CG NEWS:कांग्रेस के पुराने “शो-मैन” विजय का नया शो…. “सिनेमा पॉलिटिक्स” के बहाने उत्तर छत्तीसगढ़ के इलाके में नया सियासी दांव

CG NEWS:“अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में नब्बे के दशक की बात होगी…। तिलकनगर बिलासपुर के कांग्रेस भवन के बाजू मैदान में पार्टी का सम्मेलन हो रहा था…। मंच पर भाषण शुरू हो गया था …। तभी अचानक पीछे से छात्र और नौजवानों की नारेबाज़ी का स्वर सुनाई देने लगा..। सभी चौंककर उस ओर देखने लगे। मंच से बार – बार अपील के बाद भी नारेबाजी गूंजती रही। इसी बीच तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मंच पर खड़े हुए और माइक लेकर बोले – विजय अपने साथियों से बोलो नारेबाजी बंद करें…। भीड़ के बीच से उठकर विजय केशरवानी ने हाथ से इशारा किया …. और पूरा पंडाल शांत हो गया।” यह सीन याद दिलाता है कि दिग्गजों की भीड़ के बीच अपनी धमक का अहसास कराने का विजय केशरवानी का अंदाज कई दशक पुराना है और जब भी मौका मिलता है . यह “शो-मेन” अपनी पॉलिटिक्स में पीछे नहीं रहता। राहुल गांधी के जन्मदिन पर फीचर फिल्म “फुले” की स्क्रीनिंग के बहाने विजय ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ के इस इलाके में नया सियासी दांव मार दिया।
बिलासपुर में कांग्रेस की ओर से फीचर फिल्म “फुले” की मुफ्त स्क्रीनिंग के आयोजन को सिर्फ एक सांस्कृतिक पहल के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह एक सुनियोजित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी माना जा सकता है, जिसके जरिए कई स्तरों पर सामाजिक और राजनीतिक संदेश देने की कोशिश हो रही है। यह आयोजन राहुल गांधी के जन्मदिन पर किया गया, जो खुद “न्याय यात्रा”, “भारत जोड़ो यात्रा”, और “जातीय जनगणना” जैसे मुद्दों के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति के पक्ष में खड़े हुए हैं। कांग्रेस का यह कदम “सिनेमा पॉलिटिक्स” का एक उभरता हुआ रूप है, जो भारत में हाल के वर्षों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है — जहाँ सिनेमा को सामाजिक मुद्दों पर विमर्श और राजनीतिक संवाद का साधन बनाया जा रहा है।
“फुले” फिल्म, जो महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन संघर्ष और विचारों पर आधारित है, सामाजिक न्याय, स्त्री शिक्षा, दलित-बहुजन उत्थान जैसे मुद्दों को उजागर करती है।
कांग्रेस द्वारा इस फिल्म की स्क्रीनिंग यह दिखाने का प्रयास है कि पार्टी सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के साथ खड़ी है और उनके ऐतिहासिक नायकों को सम्मान देती है। कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ समेत देशभर में जातीय जनगणना, आरक्षण और दलित-बहुजन मुद्दों को लेकर खुद को एक समावेशी और न्यायप्रिय पार्टी के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रही है। इस तरह का आयोजन उसी नैरेटिव को जमीन पर उतारने की कोशिश है। उत्तर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, बलौदाबाजार और मुंगेली जैसे जिलों में अनुसूचित जाति वर्ग के साथ ओबीसी तबके की अच्छी-खासी जनसंख्या है।यह आयोजन इन समुदायों को भावनात्मक रूप से जोड़ने और उनका समर्थन हासिल करने का प्रयास है। खासकर बीजेपी के प्रभाव वाले क्षेत्रों में वैकल्पिक सामाजिक चेतना और समर्थन आधार तैयार करने का प्रयास दिखता है।
