कानून ठोकर पर, भ्रष्टाचार सिर पर! — रतनपुर नगर पालिका ने ‘कुर्मी समाज भवन’ रद्द कर दिया..अधिकारियों की मनमानी पर सफेदपोशों का संरक्षण जारी

बिलासपुर /रतनपुर…नगर पालिका रतनपुर का एक और नियमविरुद्ध और विवादास्पद निर्णय सामने आया है। चार वर्षों से लंबित पड़े कुर्मी समाज भवन निर्माण कार्य को नगरपालिका ने 6 अक्टूबर 2025 को एकतरफा निरस्त कर दिया। सूत्रों के अनुसार यह कदम केवल प्रशासनिक त्रुटि नहीं, बल्कि “व्यक्तिगत द्वेष और भ्रष्टाचार छिपाने की साज़िश” का हिस्सा प्रतीत होता है।
सूत्र बताते हैं कि यह निर्णय न केवल नगर पालिका अधिनियम की अवहेलना है, बल्कि पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना पर भी खुला हमला है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि इस निर्णय प्रक्रिया में नगर पालिका अध्यक्ष, मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) और इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारियों की भूमिका प्रमुख रही है। जानकारों का कहना है कि इतने संवेदनशील एवं निर्णायक कदम में इन वरिष्ठ अधिकारियों की सहमति और हस्तक्षेप के बिना यह एकतरफा निरस्तीकरण सम्भव नहीं था; इसलिए मामला केवल प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि शीर्ष स्तर पर मिलीभगत के स्पष्ट संकेत देता है।
बिना सूचना, बिना पंचनामा — एक झटके में रद्द
सूत्रों के अनुसार नगरपालिका ने न तो कार्य स्थल पर कोई अंतिम मूल्यांकन पंचनामा तैयार किया, न ही ठेकेदार को पूर्व सूचना दी। सीधे फॉर्म-90 भरकर निरस्तीकरण की चिट्ठी भेज दी गई। यह प्रक्रिया नियमों के खिलाफ है — सामान्य तौर पर ऐसे मामलों में ठेकेदार, उप अभियंता और संबंधित अधिकारी की उपस्थिति में कार्य की स्थिति का मूल्यांकन कर पंचनामा तैयार किया जाता है।
नगर पालिका ने अपने निरस्तीकरण आदेश का आधार ठेकेदार के 30 मई 2024 के एक पुराने आवेदन को बनाया। जबकि उसके बाद जून और दिसंबर 2024 में कई पत्र और कानूनी नोटिस निकाय को भेजे गए थे। सूत्रों का कहना है कि इन दस्तावेज़ों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया ताकि “सत्य छिपाया जा सके और किसी को सज़ा दी जा सके।”
नियमों की धज्जियाँ, विभाग की चुप्पी
नगर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “ऐसा निरस्तीकरण तभी संभव है जब कार्य अधूरा छोड़ दिया गया हो या विभागीय गलती साबित हो। लेकिन यहाँ किसी भी पक्ष को सुना नहीं गया — जो निकाय की मंशा पर गंभीर सवाल उठाता है।”
रतनपुर नगर पालिका से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ एक भवन की कहानी नहीं, बल्कि यह बताता है कि नियम, प्रक्रिया और जवाबदेही सब कुछ राजनीतिक प्रभाव के नीचे दब गए हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ पर कार्रवाई?
सूत्रों ने यह भी खुलासा किया कि यह पूरा विवाद तब से शुरू हुआ जब निर्माण कार्य से जुड़ी अनियमितताओं और भुगतान में हेराफेरी की शिकायतें प्रशासनिक स्तर पर पहुँचीं। शिकायत के बाद, न कि पहले, यह निरस्तीकरण पत्र जारी किया गया — जिससे संकेत मिलता है कि भ्रष्टाचार उजागर करने की सज़ा देने का प्रयास हुआ है।
सूत्रों ने बताया कि संबंधित व्यक्ति ने कई बार पत्र भेजकर कार्य पूर्ण करने की इच्छा जताई थी, परंतु निकाय ने उसे अनसुना कर दिया।
प्रशासनिक मौन से निरंकुश हुआ निकाय
शासन और जिला प्रशासन की चुप्पी अब रतनपुर में सवालों के घेरे में है। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि शिकायतें, सबूत और खुलासे सब एक फ़ाइल में दफ्न हैं, जबकि निकाय लगातार मनमाने फ़ैसले ले रहा है।
नगर पालिका अध्यक्ष की कथित “उच्च पदस्थ संबंधों” की चर्चा स्थानीय दफ्तरों में खुलेआम हो रही है।
संस्थागत भ्रष्टाचार का अड्डा
एक सूत्र ने तीखे शब्दों में कहा —जब शासन मौन हो, विभाग आंख मूंद ले और मंत्री कृपा बरसाएं — तो भ्रष्टाचार नहीं रुकता, बल्कि संस्थागत हो जाता है। रतनपुर आज उसी स्थिति में खड़ा है।
अब न्यायालय की ओर बढ़ेगा मामला
सूत्रों के अनुसार, इस नियमविरुद्ध कार्रवाई को लेकर न्यायालय में याचिका दाखिल करने की तैयारी चल रही है।
इस प्रक्रिया में न केवल नगर पालिका बल्कि संबंधित विभागों की भूमिका भी जांच के घेरे में आएगी।
जनता पूछ आखिर शासन चुप क्यों है?
रतनपुर नगर पालिका में घूसखोरी, हेराफेरी और नियम उल्लंघन के आरोप पिछले एक वर्ष से लगातार सामने आ रहे हैं। इसके बावजूद ना विभागीय जांच, ना कार्रवाई, ना जवाबदेही — प्रशासन की यह मौन स्वीकृति अब साझेदारी जैसी लगने लगी है। जब विभागीय मंत्री तक शिकायतें पहुँचने के बाद भी कार्यवाही शून्य रहे — तो यह केवल निकाय की नहीं, बल्कि पूरे शासन-प्रशासन की विफलता है।
यह सवाल अब जनता पूछ रही है कि रतनपुर में निकाय शासन के अधीन है या शासन निकाय के अधीन?