CG NEWS:शिक्षा मंत्री नहीं होने का साइड इफेक्ट…? गणित का शिक्षक हिंदी और विज्ञान का शिक्षक संस्कृत पढ़ा रहा, बस्तर /सरगुजा संभाग में सबसे अधिक असर

CG NEWS:रायपुर (मनीष जायसवाल) । स्कूलों के सेटअप में विषय बाध्यता लागू करने का मसौदा काफी लंबा खींचा गया है।इसे लागू करने को लेकर लामबंद हुए शिक्षक छत्तीसगढ विषय बाध्यता मंच का निर्माण कर अपनी बात शासन पर समय-समय पर रखते आए हैं .
लेकिन सरकार का इस विषय पर निर्णय मंत्रिमंडल के विस्तार जैसा अटका हुआ है।अब विभाग में पूर्ण कालिक मंत्री की कमी शिक्षक भी महसूस कर रहे है। शिक्षा व्यवस्था में जिम्मेदार लोग यह तो समझ गए है कि शिक्षक कोई भी विषय पढ़ा सकता है। लेकिन इस बात को समझने का जमीनी प्रयास नहीं किया कि विषय का ज्ञान विषय विशेषज्ञ शिक्षक के पास अधिक रहता है।
विषय बाध्यता मंच के शिक्षकों ने इस विषय पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि 30 जनवरी 2025 की मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली स्कूल शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक मे शिक्षा गुणवत्ता को बर्बादी से बचाने सरकारी मिडिल स्कूलों मे विषय बंधन को लागू करने और 11 जुलाई 2023 के राजपत्र विलोपन का निर्णय सीएम की ओर से लिया गया है .
लेकिन महीनों गुजर जाने के बाद भी इसका राजपत्र में प्रकाशन नहीं हुआ। अब यह विषय बंधन लागू न हो पाना सरकारी स्कूल पर निर्भर पालकों ,समाजिक संगठनों शिक्षक ,और विद्यार्थियों मे नाराजगी उत्पन्न कर रहा है।
मंच के सदस्य बताते हैं कि 2023 के पूर्व तक मिडिल स्कूलों मे विषयवार ही पदोन्नति होती आई है एक बार शिक्षक भर्ती गैर विषयवार होने के बाद से गणित वाले संस्कृत और कला वाले गणित ,विज्ञान पढा रहे । मिडिल स्कूलों के शिक्षा व्यवस्था का सिस्टम पूरी तरह लड़खड़ा गया है।
हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल के शिक्षक इस बात को अच्छी तरह महसूस करते हैं कि छात्रों की नींव कहीं ना कहीं कमजोर बुनियाद में खड़ी की गई है।
विषय बाध्यता मंच के सदस्यों ने बताया कि प्रदेश मे शिक्षा गुणवत्ता के लिए अनेक योजनाएं और नवाचारी कार्य हो रहे है, लेकिन विषय बंधन समाप्ति वाले काले नियम को आखिर बदलने इतनी देरी क्यों हो रही यह समझ से परे है ..। कहीं विभागीय मंत्री की कमी ठोस कारण तो नही है।
ध्यान रहे कि पूर्व शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी विषय बंधन लागू करने की घोषणा की थी लेकिन उनके मंत्रिमंडल से हटने के बाद आज तलक यह निर्णय नही हो पाया है ये भी शिक्षा व्यवस्था में चिंता का विषय है..।
पूर्व मे सर्व आदिवासी समाज ,पैरेंट्स एसोसिएशन और छग विषय बाध्यता मंच ने सरकार से मांग रखी ,बार बार इसके लिए ज्ञापन देखकर ध्यान आकर्षित कराया लेकिन छात्र हित से जुड़ा हुआ यह नियम अभी तक बदला नहीं गया है।
बताते चले कि यह विवादास्पद नियम पूर्व सरकार के कार्यकाल के दौरान शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को सरल बनाने के दौरान आया। इस नियम के चलते भर्ती और पदोन्नति में मिडिल स्कूलों की विषय बाध्यता समाप्त कर दी गई। इस नियम के हिसाब से गणित
विषय का विशेषज्ञ शिक्षक हिंदी, सामाजिक विज्ञान पढ़ाने के लिए योग्य माना गया।
वही हिंदी और वाणिज्य का विशेषज्ञ शिक्षक गणित और विज्ञान पढ़ाने के योग्य समझा गया। इस नियम के चलते मिडिल स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था बहुत अधिक प्रभावित हुई। कई स्कूलों में तो एक ही विषय के विशेषज्ञ अधिकांश शिक्षक है।
इस विषय बंधन समाप्ति से बस्तर सरगुजा संभाग की शिक्षा व्यवस्था में सबसे ज्यादा फर्क देखने को मिल रहा है। क्योंकि पूर्व मे इन दोनों संभाग के लिए विशेष शिक्षक भर्ती का आयोजन किया गया था।
यह बात भी गौर करने वाली है कि प्रदेश के प्राईवेट स्कूल ,आत्मानंद एकलव्य , नवोदय मे विषय बंधन लागू है इन बच्चों को बेहतर शिक्षा गुणवत्ता मिल रही है। बाकी के सरकारी स्कूलों के लिए यह मापदंड किस नियत से लाया गया जो अभी भी चल रहा है यह मंथन के साथ चर्चा का विषय है।