राहुल गांधी की राजनीति अब पूरी तरह से सामाजिक न्याय, समानता और संविधानिक मूल्यों की ओर केंद्रित है। “फुले” फिल्म की स्क्रीनिंग उनके विचारों को जनसामान्य तक पहुँचाने का एक सॉफ्ट पावर टूल की मानिंद नज़र आया। जिला कांग्रेस मेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी ने इस आयोजन के लिए राहुल गांधी के जन्मदिन को चुना और पार्टी में नीचे से ऊपर तक मैसेज देने की कोशिश की है। यह आयोजन कांग्रेस पार्टी की एक नई राजनीतिक दिशा की ओर संकेत करता है, जिसमें सामाजिक न्याय को सिनेमा जैसे माध्यम के जरिए जनचेतना से जोड़ा जा रहा है। इसे सिर्फ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम मानना गलत होगा। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक हस्तक्षेप के ज़रिए राजनीतिक धारणा निर्माण का प्रयास है, जिसे ‘सिनेमा पॉलिटिक्स’ या ‘मूवी पॉलिटिक्स’ के रूप में देखा जा सकता है। पिछले कुछ समय में ऐसी कई फिल्में चर्चा में रहीं हैं, जिनके ज़रिए बीजेपी का नैरेटिव मजबूत होता रहा है। लेकिन विजय केशरवानी के शो ने कांग्रेस के लिए भी सियासत में इस नुस्खे की आजमाइश के लिए रास्ते खोल दिए हैं। रैली,धरना- प्रदर्शन के साथ अब आने वाले समय में इस तरह का प्रयोग नज़र आए तो हैरत नहीं होगी ।
इस आयोजन में खास बतौर खास मेहमान नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत भी मौजूद रहे। साथ ही विधायक अटल श्रीवास्तव, देवेन्द्र यादव, दिलीप लहरिया,पूर्व विधायक शैलेष पाण्डेय, सियाराम कौशिक सहित विजय पाण्डेय, राजेन्द्र शुक्ला, रामशरण यादव, शेख नजरूद्दीन , दिनेश शर्मा जैसे कई नेताओँ नें भी “फूले” मूवी देखी। इस मौके पर छात्र और नौजवान भी बड़ी तादात में मौज़ूद थे। हालांकि चार अलग- अलग हाल में फिल्म का प्रदर्शन होने के कारण बैठक व्यवस्था की मजबूरी थी या कांग्रेस की पुरानी खेमेबाजी का असर था…. सभी बड़े नेताओं को अपने समर्थकों के साथ अलग- अलग बैठना पड़ा। भले ही शो खत्म होने के बाद थियेटर की लॉबी में हमेशा की तरह आपस में दिल खोलकर मिले और केक काटकर अपने नेता राहुल गांधी का जन्मदिन मनाया ।
बहरहाल जाने- अनजाने बिलासपुर में कांग्रेस के इस शो की वजह से पार्टी को विचारधारा से जुडे जनसंवाद के लिए एक असरदार मंच मिल गया है। “फुले” फिल्म की स्क्रीनिंग में कांग्रेस की उस राजनीति का हिस्सा देखा जा सकता है, जो सामाजिक न्याय, समानता और सांस्कृतिक पहचान को केंद्र में रखती है। यह एक साधारण आयोजन न होकर राजनीतिक विमर्श को जनमानस से जोड़ने की एक परिपक्व कोशिश भी नज़र आती है। उत्तर छत्तीसगढ़ में, जहां दलित-बहुजन समाज की संख्या निर्णायक है, यह पहल चुनावी गणित के साथ-साथ सांस्कृतिक चेतना का भी हिस्सा बन सकती है। यदि कांग्रेस इस रणनीति को संगठित और निरंतर रूप से अपनाती है, तो यह छत्तीसगढ़ की राजनीति में सामाजिक न्याय की एक नई धारा का सूत्रपात कर सकती है और वैचारिक स्तर पर बीजेपी को जवाब देने के लिए एक टूल की तरह इस्तेमाल कर सकती है।