Bilaspur High Court: कोर्ट का फैसला,बरी होने के बाद भी नहीं मिलेगा पिछला वेतन, जानिए क्यों हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

Bilaspur High Court/छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि अगर कोई कर्मचारी किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है, तो बाद में अदालत से दोषमुक्त होने के बावजूद वह पिछले वेतन का हकदार नहीं होगा।
इस फैसले से स्पष्ट संकेत मिला है कि आपराधिक मामलों में अदालत के अंतिम निर्णय तक सेवाओं की बहाली और वित्तीय लाभ सुनिश्चित नहीं माने जा सकते।
Bilaspur High Court/यह मामला छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल में कार्यरत एक रिटायर्ड कर्मचारी राम प्रसाद नायक से जुड़ा है, जिन्हें रिश्वतखोरी के आरोप में एसीबी ने गिरफ्तार किया था। स्पेशल कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया था। इसके बाद उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं।
हाई कोर्ट में अपील के बाद उन्हें बरी कर दिया गया, जिसके बाद उन्हें सेवा में वापस ले लिया गया। हालांकि, उन्होंने इस अवधि के बकाया वेतन की मांग की, जिसे बिजली कंपनी ने खारिज कर दिया।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस बीडी गुरु की सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मौलिक नियम 54-बी के तहत वेतन का भुगतान किया जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता सेवा से बर्खास्त किए गए थे और यह बर्खास्तगी निलंबन पर आधारित नहीं थी, इसलिए नियम 54-बी लागू नहीं होता।
फैसले में यह भी उल्लेख किया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता 31 अगस्त 2018 को रिटायर हो चुके हैं और सेवा से बर्खास्त होने की अवधि में वे काम पर नहीं थे, इसलिए उन्हें उस अवधि का वेतन नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि दोषमुक्त होने के बाद सेवा में पुनः बहाली का अर्थ यह नहीं है कि पूर्व की अनुपस्थिति का वेतन स्वचालित रूप से दे दिया जाएगा।
यह निर्णय भविष्य के उन मामलों में भी मार्गदर्शक साबित हो सकता है, जहां कर्मचारी आपराधिक मामलों में फंसे हों और बाद में बरी हो जाएं। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि केवल दोषमुक्त होना वेतन पाने के अधिकार की गारंटी नहीं देता, जब तक कि सेवा शर्तों और नियमों के तहत स्पष्ट पात्रता साबित न हो।