..। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि शिक्षक इसमें शामिल हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसे शिक्षकों पर भी लागू माना जा रहा है। यदि यहां समर कैंप न हुए, तो भी एक महीने की ड्यूटी के लिए 10 दिन का अतिरिक्त अर्जित अवकाश मिलेगा, जो वित्तीय देनदारी को और बढ़ाएगा।
शिक्षकों का कहना है कि अधिकांश व्यवस्था में जिम्मेदार लोग शिक्षक या संस्था प्रमुख की भूमिका निभा चुके है। उन्हें पता है कि परीक्षा के बाद भीषण गर्मी में छात्रों की उपस्थिति पहले ही कम रहती है..। ऊपर से ग्रामीण क्षेत्र में यह मौसम शादी बारात में लिए भी जाना जाता है। कई स्कूलों में पंखे, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं गर्मी में कम हो जाती है। हैंड पंप का जल स्तर कम हो जाता है।ऐसे में 45 दिन तक समर कैंप में नियमित भागीदारी सुनिश्चित करना असंभव है..।
चर्चा में या बात निकली है कि व्यवस्था में मौजूद जिम्मेदार लोगों के श्रेय लेने की होड ने पिछली बार के समर कैंप में कई तरह के नवाचार करवाए जो स्कूलों में साल भर होते ही रहते हैं…। यह प्रयोग कागजी खानापूर्ति था..।अधिकारियों ने अपने प्रयोग के लिए सरकार पर वित्तीय भार अलग बढ़ा दिया।
लेकिन विभाग का दावा है कि समर कैंप का मकसद बच्चों को योग, कला, खेल और जीवन कौशल सिखाना है, लेकिन शिक्षकों का तर्क है कि बिना प्रशिक्षण और आर्थिक संसाधनों के यह लक्ष्य हास्यास्पद है। स्कूलों में तो वैसे भी नए सत्र में कई तरह के खर्चे लगे हुए है..! व्यवस्था के जिम्मेदार लोग भूल रहे है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव, इस साल पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव, और पहली बार आयोजित पांचवीं-आठवीं की बोर्ड परीक्षाओं ने शिक्षकों को मानसिक और शारीरिक रूप से थका दिया है..।
शिक्षक नेता वीरेंद्र दुबे का कहना है कि “यह आदेश शिक्षकों के साथ क्रूर मजाक है। न हमारी राय ली गई, न संसाधन बताए गए है।
ना ही बताया गया है कि किसके निर्देश पर यह आयोजन हो रहा है।यह अमानवीय फैसला वापस लिया जाना चाहिए नहीं तो आंदोलन को मजबूर होना पड़ेगा।
शिक्षक नेता मनीष मिश्रा ने चेताया, “गर्मी की छुट्टियां शिक्षकों के लिए परिवार के साथ समय बिताने और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करने का मौका होती हैं। यह फैसला हमें तोड़ देगा।”
चर्चाओं में कुछ शिक्षकों ने बताया कि अपने इस अधिकार के लिए हम न्यायालय का रुख भी कर सकते है।इसके लिए न्यायालय संघर्ष समिति तैयार है।
इस फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं..! जिसके जवाब शायद व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों के पास नहीं होगे…। अब सवाल उठते है कि क्या समर कैंप के लिए पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण उपलब्ध हैं …! क्या भीषण गर्मी में छात्रों की उपस्थिति सुनिश्चित हो पाएगी..! क्या छात्रों को भी गर्मी की छुट्टियां मनाने का हक नहीं है ..! क्या सरकार भविष्य में अर्जित अवकाश की भारी देनदारी झेल पाएगी ..! क्या शिक्षकों की मानसिक और शारीरिक सेहत की अनदेखी का शिक्षा की गुणवत्ता पर क्या असर होगा..!
अधिकारियों को तो खैर सियासत की चौसर से कोई मतलब नहीं लेकिन सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले सत्ता के रणनीतिकार यह नहीं भूलते है, कि शिक्षकों की संख्या करीब 2 लाख है, और उनके परिवारों को मिलाकर यह एक बड़ा वोट बैंक है। इस फैसले से सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ सकती है, अभी भले चुनाव नहीं है लेकिन राजनीतिक रूप से नुकसानदायक हो सकता है।
शिक्षक संगठन समर कैंप को स्वैच्छिक करने और गर्मियों की छुट्टी के बाद छात्रों की पूरक परिक्षा को न्यायोचित बताते है।
शिक्षक नेता रंजीत बनर्जी का कहना है कि, या तो समर कैंप स्वैच्छिक हो, या सरकार हमें साल में 30 दिन का अर्जित अवकाश और शनिवार की छुट्टी दे, जैसा अन्य कर्मचारियों को मिलता है।
यह आदेश इसलिए भी विवादास्पद माना जाना चाहिए क्योंकि इसे जिला स्तर पर बिना राज्य के वित्त विभाग की अनुमति के लागू किया गया है। वित्त मंत्री भविष्य में देनदारी कम करने की नीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन यह फैसला उनकी रणनीति और पकड़ पर सवाल उठाता है।
समर कैंप और सुशासन तिहार के नाम पर शिक्षकों की छुट्टियों में कटौती का फैसला भले ही बच्चों के हित में लिया गया हो, लेकिन इसे लागू करने का तरीका शिक्षकों के अधिकारों की अनदेखी करता है। बिना सहमति, संसाधनों और मौसम को ध्यान में रखे यह प्रयोग न केवल शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य को चोट पहुंचाएगा, बल्कि भविष्य में सरकार के लिए वित्तीय संकट का सबब बनेगा..। शिक्षक उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी, ताकि शिक्षकों और शिक्षा व्यवस्था दोनों का हित सुरक्षित रहे।अब समय बताएगा कि क्या यह आदेश शिक्षा के लिए नवाचारी होगा या फिर गतिहीन साबित होगा।