Chhattisgarh

CG NEWS:शिक्षक मिले जनप्रतिनिधियों से और जेडी साहब जल्दबाजी में मुख्यमंत्री के निर्देश भूल गए ?

CG NEWS:बस्तर ।शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 30 जनवरी को हुई समीक्षा बैठक में मिडिल स्कूलों के लिए विषय बाध्यता लागू करने का स्पष्ट निर्णय लिया गया था। यह निर्णय शिक्षा के अधिकार कानून और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप था, जिसका उद्देश्य गरीब, आदिवासी, और पिछड़े वर्ग के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था देना है। लेकिन ढाई महीने बीत जाने के बाद भी राजपत्र में संशोधन न होने से यह नियम लागू नहीं हो सका है। इस देरी के बीच बस्तर में गैर-विषयवार पदोन्नति की प्रक्रिया तेजी से चल रही है, जिसने शिक्षा विभाग की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ विषय बाध्यता मंच ने इस दोहरे मापदंड का कड़ा विरोध किया है।

मंच का कहना है कि एक ओर निजी स्कूल, आत्मानंद, पीएम श्री, नवोदय, और एकलव्य विद्यालयों में मिडिल स्तर पर विषय विशेषज्ञ शिक्षकों से पढ़ाई हो रही है, वहीं सरकारी स्कूलों में, जहां ज्यादातर गरीब और आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं, कला के शिक्षक गणित, हिंदी के शिक्षक विज्ञान, और विज्ञान के शिक्षक संस्कृत पढ़ाने को मजबूर हैं। कुछ मामलों में तो हिंदी के शिक्षक बोर्ड परीक्षाओं में सभी विषयों की कॉपियां जांच रहे हैं। इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि बच्चों का शैक्षणिक आधार भी कमजोर पड़ रहा है, जो उन्हें प्रतियोगी दौर में पिछड़ने के लिए मजबूर कर सकता है।

बस्तर संभागीय संयुक्त संचालक कार्यालय में गैर-विषयवार अंतिम वरिष्ठता सूची को सुधारने और सहायक शिक्षकों से यूडीटी (उच्चतर माध्यमिक शिक्षक) पदोन्नति की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है। यह तब हो रहा है, जब राजपत्र संशोधन का निर्णय मुख्यमंत्री की बैठक में पहले ही लिया जा चुका है। मंच का सवाल है कि जब विषय विशेषज्ञ स्नातक सहायक शिक्षकों की बस्तर में कोई कमी नहीं है, और युक्तियुक्तकरण भी विषय और दर्ज संख्या के आधार पर होना है, तो गैर-विषयवार पदोन्नति की इतनी जल्दबाजी क्यों? क्या यह जल्दबाजी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है?

शिक्षक संगठन, पालक, और सामाजिक-शैक्षिक समूह राजपत्र में तत्काल संशोधन की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि विषय बाध्यता हमेशा से शिक्षा गुणवत्ता के लिए जरूरी रही है, खासकर बस्तर जैसे सुदूर और पिछड़े क्षेत्र में। यह नियम न केवल विषय में गहन ज्ञान सुनिश्चित करता है, बल्कि बच्चों को बेहतर समझ और पढ़ाने के तरीके भी प्रदान करता है। मंच ने चेतावनी दी है कि यदि गैर-विषयवार पदोन्नति को नहीं रोका गया, तो यह गरीब और आदिवासी बच्चों के शैक्षणिक भविष्य को नुकसान पहुंचाएगा।

छत्तीसगढ़ विषय बाध्यता मंच ने तंज कसते हुए कहा, साहब को इतनी जल्दबाजी क्या है? क्या मुख्यमंत्री के निर्देश भूल गए? थोड़ा और इंतजार करें, राजपत्र संशोधन हो जाए, तो बस्तर के सरकारी स्कूलों में विषय विशेषज्ञ शिक्षक मिलेंगे। यह जल्दबाजी बच्चों के लिए अहितकारी साबित होगी।” मंच ने उच्च कार्यालय से गैर-विषयवार पदोन्नति रोकने के लिए तत्काल निर्देश जारी करने की मांग की है, ताकि नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले विषय बाध्यता लागू हो सके।

मालूम हो कि कुछ जागरूक शिक्षकों ने समूह बनकर छत्तीसगढ़ विषय बाध्यता मंच का निर्माण कर शिक्षा व्यवस्था में विषय बाध्यता फिर से लागू करने की वकालत करके अपनी बात जनप्रतिनिधियों सहित व्यवस्था की जिम्मेदार लोगों के पास चरण रखते आ रहे हैं।

बताते चले कि बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में शिक्षा गुणवत्ता के लिए विषय बाध्यता लागू करना न केवल जरूरी है, बल्कि यह बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। सरकार और शिक्षा विभाग को इस देरी को गंभीरता से लेते हुए राजपत्र संशोधन को प्राथमिकता देनी चाहिए। आखिर, सवाल सिर्फ नियमों का नहीं, बल्कि उन लाखों बच्चों के भविष्य का है, जो बेहतर शिक्षा के हकदार हैं

Back to top button