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TET पर छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के रुख को लेकर क्यों चल रही है बहस… ?

न्यायालय के आदेश को सीढ़ी बना कर पदोन्नति की चाह रखने वाले शिक्षकों ने जो ज्ञापन दिया है उसमें वे खुलकर सामने नहीं आए है..।  कुछ टीईटी पास शिक्षक अपनी मांग को चोरी-छुपे आगे बढ़ा रहे है। दिए गए ज्ञापन में बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट का एक सितंबर 2025 का फैसला  जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया है कि 2011 के बाद नियुक्त और पदोन्नति पाने वाले शिक्षकों के लिए TET अनिवार्य है।

बिलासपुर (मनीष जायसवाल) ।छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में सहायक शिक्षक से प्राथमिक स्कूल के प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति के लिए सुप्रीम कोर्ट के टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए जो ज्ञापन दिया गया था उस फैसले की आंच रायपुर के लोक शिक्षण संचालनालय तक ज्ञापन के रूप में रायपुर संभाग में होने वाली उच्च वर्ग शिक्षक से मिडिल स्कूल के प्रधान पाठक के पद पर होने वाली पदोन्नति तक पहुंच गई है..।

न्यायालय के आदेश को सीढ़ी बना कर पदोन्नति की चाह रखने वाले शिक्षकों ने जो ज्ञापन दिया है उसमें वे खुलकर सामने नहीं आए है..।  कुछ टीईटी पास शिक्षक अपनी मांग को चोरी-छुपे आगे बढ़ा रहे है। दिए गए ज्ञापन में बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट का एक सितंबर 2025 का फैसला  जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया है कि 2011 के बाद नियुक्त और पदोन्नति पाने वाले शिक्षकों के लिए TET अनिवार्य है।

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RTE एक्ट 2009 की धारा 23 के तहत NCTE को न्यूनतम योग्यता तय करने का अधिकार है, और राज्य सरकार इसमें छूट नहीं दे सकती। इसके अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के श्रवण कुमार प्रधान एवं अन्य के मामले का हवाला देते हुए बताया गया कि NCTE की न्यूनतम योग्यता भर्ती और पदोन्नति दोनों के लिए समान है। 12 नवंबर 2014 को राजपत्र में प्रकाशित NCTE की अनुसूची-1 में कक्षा 1 से 8 तक के सभी पदों के लिए टीईटी अनिवार्य है।

लेकिन विभाग ने इन आदेशों की अनदेखी करते हुए बिना टीईटी वाले शिक्षकों को सूची में शामिल कर लिया। सूरजपुर से शुरू हुए इस विवाद की असल जड़ में अधिकांश वो शिक्षक हैं, जो 2010 के बाद नियुक्त हुए या फिर टीईटी पास सहायक शिक्षक और उच्च वर्ग शिक्षक है..। जिन्हें सिर्फ पदोन्नति में बड़ा लाभ मिल सकता है। लेकिन यदि यह आदेश सख्ती से नियम के रूप में लागू हुआ तो 1998 से सेवा दे रहे ऐसे शिक्षक जिनके लिए जिनकी भर्ती और पदोन्नति में टीईटी अभी हाल ही में सामने आया है .

उनके लिए यह सबसे अधिक चिंता का विषय हो सकता है..। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में राहत सिर्फ उन शिक्षकों को मिली है जिनकी सेवानिवृत्ति में पांच वर्ष या उससे कम समय बचा है..। वे बिना टीईटी पास किए सेवा जारी रख सकते हैं। लेकिन जिनके पास पांच वर्ष से ज्यादा समय है, उनके लिए टीईटी पास करना जरूरी है।

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वरना इस्तीफा या अनिवार्य सेवानिवृत्ति ही रास्ता बचता है। पहली से आठवीं तक के शिक्षकों के एक पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट मामले का फैसला उनका संवैधानिक अधिकार लगता है तो दूसरे पक्ष को यह फैसला संतोष जनक नहीं लगता उन्हें बड़ी अदालत से उम्मीद की किरण दिखाई देती है..।

उनकी यही उम्मीद बंधती है उन मीडिया रिपोर्ट्स में जिसमें यह बात समाने आती है कि छह राज्य जिसमें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, तेलंगाना, केरल और उत्तराखंड जो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुके हैं या करने की तैयारी में है..। वही उत्तर प्रदेश जूनियर शिक्षक संघ जो 3 अगस्त  2017 के कानूनी संशोधन को चुनौती देने की तैयारी में है..। जिसमें एक रिट 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को राहत देने के लिए, दूसरा 2011 के बाद टीईटी विहीन शिक्षकों के लिए दायर करने की ओर बढ़ते कदम पर टीके हुए है..!

वहीं राष्ट्रीय स्तर के शिक्षक नेता यह भी कहते है कि हम सभी राज्यों के सामने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका की मांग कर रहे है। इस राह पर छत्तीसगढ़ से संयुक्त शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष केदार जैन इस दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर मिल कर साझा मंच में काम कर रहे है..।

इसके अलावा शिक्षकों की राष्ट्रीय स्तर पर बात रखने वाले मध्यप्रदेश के शिक्षक नेता हीरानन्द नरवरिया बताते है कि ट्रॉयबल वेल्फेयर टीचर्स एसोसिएशन मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष डी के सिंगौर भी राज्य सरकार से इस विषय में पुनर्विचार याचिका लगाने के लिए प्रयास रत है..। छत्तीसगढ़ सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की दावेदारी कर रहे अश्वनी कुर्रे का कहना है हमारे पैनल के घोषणा पत्र में यह विषय है कि सरकार भी इस फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रखते हुए पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे..!

हम संगठन के माध्यम से भी प्रयास रत है। उनका कहना है कि हम शिक्षक है राष्ट्र निर्माता है हमारी लड़ाई सभी शिक्षकों की समस्याओं से है..। कुछ समूह के लालच से नहीं..। कुछ लोग अपने साथियों की कुर्बानी देकर पदोन्नति पाना चाहते है। लेकिन एक परीक्षा कई सालों की सेवा से बड़ी नहीं। जो पहले से टीईटी पास नहीं है, उनमें और बाकियों में कोई फर्क नही है। इस खबर का सार कुछ ऐसा है कि मुट्ठी भर शिक्षक अपनी लकीर बड़ी करने के चक्कर में सर्वोच्च न्यायालय और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को बेंच मार्क मानते हुए संवैधानिक अधिकार बता रहे है लेकिन यह राह इतनी आसान तो नहीं है..।

राज्यों की सरकारें और शिक्षक संगठन एड़ी-चोटी का जोर लगाकर पुनर्विचार याचिका के जरिए प्रभावित शिक्षकों को बचाने की कोशिश में जुटे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि इस फैसले से प्रभावित होने वाले शिक्षकों की संख्या वोट बैंक के लिहाज से बहुत अधिक है। इस मामले में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार शिक्षकों के साथ सबसे आगे खड़ी है ..! वही आम शिक्षक जबाव ढूंढ रहे है छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग कहां और किस ओर खड़ा है..?

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