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bihar assembly elections 2025 – इन 5 सीटों पर होगा ‘हाई-वोल्टेज’ मुकाबला!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कई सीटों पर कड़ी टक्कर देखी जा सकती है, जिनमें राघोपुर, महुआ, मोकामा, शिवहर और हरनौत शामिल हैं। इन सीटों पर सियासी दांवपेच, परिवारवाद और बाहुबल की जोरदार टक्कर हो सकती है, जो बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकती है।

bihar assembly elections 2025/पटना: बिहार में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है, जहां 6 और 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को नतीजे आएंगे। हालांकि अभी तक प्रमुख दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन राज्य की कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां सियासी पारा अभी से चढ़ा हुआ है। इन सीटों पर न सिर्फ कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा, बल्कि ये वो सीटें हैं जहां बाहुबल, परिवारवाद और राजनीतिक विरासत की जंग भी छिड़ेगी। आइए, जानते हैं बिहार की उन 5 खास सीटों के बारे में, जहां इस बार सियासी संग्राम बेहद दिलचस्प होने वाला है।

राघोपुर: तेजस्वी बनाम प्रशांत किशोर?bihar assembly elections 2025
वैशाली जिले की राघोपुर सीट पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं। यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव का अभेद्य गढ़ मानी जाती है, जहां से उनके पिता लालू प्रसाद यादव और मां राबड़ी देवी भी विधानसभा पहुंच चुके हैं। यादव बहुल यह सीट तेजस्वी के लिए जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है। लेकिन, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर के चुनाव लड़ने की अटकलों ने इस सीट को बिहार की सबसे हाई-प्रोफाइल सियासी जंग में बदल दिया है। अगर प्रशांत किशोर मैदान में उतरते हैं, तो मुकाबला बेहद कड़ा होगा।

महुआ: क्या तेज प्रताप की होगी ‘घर वापसी’?bihar assembly elections 2025
राघोपुर से सटी महुआ सीट भी सियासी हलचल का केंद्र बनी हुई है। 2020 में इस सीट से तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में उन्हें समस्तीपुर के हसनपुर भेज दिया गया और तेजस्वी के करीबी मुकेश रौशन ने महुआ में RJD का परचम लहराया। इस बार तेज प्रताप ने अपनी नई पार्टी बना ली है और महुआ से ‘वापसी’ का ऐलान किया है, जिससे उनके और तेजस्वी के बीच तनातनी की खबरें तेज हो गई हैं। तेज प्रताप के हालिया बयान सियासी गलियारों में खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं।

मोकामा: बाहुबली अनंत सिंह का किला बचा रहेगा?
मोकामा विधानसभा सीट बाहुबली अनंत कुमार सिंह का मजबूत गढ़ रही है। यह सीट 1990 से उनके परिवार के पास रही है, जिसमें एक छोटे अंतराल को छोड़ दें तो दबदबा कायम रहा। 2022 में अनंत सिंह की सजा के बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने इस सीट पर कब्जा जमाया था। अब पटना हाईकोर्ट से बरी होने के बाद अनंत सिंह खुद मैदान में उतर सकते हैं या अपने जुड़वां बेटों में से किसी एक को उतार सकते हैं। नीलम देवी पिछले साल NDA में शामिल हो गई थीं, और अब अनंत सिंह को JDU से टिकट मिलने की संभावना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अनंत का बड़ा समर्थक माना जाता है।

bihar assembly elections 2025/दूसरी ओर, RJD ने अनंत सिंह, जिन्हें ‘छोटे सरकार’ कहा जाता है, को कड़ी टक्कर देने की ठानी है। संभावित उम्मीदवारों में बाहुबली सूरजभान सिंह का नाम है, जो राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के साथ हैं और अब RJD के नेतृत्व वाले I.N.D.I.A. गठबंधन का हिस्सा हैं। इसके अलावा, अनंत सिंह के पुराने साथी रहे सोनू और मोनू भी सियासी महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। मोकामा के ही एक और बाहुबली अशोक महतो ने भी अनंत सिंह को चुनौती देने का ऐलान किया है, जिनकी पत्नी अनीता पिछले साल मुंगेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं।

शिवहर: चेतन आनंद और नीतीश की साख दांव पर
बिहार की शिवहर विधानसभा सीट पर युवा नेता चेतन आनंद की साख दांव पर है। 2020 में RJD के टिकट पर जीते चेतन लोकसभा चुनाव से पहले NDA में शामिल हो गए। उनकी मां लवली आनंद ने JDU के टिकट पर शिवहर लोकसभा सीट जीती। अगर चेतन इस सीट को बचाने में नाकाम रहते हैं, तो न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत साख को चोट लगेगी, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी किरकिरी होगी, जिन पर चेतन के पिता आनंद मोहन को जेल से रिहा कराने के लिए नियमों में बदलाव करने का आरोप है।

हरनौत: नीतीश के गढ़ में क्या बेटा संभालेगा विरासत?
हरनौत विधानसभा सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अभेद्य गढ़ मानी जाती है, भले ही उन्होंने स्वयं 30 साल से विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा हो। 1985 में नीतीश ने यहीं से अपनी सियासी पारी शुरू की थी और 1995 में भी जीत हासिल की थी। यह सीट हमेशा समता पार्टी और अब JDU के पास रही है। चर्चा है कि 74 वर्षीय नीतीश अगर ‘वंशवाद’ से परहेज छोड़ दें, तो उनके बेटे निशांत कुमार को JDU से टिकट मिल सकता है।

कुल मिलाकर, बिहार की इन सीटों पर सियासी दांवपेच, बाहुबल का प्रदर्शन, और परिवारवाद का अनोखा संगम देखने को मिलेगा। इन हाई-वोल्टेज सीटों के नतीजे न सिर्फ व्यक्तिगत उम्मीदवारों, बल्कि पूरे बिहार की सियासत की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

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